योगेश कुमार गोयल
विदेशों में तो बुजुर्गों की हालत और बुरी है। मगर भारत के संदर्भ में यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक इसीलिए है कि भारतीय समाज में सदैव संयुक्त परिवार को अहमियत दी जाती रही है, जहां बुजुर्गों का स्थान सर्वोपरि रहा है। आज के बदलते दौर में छोटे और एकल परिवार की चाहत में संयुक्त परिवार की धारणा खत्म होती जा रही है, जिसके चलते लोग जहां अपने बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं, वहीं बच्चे भी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार
से वंचित हो रहे हैं।
कोरोना के बाद वृद्धों की आय, स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन-शैली में आए व्यापक बदलाव को समझने के लिए ‘हेल्प एज इंडिया’ द्वारा एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया गया, जिसमें सामने आया कि भारत में बुजुर्ग काफी हद तक उपेक्षित और हताश हैं। सर्वे के अनुसार देश में करीब इकहत्तर फीसद बुजुर्ग किसी प्रकार का काम नहीं कर रहे और इकसठ फीसद बुजुर्गों का मानना था कि देश में उनके लिए पर्याप्त और सुलभ रोजगार के अवसर ही उपलब्ध नहीं हैं।
हालांकि एक राष्ट्रीय रिपोर्ट ‘ब्रिज द गैप: अंडरस्टैंडिंग एल्डर्स नीड्स’ के मुताबिक बुजुर्गों ने इस विसंगति के निवारण के लिए ‘वर्क फ्राम होम’ तथा ‘सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि’ जैसे कुछ व्यावहारिक सुझाव भी दिए हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि बुजुर्गों के पुनर्वास की चिंता न समाज को है और न ही सरकारों को।
कोरोना महामारी के बुरे दौर में बुजुर्गों में अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण भय और निराशा के लक्षण तो बढ़े ही, आत्महत्या के मामले भी बढ़े हैं। ‘हेल्प एज इंटरनेशनल नेटवर्क आफ चैरिटीज’ नामक संस्था ने एक सर्वे कराने के बाद छियानबे देशों का ‘ग्लोबल एज वाच इंडेक्स’ जारी किया था, जिसके मुताबिक करीब चौवालीस फीसद बुजुर्गों का मानना था कि उनके साथ सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार किया जाता है, जबकि करीब तिरपन फीसद बुजुर्गों का कहना था कि समाज उनके साथ भेदभाव करता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन जगहों की विश्व रैंकिंग में स्विटजरलैंड का नाम सबसे अच्छी जगह के रूप में दर्ज है, जबकि भारत का नाम खराब जगह की श्रेणी में आता है। छियानबे देशों के ग्लोबल एज वाच इंडेक्स में भारत को इकहत्तरवें पायदान पर रखा गया था, जो भारत में बुजुर्गों के प्रति होने वाली उपेक्षा को दर्शाता है। एक अन्य सर्वे में सामने आया कि अपने ही परिजनों के दुर्व्यवहार के कारण पचहत्तर फीसद से भी ज्यादा बुजुर्ग परिवार में रहने के बावजूद अकेलेपन के शिकार हैं। अस्सी फीसद से ज्यादा बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रहते तो हैं, पर उनमें से ज्यादातर अपने बहू-बेटे से स्वयं को पीड़ित महसूस करते हैं।
बुजुर्गों की उपेक्षा के मामले हालांकि केवल भारत तक सीमत नहीं हैं। विदेशों में तो बुजुर्गों की हालत और बुरी है। मगर भारत के संदर्भ में यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक इसीलिए है, क्योंकि भारतीय समाज में सदैव संयुक्त परिवार को अहमियत दी जाती रही है, जहां बुजुर्गों का सर्वोपरि स्थान रहा है। आज के बदलते दौर में छोटे और एकल परिवार की चाहत में संयुक्त परिवार की धारणा खत्म होती जा रही है, जिसके चलते लोग जहां अपने बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं, वहीं बच्चे भी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित हो रहे हैं। अकेले रहने के कारण जहां अब बुजुर्गों के प्रति अपराध बढ़ने लगे हैं, वहीं छोटे परिवारों में बच्चों को परिवार के बुजुर्गों का सान्निध्य नहीं मिलने के कारण उनकी कार्यशैली पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या वर्ष 2011 में 10.4 करोड़ तथा 2016 में करीब 11.6 करोड़ थी और अनुमान है कि यह 2026 में बढ़ कर 17.9 करोड़ तक पहुंच जाएगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनिया भर में पैंसठ वर्ष के आसपास की आयु के लोगों की संख्या एक अरब होगी, जिनमें से अधिकांश वृद्ध भारत जैसे विकासशील देशों में होंगे, क्योंकि यहां जनसंख्या बहुत ज्यादा है।
