– मुख्यमंत्री ने मप्र राज्य जल नीति-2022 संगोष्ठी को संबोधित किया
कहा- तीसरी फसल लेने से उत्पादन बढ़ा लेकिन जल की उपलब्धता हो रही प्रभावित
भोपाल, 30 सितंबर (हि.स.)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि परिस्थितियों को देखते हुए अधिक पानी के उपयोग पर आधारित जीवन शैली में बदलाव की आवश्यकता है। पानी को रि-साईकल कर उसे उपयोग में लेने, कम पानी के उपयोग से गतिविधियाँ संचालित करने की पद्धतियों को रोजमर्ऱा के जीवन में अपनाना होगा। हमें आने वाली पीढ़ी के लिए धरती इस स्वरूप में छोड़ना है, जिससे भावी पीढ़ी भी धरती पर खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके। हमें इन चिंताओं को ध्यान में रख कर जल नीति बनाना होगी। नीति ऐसी बने, जिसे जनता के साथ मिलकर क्रियान्वित किया जा सके।
मुख्यमंत्री चौहान शुक्रवार को मध्यप्रदेश राज्य जल नीति-2022 पर मंत्रालय में हुई जल विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों की संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, अटल बिहारी वाजपेयी नीति विश्लेषण संस्थान के प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी, मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, अपर मुख्य सचिव जल संसाधन एसएन मिश्रा, वरिष्ठ अधिकारी, जल विशेषज्ञ तथा सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश जल उपयोग के लिए पूर्णत: सजग है। वर्ष 2003 के बाद प्रदेश में पानी रोक कर सिंचाई क्षमता में वृद्धि की गई है। प्रदेश में सिंचाई क्षमता साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढ़कर 42 लाख हेक्टेय़र तक पहुँच गई है। हम कम पानी में अधिक और प्रभावी सिंचाई व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए केनाल सिस्टम के स्थान पर प्रेशर पाईप से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। उद्देश्य अधिक से अधिक पानी बचाना है।
उन्होंने कहा कि प्रदेशवासियों को शुद्ध पेयजल सरलता से उपलब्ध हो। इस उद्देश्य से जल जीवन मिशन गाँव-गाँव में क्रियान्वित किया जा रहा है। भू-जल स्तर बढ़ाने के लिए जलाभिषेक अभियान में विभिन्न गतिविधियाँ संचालित की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप सभी जिले में बड़ी संख्या में अमृत सरोवर का निर्माण किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि क्रॉप पेटर्न अब बदल रहा है। खेती में तीसरी फसल लेने की व्यवस्था ने प्रवेश कर लिया है। यह फसल प्राय: गर्मी के दिनों में ली जा रही है, जो भू-जल पर आधारित है। इससे उत्पादन तो बढ़ रहा है पर भू-जल स्तर निरंतर नीचे जा रहा है। अधिक सिंचाई वाली फसलों के कारण नदियाँ भी दम तोड़ रही हैं। इन मुद्दों पर विचार आवश्यक है। उद्योगों में भी पानी की मांग निरंतर बढ़ रही हैं। भविष्य में पानी की उपलब्धता और मांग को देखते हुए रणनीति बनाना आवश्यक है। पीने का पानी आज भी बहुत से ग्रामों और बसाहटों में बड़ी समस्या है। भविष्य में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना बढ़ी चुनौती होगी। नदियों के पुनर्जीवन के लिए जन-सामान्य की संवेदनशीलता को जागृत करते हुए कार्य-योजना बनाना और उसका क्रियान्वयन आवश्यक है।
मुख्यमंत्री चौहान को सेंटर फॉर सस्टेनेबल गोल्स द्वारा प्रकाशित डॉ. अरविंद कुमार की पुस्तक इंडिया एट 75 एण्ड बियोंड भेंट की गई। संगोष्ठी में जल के सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक महत्व, सामुदायिक सहभागिता, वाटर लिट्रेसी, आज के परिप्रेक्ष्य में समाज की परंपरागत तकनीक और अनुशासन, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, जल प्रहरी का महत्व, क्रॉपिंग पेटर्न और जीवन शैली, विभिन्न उपयोगों के लिए जल स्रोतों की प्राथमिकता, वाटर सिक्योरिटी प्लांट, वाटर ट्रेकिंग एप, जैव विविधिता संरक्षण, जल शुद्धिकरण और जल गुणवत्ता, तालाबों और नदियों का पुर्नजीवन विषय पर चर्चा हुई।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/ डा. मयंक
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