MP चुनाव का बिगुल बजा, UP की तर्ज पर धर्म बनेगा सबसे बड़ा मुद्दा; जानिए प्रदेश की सियासत का सियासी गणित
BHOPAL. कुछ महीन पहले यूपी में हुए विधानसभा चुनाव से पहले के नजारे आपको याद ही होंगे। उत्तर प्रदेश के बाकी मुद्दों के साथ धर्म का मुद्दा भी हावी रहा। इसके तहत पीएम नरेंद्र मोदी कभी गंगा में डुबकी लगाते दिखे तो कभी डमरू बजाते दिखे। धर्म के इसी मुद्दे पर बीजेपी अब मध्यप्रदेश में भी चुनावी दांव लगाने जा रही है। हालांकि रणनीति यूपी के चुनाव से एकदम अलग होने वाली है। धर्म और मजहब के नाम पर यूपी जितना संवेदनशील है। उतनी हार्ड लाइन लेकर चलना एमपी में संभव नहीं है। लिहाजा बीजेपी ने यहां ऐसी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है, जो यूपी की रिलिजन बेस्ड पॉलीटिक्स से भी ज्यादा बारीक होगी। जिसे तैयार करने के लिए इतनी डिटेलिंग में काम हो रहा है कि जिला लेवल से नीचे जाकर बूथ लेवल पर जानकारी बटोरी जा रही है। नजर सिर्फ बड़े मंदिरों या धार्मिक स्थलों पर नहीं है। हर उस जगह पर है, जहां छोटा-मोटा धार्मिक आयोजन ही क्यों न होता हो। कुछ छोटे कद के धार्मिक मास लीडर्स ही क्यों न हों। बीजेपी की नजर से कुछ बचा न रहे ऐसी तैयारी शुरू हो चुकी है। अब बड़े धर्मगुरुओं सहित छोटे-मोटे मठाधीश तक बीजेपी के मिशन 2023 का हिस्सा बनने वाले हैं।
इस बार स्ट्रेटजी बूथ–बूथ के हिसाब से बनाई जाएगी
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब भी एक साल से ज्यादा का वक्त है। लेकिन बीजेपी इस कदर बैठकों में मशगूल हो चुकी है कि किसी मोर्चे पर कोई कमी नहीं छूटने देने वाली है। कुछ ही दिन पहले रातापानी में भी बैठक हुई। सुनने आया है कि वहां राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने नगरीय निकाय चुनाव में हार के कारणों को ढूंढने और उन्हें खत्म करने का मंत्र दिया है। साथ ही बूथों तक जाने की जरूरत भी बताई। अब बीजेपी के स्थानीय नेता उस मंत्र को तो घोंट कर पी ही गए हैं। उससे आगे की रणनीति पर भी तेजी से काम शुरु कर रहे हैं। इस रणनीति का फोकस बूथ स्तर तक है। यानी इस बार स्ट्रेटजी बूथ–बूथ के हिसाब से बनाई जाएगी। हर बूथ के तहत आने वाले मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे पर बीजेपी की नजर होगी। इनसे जुड़ी हर बारीक सूचना बीजेपी अपने डाटा बैंक में ला रही है। इतना ही नहीं, धार्मिक आयोजन के कर्ताधर्ता, किस राजनीतिक दल को सपोर्ट करते हैं, उनका डेटा भी तैयार किया जा रहा है। पार्टी ने फिलहाल ये जिम्मेदारी सांसद और विधायकों को सौंपी है। इस जानकारी को जुटाने के लिए सरल नाम की एप भी तैयार की गई है।
अब अगर आप भी ये एप डाउनलोड करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि ये जान सकें कि बीजेपी को अब तक किस किस्म का डाटा मिला है तो जरा रुक जाइए। क्योंकि इस एप का डाटा सबको दिखने वाला नहीं है। बीजेपी के सारे कार्यकर्ताओं को भी नहीं। इस एप को फुलप्रूफ सुरक्षा दी गई है। ये एप ओटीपी प्रोटेक्टेड है। जो लोग एप यूज करने के लिए अधिकृत हैं सिर्फ उन्हें ही ओटीपी मिलता है। वही इसमें मौजूद डाटा का उपयोग कर सकते हैं।
किस क्षेत्र के लोग क्या राय रखते
