ओपेक प्लस का फ़ैसला और इसके मायने
- बुधवार को ओपेक प्लस देशों ने प्रतिदिन 20 लाख बैरल तेल का उत्पादन घटाने का फ़ैसला किया है.
- अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन बीते कई महीनों से इस कोशिश में लगे थे कि तेल के दाम को कम रखा जाए, लेकिन तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुईं.
- जुलाई में बाइडन के सऊदी दौरे को भी अमेरिकी मीडिया नाकाम बता रहा है. इस दौरे में उन्होंने क्राउन प्रिंस से तेल उत्पादन बढ़ाने को कहा था.
- ओपेक प्लस देशों की इस बैठक के बाद कच्चे तेल के दाम वैश्विक बाज़ार में बढ़ेंगे.
दुनिया के तेल उत्पादक देशों के संगठन’ऑर्गनाइजे़शन ऑफ़ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़’ यानी ओपेक और उसके सहयोगी देश (ओपेक प्लस) ने बुधवार को कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने का फ़ैसला किया है.
ओपेक के मुख्यालय वियना में चली 30 मिनट लंबी बैठक में तय किया गया कि 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल का उत्पादन कम किया जाएगा.
ओपेक प्लस का कहना है कि ये क़दम कच्चे तेल की क़ीमत को स्थिर करने के लिए उठाया गया है क्योंकि हाल के महीनों में वैश्विक मंदी का ख़तरा और गहरा होता जा रहा है और तेल की क़ीमत घटी है.
साल 2020 के बाद ये ओपेक और उसके सहयोगी देशों की तरफ़ से उत्पादन में की गई सबसे बड़ी कटौती है.
ज़ाहिर है जब बाज़ार में कच्चे तेल का उत्पादन ही कम हो जाएगा तो दुनियाभर में इसकी कमी होगी और फिर दाम भी बढ़ेंगे. यानी आने वाले वक़्त में तेल के दाम बढ़ने की पूरी संभावना है.
नाकाम हुई अमेरिकी लॉबी
विश्लेषक मानते हैं कि सऊदी अरब और रूस वाले संगठन ओपेक प्लस के इस एलान का सिर्फ़ बढ़ती क़ीमतों से ही वास्ता नहीं है, इस फ़ैसले को ब्लैक-एंड-व्हाइट चश्मे से नहीं देखा जा सकता. इसके जियो पॉलिटकल यानी भू-राजनीतिक मायने हैं.
इस फ़ैसले से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को भी झटका लगा है जो कई महीनों से इस कोशिश में लगे थे कि तेल की क़ीमतें कम ही रहें. साथ ही इस क़दम से ये भी सामने आ गया है कि कैसे खाड़ी देश, ख़ास कर सऊदी अरब के साथ बाइडन सरकार की कूटनीति नाकाम हो रही है.
ओपेक प्लस का ये फ़ैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि एनर्जी यानी तेल और गैस रूस-यूक्रेन युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले फ़ैक्टर बताए जा रहे हैं. इससे ये भी अंदाज़ा होता है कि बाइडन अपनी विदेश और आर्थिक नीति के मोर्चे पर चुनौतियाँ झेल रहे हैं.
तीन महीने पहले जुलाई में जो बाइडन ने सऊदी अरब का दौरा किया और इस दौरे का मुख्य उद्देश्य सऊदी अरब को तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए रज़ामंद करना था.
बाइडन ने सऊदी अरब से ऐसा करने को कहा भी था, लेकिन सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओपेक का हालिया फ़ैसला बताता है कि कैसे बाइडन के दौरे का सऊदी अरब पर कोई असर नहीं पड़ा.
बीबीसी के मध्य-पूर्व बिज़नेस संवाददाता समीर हाशमी कहते हैं, “जो बाइडन ने सऊदी प्रिंस से तेल का उत्पादन बढ़ाने को कहा था. लेकिन ओपेक का नया फ़ैसला अमेरिका की उम्मीद से ठीक उलट है. इस क़दम से दुनिया में तेल के दाम तो बढ़ेंगे ही, साथ ही ये पश्चिमी देशों की उन तमाम कोशिशों को भी झटका है जिसके तहत वह रूस की तेल से होने की आमदनी को कम करना चाहते थे.रूस इस पैसे का इस्तेमाल रूस यूक्रेन के साथ युद्ध लड़ने में कर रहा है. “
“जहाँ तक तेल की क़ीमत की बात है, इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन घटाने के बावजूद ग्लोबल सप्लाई पर इसका वास्तविक असर कम ही होगा क्योंकि ओपेक और उसके सहयोगी देश पहले से ही उतने तेल का उत्पादन नहीं कर रहे हैं जितना उनका कोटा पहले से तय था. लेकिन आने वाले दिनों में इस फ़ैसले का असर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार पर देखने को मिलेगा.”
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने ओपेक के इस क़दम का अमेरिका पर क्या असर होगा, इसे लेकर एक विश्लेषण छापा है.
इसके मुताबिक़, वियना में हुए ओपेक और इसके सहयोगियों की बैठक का नेतृत्व सऊदी अरब और रूस ने किया. इसमें रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर नोवाक शामिल हुए जिन पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है.
ओपेक के इस फ़ैसले ने एक तीर से तीन निशाने साधे हैं- इससे अमेरिका की घरेलू राजनीति, विदेश-आर्थिक नीति और यूक्रेन युद्ध तीनों प्रभावित होंगे.
