Law For Death Threats : अक्सर अपने आसपास हमें गाली-गलौच, बदसलूकी, अभद्रता जैसे मामले देखने को मिलते रहते हैं. कई बार ये इतने बढ़ जाते हैं कि इनमें अप्रिय स्थितियां और बड़े विवाद जैसी स्थिति भी पैदा हो जाती है. ऐसे मामलों में धमकियां देना एक आम बात होती है. इस प्रकार की घटनाओं को या तो नजरंदाज कर दिया जाता है या फिर समझौते के बाद बात को खत्म करने की कोशिश की जाती है. अगर कानून की नजर से देखें तो अश्लील तरीके से गालियां देना, बदसलूकी करना और जान से मारने की धमकी देना एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसा करने वालों पर संगीन मुकदमा भी दर्ज हो सकता है.
क्यों हैं ये दंडनीय अपराध?
ऐसे अपराधों पर सीधे पुलिस थाने से सीआरपीसी (CRPC) की धारा 154 के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज होती है. एक दूसरे को अश्लील गालियां देना भारतीय दंड संहिता की धारा 294 में एक दंडनीय अपराध है. हालांकि, ऐसे ज्यादातर मामलों में समझौता कराकर सुलह करा ली जाती है, लेकिन धारा 294 में दोनों पक्ष राजीनामा भी नहीं कर सकते क्योंकि गालियां देने से केवल पीड़ित पक्षकार को तकलीफ नहीं होती, बल्कि इससे आसपास के आम लोगों को ठेस भी पहुंचती है.
कितनी हो सकती है सजा?
इस धारा के अंतर्गत अपराधी व्यक्ति को 3 महीने तक की सजा हो सकती है. वैसे इस तरह के मामलों में आरोपी को किसी प्रकार का जेल का दंड नहीं दिया जाता है, बल्कि उससे जुर्माना भरवाया जाता है. लेकिन इसका मुकदमा कई सालों तक चलता है. आरोपियों को नियमित रूप से अदालत में हाजिरी के लिए जाना पड़ता है और जमानत भी लेनी होती है.
जान से मारने की धमकी है एक संगीन अपराध
आजकल विवादों में एक दूसरे को जान से मारने की धमकी देना आम बात हो गई है. सार्वजनिक स्थानों पर भी अब इस तरह की चीजें खूब देखने को मिल रही हैं. रोडरेज (यातायात में सड़क पर चालकों द्वारा हिंसक रोष व्यक्त करना) में भी इस तरह की धमकियां लोग खूब देते हैं. अगर इस तरह के विवाद में कोई भी आपको ऐसी धमकी देता है तो आप उसके खिलाफ तुरंत रिपोर्ट लिखवाकर कार्रवाई करवा सकते हैं.
सात साल तक की सजा का प्रावधान
जान से मारने की धमकी देने को लोग साधारण अपराध समझते हैं, लेकिन यह कोई साधारण अपराध नहीं है. भारतीय दंड संहिता की धारा 506 यह स्पष्ट रूप से कहती है कि अगर धमकी जान से मारने की दी जा रही है तो ऐसा करना अपराध माना जाएगा. इस तरह की धमकी देने वाले व्यक्ति को 7 वर्ष तक की सजा भी हो सकती है. इस मामले में पक्की रिपोर्ट दर्ज होगी. इसके संबंध में मुकदमा तैयार करके संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा. हालांकि, इस तरह के मामलों में आसानी से जमानत मिल जाती है और फिर मुकदमा चलाया जाता है.
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