प्रियंका सिंह ।
हाल ही में निर्माता बनीं हुमा कुरैशी की सोच बहुत स्पष्ट है कि वह किस तरह की फिल्में बनाना चाहती हैं। इस बारे में वह कहती हैं, ‘मैं जो भी काम करती हूं, प्रयास यही होता है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। मैंने रंगमंच से शुरुआत की है तो मुझे पता है कि एक वक्त पर 200 या 300 लोग आपको देख पाते हैं। जब आप फिल्में करते हैं तो आपको अपनी क्षमता का पता चलता है कि कितने सारे लोग आपको देख पा रहे हैं। कई लोग ऐसे हैं, जिनसे आप कभी नहीं मिल पाते हैं, लेकिन आप उनके जीवन को अपनी फिल्मों से प्रभावित करते हैं। मेरे लिए निर्माता बनना दिलचस्प है ताकि मैं वो कहानियां कह सकूं, जो मुझे अच्छी लगती हैं। जब मैं छोटी थी तो कई ऐसी कहानियां रही हैं, जिनको देखकर मैं प्रभावित हुई हूं, उन कहानियों ने मुझे बदला है। मैं भी कुछ अच्छी कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहती हूं, जिनमें कहने के लिए कोई बात हो, जिनसे समाज में बदलाव आए। मेरे लिए ‘डबल एक्सएल’ पर काम करना मजेदार इसलिए भी रहा, क्योंकि निर्माता जब किसी फिल्म के लिए साइन करते हैं तो वह भूमिका के लिए हाथ से रोटी भी छीन लेते हैं कि खाना बंद करो। यहां तो हर कोई कह रहा था कि क्या खाओगे बेटा, मसाला पाव खाओ, पाव भाजी खाओ। सेट पर पार्टी जैसा माहौल था। हम सब दोस्त ही हैं, जो इस फिल्म में काम कर रहे हैं।’
मैंने झेला है वह अनुभव
हुमा जब इंडस्ट्री में आई थीं, तब उन्हें उनके वजन की वजह से काफी आलोचनाएं झेलनी पड़ी थीं। इस बारे में हुमा कहती हैं, ‘काफी कटळ् अनुभव भी रहे हैं। इंडस्ट्री ने तो अभिनेत्रियों के साइज का अलग ही मानक तय कर रखा है। जब मैं इंडस्ट्री में आई तो बहुत खुश हुई थी कि मैंने पहली फिल्म साइन कर ली है, फिर दूसरी-तीसरी फिल्में मिलती गईं। मैं बहुत ही मासूमियत भरे दृष्टिकोण के साथ इस इंडस्ट्री में आई थी। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया है, लेकिन दो-तीन साल बाद बढ़े वजन को लेकर हो रही बातों का असर मुझ पर पड़ने लगा। मैंने खुद को बदलने का प्रयास भी किया। मुझे लगा कि मैं यहां फिट नहीं हो पा रही हूं। मैंने खुद को कोसा, खूब रोई भी। इस डर से कुछ फिल्में भी छोड़ दीं। मुझे लगा कि शायद मैं नहीं कर पाऊंगी। एक अजीब सी असळ्रक्षा आ गई थी, लेकिन सच यह है कि समस्या दुनिया के दृष्टिकोण में नहीं है, आपमें है। अगर आप खुद को ही दुनिया के दृष्टिकोण से प्रस्तुत करेंगे तो लोग भी आपको वैसे ही देखेंगे। आत्मविश्वास के साथ आप जो हैं, उसे स्वीकार लें। तभी बाकी लोगों को आपको स्वीकारने में आसानी होगी। मैं तो हर साइज में बुढ़ापे तक सेट पर काम करती रहूंगी।’
बदलना है दृष्टिकोण
‘डबल एक्सएल’ फिल्म किसी के वजन को लेकर तंज ना कसने और अपने वजन के प्रति सकारात्मक भाव रखने की बात करती है। फिल्म को लेकर अपना उद्देश्य साझा करते हुए हुमा बताती हैं, ‘इस फिल्म के माध्यम से यदि हम दो या तीन लोगों का भी सोच बदल सकें या इस पर बातचीत शुरू कर सकें कि हम साइज और शेप को छोड़कर महिलाओं की प्रतिभा के लिए उन्हें प्रोत्साहित क्यों नहीं करते हैं तो फिल्म बनाना सफल है। हम कोई झंडा लेकर नहीं निकल रहे हैं। यह मुद्दा संवेदनशील है। लोगों को भी संवेदनशील होने के लिए कह रहे हैं कि आप जैसे अपने आसपास वालों के बारे में बात करते हैं, उससे वे आहत हो सकते हैं, किसी के आत्मविश्वास को ठेस पहुंच सकती है। मोटापे की वजह से लड़की के साथ ऐसे बर्ताव किया जाता है कि शादी नहीं होगी, सपने पूरे नहीं होंगे। बचपन से मेरा वजन अधिक था। फिल्म इंडस्ट्री में कई बार सुनना पड़ा कि अभिनेत्रियों के लिए जो ढांचा बना है, उसमें आप फिट नहीं होती हैं, फिर भी मैंने इंडस्ट्री में काफी काम किया है। मेरा यही मानना है कि जो आप हैं, उसमें आत्मविश्वास बनाए रखें। संपूर्ण तो कुछ होता ही नहीं है।’
परिवार बनता है संबल
हुमा का मानना है कि परिवार इस तरह की नकारात्मक बातों से लड़ने में काफी मदद करता है। वह कहती हैं, ‘मेरे पिता हमेशा यही कहते हैं कि खुश रहो, हंसते रहो। मां इस बात को गहराई से समझती हैं। वह भी शायद मेरी आयु में उन चीजों से गुजरी होंगी, उनकी मां ने भी उन्हें कुछ बातें सिखाई होंगी। उन्हें समझाने का यही तरीका आता है कि कम खाओ, यह मत करो, वह मत करो, लेकिन पिछले कुछ सालों में उनमें और मुझमें बहुत दिलचस्प बदलाव आए हैं। मैंने एक विज्ञापन किया था तो उन्होंने मेरी सराहना करते हुए कहा था कि जो दुनिया ने तुम्हें कहा कि तुम्हारी खूबी नहीं है, तुमने उसे ही अपनी खूबी बना लिया। उस बात ने मुझे अंदर तक छू लिया। कई बार बच्चे भी माता-पिता को चीजें सिखा जाते हैं।’
Edited By: Aarti Tiwari
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post