संजय कुंडू
संजय कुंडू
अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस की कार्यशैली का परंपरागत तरीका थाने वाली व्यवस्था के इर्द-गिर्द रहा है। इस तंत्र में बीट (चिन्हित क्षेत्र) प्रणाली और गश्त करना, अपराध का लेखा-जोखा, जांच कार्य और अंततः अभियोगी को अदालत से सजा दिलवाकर समाज को खतरों से महफूज़ करना है।
वर्ष 1990 के दशक में न्यूयार्क निरंतर असुरक्षित बनता चला गया, नगर प्रशासन उच्च अपराध दर से जूझ रहा था और अपराध रोकने के रिवायती तौर-तरीके निष्प्रभावी हो गए। तब आगमन हुआ विलियम ब्रैटन का जो न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट के एक दूरंदेशी पुलिस कमिश्नर थे। उन्होंने ‘ब्रोकन विंडो’ नामक अपराध-निरोधक सिद्धांत दिया, इसमें जब कोई नया अपराधी पहले-पहल खिड़की तोड़कर छोटी-मोटी चोरियां करने लगता है, उसकी गतिविधियों की निगरानी और पूर्वानुमान से भविष्य में कत्ल या यौन-अपराध जैसे गंभीर अपराधों की संभावना क्षीण करना है।
न्यूयार्क पुलिस विभाग ने इसको अमली जामा पहनाने के लिए आंकड़ों के अध्ययन से किसी के अपराध करने के ढंग की शिनाख्त और अपने कामकाज में कमियों की पहचान हेतु ‘कॉम्स्टेट’ (कम्प्यूटर एंड स्टेटिस्टिक्स) नामक प्रणाली विकसित की। इसकी मदद से भावी अपराधों की ‘कुंडली’ तैयार करती है। मकसद है अनुमान लगाकर पूर्व कार्रवाई करना, जिसके बाद अपराध स्वतः घटेंगे।
हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य का पुलिस प्रमुख बनने पर हमने तीन मुख्य ध्येय निर्देशित किये– महिला और बच्चों के विरुद्ध अपराध रोकने, नशाखोर एवं तस्कर के खिलाफ कार्रवाई और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाकर परिणामस्वरूप घायल या मौतों की संख्या घटाना। लेकिन कुछ ही महीनों बाद महसूस हुआ कि परंपरागत पुलिस व्यवस्था जैसे कि अपराध-सूचना पद्धति और साल-दर-साल होने वाला विश्लेषण निष्प्रभावी है और इससे हमारे ध्येयों की पूर्ति नहीं होगी। पहले कदम के तौर पर कामकाज कॉर्पोरेट्स तर्ज पर करना यानी रोजाना के और हफ्तावार विश्लेषण सत्र करना। हर मौजूदा सप्ताह के अपराध आंकड़ों का मिलान पिछले साल के उसी हफ्ते से और फिर पिछले 5 सालों के साप्ताहिक औसत से करना शुरू किया। हमने अपराध की कार्यशैली और पद्धति की शिनाख्त के लिए स्थानिक मानचित्रण तैयार किया।
हर सोमवार को हम पिछले हफ्ते हुए तमाम अपराधों, अदालतों द्वारा सुनाए फैसलों और अलग-अलग विभागों एवं जिलों के अंतर्गत आते अपराधों का विश्लेषण करने लगे। हमने अपने वाली ‘ब्रोकन विंडो’ प्रणाली केवल अपराधों की पूर्व-रोकथाम तक सीमित न रखते हुए विस्तार करके इसमें अदालतों में आपराधिक मामलों में जल्द फैसला-सज़ा दिलवाने के लिए पुलिस की ओर से मजबूत पैरवी प्रबंधन शामिल किया। पुलिस थानों में नये वर्गीकृत रजिस्टर रखे गए। महिला एवं यौन अपराधों के दोषियों का लेखा-जोखा परिणाम देने लगा। पिछले दो सालों में, जब से व्यवस्था लागू हुई है, हमने राज्य में 4100 से अधिक यौन-अपराधियों की शिनाख्त की है, जिनमें 55 आदतन अपराधी हैं, एक ने तो 25 यौन-अपराध किए हैं। इसी तरह, आत्महत्या मामलों के रजिस्टर ने हमें यह महत्वपूर्ण जानकारी दी कि आत्महत्या के लिए उकसाना/मजबूर करना (भारतीय दंड संहिता की धारा 306) के अंतर्गत दर्ज मामलों में 72 प्रतिशत केस पीड़ित महिलाओं के हैं, जबकि स्वैच्छिक आत्महत्या का प्रयास (भादस की धारा 174) का आंकड़ा एकदम उलट है। महिलाओं और बच्चों की गुमशुदगी के रजिस्टरों से मिली जानकारी के आधार पर उन्हें खोज निकालने की हमारी सफलता बच्चों के मामलों में 95 फीसदी तो महिलाओं के लिए 85 प्रतिशत रही है। वक्त रहते इन कार्रवाइयों ने हमें अपरिपक्व अपराध की रोकथाम करने में मदद और महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध हिंसा पर नियंत्रण सुनिश्चित किया है। उनकी सुरक्षा के लिए हमने ‘सरकार पूरी तरह आपके साथ’ वाला रवैया अपनाने की सलाह दी है।