वृद्धों में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी, क्योंकि वे प्राय: पुरुषों से लंबा जीवन जीती हैं। ‘वर्ल्ड पापुलेशन प्रास्पेक्ट्स 2019’ में बताया गया था कि दुनिया भर में जहां वर्ष 2019 में प्रत्येक ग्यारह में से एक व्यक्ति की उम्र पैंसठ वर्ष से ज्यादा थी, वहीं वर्ष 2050 तक विश्व में हर छह व्यक्तियों में से एक की आयु पैंसठ वर्ष से अधिक होगी। ऐसे में बुजुर्गों की विभिन्न समस्याओं के प्रति संजीदा होने और उम्र के इस आखिरी पड़ाव में उन्हें आर्थिक संबंल देने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की सख्त दरकार है।
कोरोना काल में अलग-थलग, जोखिम में, चिंतित और अकेले रहने के कारण बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बहुत बढ़े हैं। कुछ समय पूर्व एक गैर-सरकारी संगठन ‘एजवेल फाउंडेशन’ द्वारा कोरोना संकट से जूझते बुजुर्गों की समस्याओं को लेकर एक महीने में पांच हजार से अधिक बुजुर्गों पर एक अध्ययन कराया गया था। अध्ययनकर्ताओं का कहना था कि बुजुर्गों में स्वास्थ्य चिंताएं, अनिद्रा, डर, हताशा, चिड़चिड़ापन, तनाव, बुरे सपने आना, खालीपन की भावना, विषाणु संक्रमण की आशंका, भूख की कमी और अनिश्चित भविष्य से जुड़ी चिंता जैसी समस्याएं बढ़ी हैं।
आइआइटी मद्रास ने भी बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसकी रिपोर्ट ‘ग्लोबलाइजेशन और स्वास्थ्य’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक बुजुर्गों में मधुमेह, रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियां ज्यादा आम मौजूद मिलीं। चौंकाने वाला यह तथ्य भी सामने आया कि केवल 18.9 प्रतिशत बुजुर्गों के पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा थी और स्वास्थ्य पर उनके ज्यादा खर्च करने की क्षमता नहीं थी।
कोरोना महामारी के दौर में बुजुर्गों के बीच अकेलापन बढ़ा है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक साबित हो रहा है। समाज से ज्यादा समय तक अलग-थलग रहने के कारण बुजुर्गों में अवसाद और चिंता, अत्यधिक शराब पीना या मस्तिष्क क्रिया बिगड़ना, डिमेंशिया आदि स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं हो सकती हैं, जो उनकी प्रतिरोधक क्षमता के अलावा उनकी हृदय प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। विशेषज्ञों को चिंता इस बात को लेकर है कि अकेलेपन के कारण लोगों की मौत जल्दी हो जाती है।
बुजुर्गों की स्थिति पर आईआईटी मद्रास की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अस्सी वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की 27.5 फीसद आबादी गतिहीन है और बुजुर्गों की करीब सत्तर फीसद संख्या आंशिक या पूरी तरह से दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर है। हालांकि देश में बुजुर्गों की आर्थिक परेशानियों को कुछ हद तक दूर करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना की शुरुआत की गई थी और केंद्र सरकार द्वारा साठ वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक बुजुर्ग को दो सौ रुपए तथा उनासी वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को पांच सौ रुपए प्रतिमाह पेंशन का प्रावधान किया गया था।
आश्चर्य की बात है कि निरंतर आसमान छूती महंगाई के बावजूद पेंशन राशि में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि कुछ राज्यों द्वारा इस केंद्रीय योजना में अपनी ओर से कुछ धनराशि जोड़ कर इसे थोड़ा बढ़ाया गया, लेकिन पेंशन परिषद की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि आज भी करीब 5.8 करोड़ लोगों को पेंशन नहीं मिल पा रही है।
बहरहाल, बुजुर्गों की विभिन्न समस्याओं को लेकर समाज को संजीदा होने और विपरीत परिस्थितियों में उनका संबल बन कर उन्हें बेहतर जीवन जीने के लिए सकारात्मक माहौल उपलब्ध कराने की दरकार है। वृद्धावस्था में बुजुर्ग शारीरिक रूप से शिथिल भी हो जाएं तो परिजनों का कर्त्तव्य है कि पूरे सम्मान के साथ उनका ध्यान रखा जाए। वृद्धावस्था में विभिन्न बीमारियों के अलावा आमतौर पर घुटनों तथा जोड़ों में दर्द और रीढ़ की हड्डी के मुड़ने जैसी समस्याओं सहित शारीरिक स्थिति में बदलाव आना सामान्य बात है। बुजुर्गों को इस तरह की समस्याओं से राहत के लिए उन्हें उचित पोषण मिलना बेहद जरूरी है।
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