कुछ दिन पहले बाइडन प्रशासन ने 20 लाख बैरल तेल उत्पादन कम करने के ओपेक के फ़ैसले को रोकने की कोशिश की थी. बीते कई महीनों से बाइडन वैश्विक बाज़ार में तेल उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं.
इस साल जुलाई में जो बाइडन के सऊदी दौरे के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि सऊदी अरब 750,000 बैरल प्रतिदिन तक अपना उत्पादन बढ़ाएगा. सऊदी अरब ने जुलाई और अगस्त में तेल का उत्पादन बढ़ाया भी, लेकिन अब ओपेक की बैठक में वह इस बात से पीछे हट गया.
सऊदी अरब का कहना है कि वैश्विक मंदी की चिंता के कारण तेल की क़ीमत कम हो रही थी जिससे कुछ समय में कच्चे तेल की क़ीमत 120 डॉलर प्रति बैरल से घट कर 80 डॉलर प्रति बैरल हो गई. इससे तेल उत्पादक देशो को आर्थिक नुक़सान हो रहा था, इसलिए सऊदी अरब को ये फ़ैसला करना पड़ा.
उत्पादन में जो कटौती की जा रही है, उससे वैश्विक बाज़ार में तेल की उपलब्धता में दो फ़ीसदी कमी होगी. जानकार मानते हैं कि फ़ैसले से पंप तक पहुँचने वाले तेल की क़ीमत में 15 से 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है.
बाइडन की मुश्किलें
अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी इंडोवमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस ने इस साल अगस्त में विश्लेषण छापा जिसमें जो बाइडन के सऊदी दौरे के महत्व और मजबूरी पर विस्तार से चर्चा की गई.
रिपोर्ट में कहा गया कि रूस पर अमेरिका ने जब प्रतिबंध लगाए, तब से खाड़ी देशों का महत्व और बढ़ गया है. रूस पर अमेरिका की ओर से ऊर्जा के क्षेत्र में लगाए गए प्रतिबंध ने अमेरिका और यूरोप में गैस और तेल की क़ीमतों में आग लगा दी है. इससे अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन की लोकप्रियता में कमी आई है.
संभव है कि नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़े और अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेट्स को बहुमत हासिल करने में मुश्किल हो.
तेल के लिए विकल्प की तलाश में बीते कुछ महीनों में बाइडन ने वेनेज़ुएला से संपर्क किया, सऊदी अरब गए और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मिले.
क्राउन प्रिंस पर साल 2018 में वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या की साज़िश का आरोप है, इसलिए बाइडन की क्राउन प्रिंस के साथ मुलाक़ात पर उनकी ख़ूब आलोचना हुई थी.
बाइडन ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन ज़ाएद से भी तेल का उत्पादन बढ़ाने को लेकर बात की, लेकिन कहीं से भी अमेरिका को कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला.
इस तरह अपने देश में बाइडन तेल की क़ीमत कंट्रोल करने में विफल होते साबित हो रहे हैं.
कैसे तेल की क़ीमत काबू में करेगा अमेरिका
ओपेक के इस क़दम के बाद व्हाइट हाउस ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने प्रशासन और कांग्रेस से ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने और क़ीमतों पर ओपेक के नियंत्रण को कम करने के तरीक़ों पर विचार करने को कहा है.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा, “राष्ट्रपति ओपेक प्लस के उत्पादन में कटौती के अदूरदर्शी फ़ैसले से निराश हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण के लगातार नकारात्मक प्रभाव से जूझ रही है.”
अल जज़ीरा ने बाज़ार को अच्छी तरह से समझने वाली फ़र्म जेपी-मॉर्गन चेज़ के हवाले से लिखा है कि अमेरिका तेल की क़ीमतों को काबू में करने के लिए नोपेक (नो ऑयल प्रोड्यूसिंग एंड एक्सपोर्टिंग कार्टेल बिल) के ज़रिए तेल की ऊंची क़ीमतों को नियंत्रित कर सकता है.
क्या रूस के साथ खड़ा है सऊदी अरब?
न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि वियना में हुई ओपेक की बैठक में जो कुछ हुआ है उससे इस सवाल का जवाब भी मिल गया है कि अरब देश यूक्रेन-रूस युद्ध में कहाँ खड़े हैं?
ओपेक प्लस की बैठक में रूस ना सिर्फ़ शामिल हुआ बल्कि बैठक का नेतृत्व करने वाले देशों में से एक था.
ईरान से रूस की नज़दीकी छिपी हुई नहीं है. ईरान ओपेक का सदस्य है, हाल में ईरान ने रूस को ड्रोन की ब्रिक्री भी की है और ये ड्रोन यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर नोवाक तेल उत्पादक देशों से लगातार संपर्क में हैं और अमेरिका यूरोप की ओर से रूस की तेल से होने वाली कमाई को कम करने के प्रयासों को लगातार रोकने की कोशिश कर रहे हैं.
ओपेक का ताज़ा फ़ैसला बताता है कि रूस के लिए तेल की क़ीमत को सीमित करने की कोशिशों में अमेरिका अपना नुक़सान करता दिख रहा है.
ओपेक के इस फ़ैसले से रूस को तेल के बदले मिलने वाले दाम और ज़्यादा मिलेंगे.
(कॉपी: कीर्ति दुबे)
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