नशा तस्करी उन्मूलन के लिए बनाये गये रजिस्टरों ने हमें 2000 से अधिक नशे के सौदागरों की पहचान दी है, कुछ विदेशियों सहित इनमें 396 नियमित अपराधी हैं। हमने उन्हें निगरानी के तहत रखा है और इस धंधे से बनाई रकम और जमीन-जायदाद जब्त करने की ओर अग्रसर हैं। दो साल पहले अदालतों में नशा कारोबार से संबंधित 6500 मामलों में सुनवाई लंबित थी और 7000 से अधिक में अभी मुकदमा चलना बाकी था। कारण था कि पुलिस और निजी गवाहों की गवाहियां नहीं होती थी, जिससे तारीख पर तारीख पड़ती गईं और मामले अनिर्णीत रहे। इनकी गवाहियां सुनिश्चित करने को हमने अदालती कार्रवाई का मानचित्रण तैयार किया। इससे मुकदमों की गति तेज हुई है और मामलों में फैसले आने लगे हैं, अधिकांश में दोषियों को सज़ा हुई है।
चूंकि कुछ नशीले पदार्थ सोने से भी अधिक कीमती हैं, इसलिए बरामदगी उपरांत थानों में रखी गई नशे की खेप की चोरी और सेंधमारी रोकना चुनौती है, इनकी पुनः बिक्री की संभावना भी रहती है। इसके निदान हेतु हमने हर हफ्ते पकड़ा गया नशीला पदार्थ नष्ट करना सुनिश्चित किया। अदालतों में लंबित मामलों का मानचित्रण करने के बाद हमने सरकार को फास्ट-ट्रैक अदालतें बनाकर निर्णय-अवधि कम करने का परामर्श दिया है, विशेषकर यौन, बाल और नशा तस्करी के आपराधिक मामलों में।
पहाड़ी सूबा होने के चलते हिमाचल में सड़क दुर्घटनाएं कम करना एक अन्य चुनौती है। इसके लिए भी हमने स्थानिक मानचित्रण तैयार किया। यह बताता है कि किनारे की रेलिंग या पैरापिट न होने की वजह से 22 प्रतिशत दुर्घटनाएं खाई में गिरने की हैं, 19 फीसदी मामले पैदल पथिकों से संबंधित हैं, क्योंकि सड़क किनारे पैदल पटरी का इंतजाम नदारद है। 25 प्रतिशत दुर्घटनाएं शाम 6 बजे से रात 9 बजे के बीच होती हैं। चूंकि हिमाचल प्रदेश में 2 फीसदी से कम सड़कें रेलिंग या पैरापिट युक्त हैं, हमने सार्वजनिक कार्य विभाग (पीडब्ल्यूडी) से विनती की है कि पहले 50 सबसे अधिक प्रभावित जगहों पर इन्हें बनाया जाए।
पैदल-पथिक दुर्घटनाएं, जो अधिकांशतः राज्य के मैदानी भाग में होती हैं, इनके निदान हेतु हमने पीडब्ल्यूडी से अपने सड़क डिज़ाइन में परिवर्तन कर पैदल-पथ शामिल करने को कहा है। हमने सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक ज्यादातर दुर्घटनाएं होने के चलते ट्रैफिक पुलिस की तैनाती सुनिश्चित की है। साथ ही इंटेलीजेंट ट्रैफिक सिस्टम लगाना है, जो फिलहाल केवल पर्यटन या तीर्थाटन केंद्र वाले 15 शहरों में ही है। विश्व बैंक ने शिमला (खाई में गिरने) और नूरपुर (पैदल पथिक दुर्घटना) में किये हमारे काम को मान्यता देते हुए इन दो जिलों में सड़क इंजीनियरिंग में सुधार, मार्ग सुरक्षा तंत्र और पुलिस की सड़क अनुशासन लागू करवाने की क्षमता में सुधार के लिए कार्ययोजना को मंजूरी दी है। मंजूरशुदा कुल 120 करोड़ रुपये रकम में 40 करोड़ रुपये पुलिस को राज्य व्यापी ट्रैफिक नियंत्रण केंद्र स्थापित करने, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस युक्त कैमरे और स्पीड-राडार खरीदने, निरोधक दस्ते एवं वाहन और एम्बुलेंस का प्रबंधन करने के लिए रखे गए हैं।
लब्बोलुआब यह कि हमारा ‘ब्रोकन विंडो 2.0’ वक्त रहते जुर्म की संभावना क्षीण करने, सकल अपराध-हिंसा-महिला और बच्चों के विरुद्ध दुष्कर्म व सड़क दुर्घटना दर घटाने में मददगार हुआ है।
लेखक हिमाचल प्रदेश पुलिस महानिदेशक हैं।
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