ध्यान रहे कि यह रिलेटिव ग्रोथ रैंकिंग्स हैं, एब्सॉल्यूट ग्रोथ फिगर्स नहीं। यानी 2011-21 के बीच भारत का बेहतर प्रदर्शन रहना लेकिन 2001-11 में नहीं, इसमें तारतम्य नहीं है क्योंकि आर्थिक विकास की रफ्तार पिछले दशक में धीमी पड़ी है। भारत की रैंकिंग में सुधार के पीछे दुनिया की रफ्तार धीमी होना प्रमुख फैक्टर है। डॉलर्स के लिहाज से देखें तो 2001-11 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3.7 गुना बढ़ा जबकि 2011-21 के के बीच केवल 1.7 गुना।
IMF के आंकड़ों में छिपा है इशारा
2022 में (भारत के लिए 2022-23) अर्थव्यवस्था के 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसी दौरान, बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाएं 3.7% की औसत रफ्तार से बढ़ेंगी। 3 प्रतिशत से ज्यादा का यह अंतर 2023 में 2.4 पर्सेंटेज पॉइंट्स रह सकता है। ऐसा होना लगभग तय है क्योंकि चीन की आर्थिक रफ्तार तेजी से मंदी पड़ रही है जिसका असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के औसत पर पड़ेगा। ऐडवांस्ड अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार की 3.4% से घटकर अगले साल 1.1 प्रतिशत रहे जाने का अनुमान है। एक तरह से, बिना कहे IMF ‘डीकपलिंग’ जैसे हालात की ओर इशारा कर रहा है। अगर आंशिक रूप से ऐसा होता है और भारत की वृद्धि का आंकड़ा अनुमानों से थोड़ा कम भी रहता है तो भी भारत का ‘अंधकार से घिरे क्षितिज में एक उज्ज्वल स्थान’ (IMF ने यही कहा है) लंबे वक्त तक बरकरार रह सकता है।
तेल से संपन्न सऊदी अरब को किनारे कर दें तो भारत के साथ-साथ बांग्लादेश और वियतनाम सही दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि देर से ही सही, ये देश वही करने की कोशिश कर रहे हैं जो पूर्वी एशियाई देश पहले के दशकों में करके दिखा चुके हैं। फिर चाहे वह साउथ कोरिया हो या फिर ताइवान। वियतनाम की प्रति व्यक्ति आय भारत से 60% ज्यादा है और फिलीपींस से भी। 2022 के अनुमानों में फिलीपींस का नंबर टॉप 3 के ठीक बाद है। ये चारों देश उन अंतरराष्ट्रीय कारोबारों की निगाह में रहे हैं जो चीन+1 रणनीति के तहत अपने प्रॉडक्शन बेसेज को चीन से दूर ले जाना चाहते हैं।
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IMF के चार दशकों का डेटा क्या बताता है?
सभी चार दशकों (1981-2021) को साथ देखें तो IMF के आंकड़े बताते हैं कि केवल तीन देश ही भारत से बेहतर कर पाए। चीन अलग लीग में है, उसकी अर्थव्यवस्था इस दौरान 62 गुना बड़ी (वर्तमान डॉलर रेट के हिसाब से) हो गई। साउथ कोरिया की अर्थव्यवस्था का आकार 25 गुना बढ़ा और फिर वियतनाम का नंबर आता है। भारत, इजिप्ट, श्रीलंका, बांग्लादेश और ताइवान की अर्थव्यवस्था में इन दौरान 16 गुना का इजाफा हुआ। थाइलैंड और मलेशिया ज्यादा पीछे नहीं हैं। मतलब यह कि हमारा आर्थिक रिकॉर्ड अच्छा भले रहा हो, यह उतना शानदार नहीं है। फिर भी एक पॉजिटिव आंकड़ा जेहन में बैठाते जाइए। दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 1981-91 वाले दशक में 1.7 से घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गई थी। 2011 तक यह बढ़कर 2.5 प्रतिशत हो गई और 2021 में 3.3 प्रतिशत। संकेत यही हैं कि यह आंकड़ा और ऊपर चढ़ेगा।
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