कंपनी के फाउंडर दीपिंदर गोयल ने अपनी पहली नौकरी के दौरान देखा कि लंच के समय कैंटीन में मेन्यू कार्ड के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है. यही वो टर्निंग पॉइंंट था जिससे फूड ऐप की नींव पड़ी.
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छोटी-छोटी घटनाएं भी बड़ा बदलाव लेकर आ सकती हैं, फूड डिलीवरी ऐप जोमैटो की नींव भी ऐसे ही पड़ी. चौंकाने वाली बात है कि इस कंपनी के फाउंडर दीपिंदर गोयल को पढ़ाई-लिखाई में खास दिलचस्पी नहीं थीं. वह छठी और 11वीं क्लास में फेल हो गए थे. यह वो पहली घटना थी जिसने दीपिंदर को जीवन में कुछ करने और कुछ बनने के लिए दबाव डाला. अपनी गलतियों से सबक लेकर उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई करने की ठानी और दिन-रात मेहनत करके IIT क्वालिफाय किया.
पढ़ाई पूरी करने के उन्होंने 2006 में मल्टीनेशनल फर्म ‘ब्रेन एंड कंपनी’ से कॅरियर की शुरुआत की. जॉब के दौरान उन्होंने देखा कि लंच के समय कैंटीन में मेन्यू कार्ड के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है. इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने मैन्यू कार्ड को वेबसाइट पर पोस्ट कर दिया ताकि लोग ऑनलाइन कार्ड देखकर ऑर्डर दे सकें. यही वो टर्निंग पॉइंट था जो जोमैटो को मार्केट में लेकर आया.
ऐसे हुई कंपनी की शुरुआत
वेबसाइट पर ऑनलाइन मैन्यू कार्ड की पहल को पसंद किया गया. यही से उन्हें ऐसी वेबसाइट लॉन्च करने का आइडिया मिला जहां पर रेस्टोरेंट के बारे में जानकारियां हों और वहां के मैन्यू का पता चल सके. इस तरह 2008 में अपने दोस्त पंकज चड्ढा के साथ मिलकर फूडीबे नाम की वेबसाइट खोली. जिसमें रेस्तरां के मेन्यू की समीक्षा भी की जाने लगी. धीरे-धीरे लोगों ने इनके काम को इतना पसंद किया कि वेबसाइट का ट्रैफिक तीन गुना तक बढ़ गया.
फूड सेक्टर में वेबसाइट इतनी पॉपुलर हुई कि रेस्तरां खुद अपना मेन्यू कार्ड अपलोड करने लगे. 2008 तक करीब 1400 से अधिक रेस्तरां रजिस्ट्रेशन करा चुके थे. हालांकि उनमें सबसे ज्यादा दिल्ली एनसीआर के थे. धीरे-धीरे इसमें मुंबई और कोलकाता समेत देश के कई बड़े शहरों के रेस्तरां को शामिल किया गया. पॉपुलैरिटी बढ़ने के कारण दोनों ने नौकरी को छोड़कर इसी पर काम करना शुरू किया.
इस तरह फूडीबे बना जोमैटो
2010 में इंफोएज के फाउंडर संजीव बिखचंदानी ने कंपनी में एक मिलियन डॉलर का निवेश किया. इसके बाद दूसरी कंपनियों ने भी इसमें निवेश की इच्छा जताई. नाम एक जैसा होने के कारण 2010 में ई-कॉमर्स कंपनी ईबे फूडीबे को लीगल नोटिस दिया तो नाम बदलने की बात कही.
इस नोटिस के बाद फूडीबे का नाम जोमैटो रखा गया. इसका नाम बदलते ही कंपनी पूरी तरह से बदल गई. भारत में सफलता का इतिहास रच दिया. यह एक फूड एग्रीगेटर कंपनी बन गई यानी ऐसी कंपनी जिसका अपना कुछ नहीं है और रेस्तरां से फूड लेकर लोगों को डिलीवरी करने का काम करती है.
24 देशों में पहुंची जोमैटो
भारत में सफलता मिलने के बाद फाउंडर दीपिंदर ने इसे दूसरे देशों तक ले जाने की योजना बनाई. 2012 में कंपनी टर्की और ब्राजील पहुंची. पिछले 10 सालों में यह कंपनी 24 देशों में अपना विस्तार कर चुकी है. इनमें न्यूजीलैंड, फिलिपींस, यूएई, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, कतर और इंडोनेशिया शामिल हैं.
जोमैटो ने न सिर्फ कंपनी का विस्तार किया बल्कि कई देशी-विदेशी कंपनियों को भी खरीदा. इनमें ऊबर ईट्स और ग्रोसरी वेंचर ब्लिंकिट फिटसो शामिल हैं.
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