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- Dr. Ved Pratap Vaidik’s Column The Next G 20 Conference Will Be Held In India, So The Eyes Of The World Are On India…
5 मिनट पहले
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष
संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद यदि दुनिया में कोई सबसे शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन है तो वह जी-20 है यानी 20 राष्ट्रों का ग्रुप! इन 20 राष्ट्रों में सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य तो हैं ही, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और सउदी अरब जैसे देश भी शामिल हैं। इस समूह में दुनिया के पांचों महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व है। भारत के लिए बहुत ही गर्व की बात है कि इस संगठन की अध्यक्षता इस वर्ष भारत ने की।
इस शिखर सम्मेलन में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के सर्वोच्च नेता गए लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जान-बूझकर वहां नहीं गए, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में ज्यादातर राष्ट्र रूस का विरोध करते रहे हैं। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर ने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करवाई। अगले जी-20 सम्मेलन (सितंबर 2023) की अध्यक्षता भारत जरूर करेगा, लेकिन यूक्रेन का मसला उसका सिरदर्द बना रहेगा।
दुनिया के सभी महत्वपूर्ण राष्ट्र या तो रूस के विरुद्ध हैं या रूस के साथ हैं। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद यह पहला अवसर है जबकि विश्व राजनीति दोबारा दो खेमों में बंटती दिखाई पड़ रही है। एक अमेरिकी खेमा, दूसरा रूसी-चीनी खेमा लेकिन भारत की खूबी यह है कि जैसे नेहरू काल में वह दोनों गुटों से अलग रहकर गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का नेतृत्व करता रहा, आजकल वह वैसे ही दोनों संभावित गुटों से अलग रहकर भी दोनों से जुड़ा रह रहा है। इसे मैं मोदी काल की गुट सापेक्षता की नीति कहता हूं।
मोदी ने इंडोनेशिया पहुंचते ही अपनी इस विशिष्ट नीति का शंखनाद कर दिया। उन्होंने अपने इस कथन को फिर दोहराया कि अब युद्ध का समय नहीं है। अब रूस-यूक्रेन विवाद बातचीत से हल किया जाना चाहिए। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन या ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और फ्रांसीसी राष्ट्रपति मेक्रों की तरह रूस-विरोधी एकतरफा बयान नहीं दिए। उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का नारा दिया। वे इस जी-20 संगठन के जरिए तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
पहला मुद्दा है- विश्व स्वास्थ्य का। कोरोना की महामारी ने इस बार दुनिया को हिलाकर रख दिया है। अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों में इस महामारी का प्रकोप भारत से कहीं ज्यादा रहा है लेकिन भारत में साधनों की कमी के बावजूद इस महामारी का मुकाबला डटकर किया है।
शीतयुद्ध के बाद पहली बार विश्व राजनीति दो खेमों में बंटती दिख रही है। पहले भी भारत गुट-निरपेक्ष रहा, नेहरू काल में इसे गुट निरपेक्षता नीति कहा जाता था। इसे मैं मोदी काल की गुट सापेक्षता की नीति कहता हूं।
हामारी के अलावा भी दुनिया के ज्यादातर देशों में जन-साधारण की चिकित्सा का हाल बहुत खस्ता है। भारत की अध्यक्षता में यदि आयुर्वेद, आसन-प्राणायाम, होम्योपैथी आदि को सारी दुनिया में फैलाया जाए तो विश्व-स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत का यह अमूल्य योगदान होगा।
दूसरा मुद्दा है- डिजिटल क्रांति का! भारत इस मामले में दुनिया के सभी देशों से आगे निकल गया है। उसकी अध्यक्षता में यदि इस काम को अधिक सफल होना है तो समस्त भारतीय भाषाओं को इसका माध्यम बनाना होगा और विश्व की सभी भाषाओं को उचित स्थान देना होगा। यदि सब पर अंग्रेजी, फ्रेंच या हिंदी थोपी जाएगी तो इसे विश्वव्यापी सफलता मिलना संभव नहीं हो सकेगा। विश्व की विभिन्न भाषाओं के बीच प्रामाणिक अनुवाद की व्यवस्था चलानी होगी।
तीसरा मुद्दा- ऊर्जा का है। दुनिया में डीजल-पेट्रोल का उपयोग इतना बढ़ गया है कि प्रदूषण के कारण लाखों लोगों की जान जा रही है। ईंधन की कीमतें भी जानलेवा होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में ऊर्जा के नए स्रोतों को विकसित करने और उन्हें उपलब्ध करवाने के लिए इस 20 राष्ट्रीय समूह के देशों के जरिए भारत कुछ विशेष प्रयत्न करवाना चाहता है। इस शक्तिशाली समूह के आगे चिंतनीय मुद्दों की कमी नहीं है। परमाणु निरस्त्रीकरण, उपभोक्तावाद की विश्वव्यापी वासना, संयुक्तराष्ट्र संघ का नवीकरण आदि ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर भारत बातचीत की पहल कर सकता है।
महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया में मंहगाई, बेरोजगारी को बढ़ा दिया है। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था ने इन झटकों को डटकर झेला है। भारत अगले साल अपनी अध्यक्षता के दौरान इस समूह के परस्पर विरोधी राष्ट्रों को भी एक मंच पर लाकर विश्व राजनीति को खाई में गिरने से बचा सकता है। इस जी-20 संगठन के माध्यम से भारत चाहे तो ऐसी भूमिका अदा कर सकता है कि विश्व राजनीति में उसका अनुपम स्थान बन सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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