इस एप के जरिए ऐसे बूथों पर नजर होगी, जहां बीजेपी लगातार हार रही है या कमजोर प्रदर्शन कर रही है। बारीक जानकारी की तैयारी कुछ ऐसी है कि क्षेत्र के लोग किस मुद्दे पर क्या राय रखते हैं। इसकी जानकारी भी एप पर फीड होगी। इसके अलावा बूथों के तहत कितने धार्मिक स्थल, जातियां और सामाजिक नेताओं का राजनीतिक प्रभाव है, यह जानकारी जुटाई जा रही है।
अगर आप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री या किसी मंत्री की ट्विटर पर फॉलो करते हों. तो, जरा उनकी डीपी पर गौर कीजिए. भग्वा रंग में रंगी रहने वाली बीजेपी फिलहाल महाकाल की भक्ति में रमी दिख रही है. 11 अक्टूबर को महाकाल लोक भक्तों को समर्पित होगा. खुद पीएम मोदी इस काम के लिए महाकाल के दरबार में हाजिर होंगे. उस इवेंट की ब्राडिंग का जबरदस्त नमूना है बीजेपी नेताओं की डीपी. जहां सिर्फ महाकाल लोक ही नजर आ रहा है. ये एक बानगी भर है. एमपी में धर्म के नाम पर आगे बढ़ने का आगाज बीजेपी महाकाल की नगरी से ही करने जा रही है. कहते हैं महाकाल की नगरी में कोई राजा रात नहीं बिताता. क्योंकि उज्जैन का राजा सिर्फ एक हैं वो हैं महाकाल. उनकी नगरी में शिवराज ने कैबिनेट तो की लेकिन अपनी कुर्सी पर बैठने की जुर्रत नहीं की. वहां महाकाल की ही विराजित थे. अब उस नगरी में देश से लेकर प्रदेश तक के मुखिया मौजूद होंगे. भव्य कार्यक्रम का आयोजन होगा. हर हर महादेव और जय महाकाल के नारों के साथ चुनावी आगाज भी हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी.
बीजेपी विधायक-सांसदों से उनके इलाके के मंदिर-मस्जिदों की मांगी
महाकाल के आशीर्वाद के साथ बीजेपी अपनी सियासी सफर पर निकल पड़ेगी। रथ पर सवार महारथी और रथी तो बहुत होंगे लेकिन सबकी सारथी होगी सरल एप, जो सही दिशा बताने वाली है। किस बूथ पर पहुंच कर किस धर्म को कितनी तवज्जो देनी है। कौन से धर्म गुरू को मंच पर बुलाना है। किसके दरबार में खुद हाजिरी लगाना है ये सब कुछ सरल एप पर मौजूद डेटा के जरिए ही तय होने वाला है। इस एप में विधायक और सांसदों को उनके विधानसभा और संसदीय क्षेत्र के कमजोर बूथ की जानकारी देनी थी, लेकिन अब जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक बीजेपी विधायक और सांसदों से उनके इलाके के मंदिर और मस्जिदों की जानकारी भी जुटा रही है। इतना ही नहीं उनके विधानसभा क्षेत्र में होने वाले प्रमुख धार्मिक आयोजनों की डिटेल भी विधायक और सांसदों को एप के जरिए देनी होगी। धार्मिक स्थलों की जानकारी जुटाने के बाद उनके संचालकों और उनसे जुड़े प्रभावशाली पदाधिकारियों को पार्टी से जोड़ा जाएगा। जिन धार्मिक स्थलों के प्रति लोगों में ज्यादा आस्था है, वहां बीजेपी आयोजन करेगी। इसी तरह जातिगत वोटर्स को साधने के लिए सामजिक संगठनों में पैठ बनाई जाएगी। उन्हें पार्टी के आयोजन में महत्व दिया जाएगा। सभी वर्गों के धार्मिक आयोजन में पार्टी के नेता शामिल होंगे। सॉफ्ट हिंदुत्व की वकालत करने वाली कांग्रेस अब धर्म की लड़ाई में एमपी में भी बीजेपी से पिछड़ती दिखाई दे रही है।
बीजेपी का सरल एप
हालांकि कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि इस तरह बूथों के हिसाब से रणनीति बदलते बदलते बीजेपी खुद कंफ्यूज हो जाएगी और अपने ही प्लान में उलझ कर रह जाएगी। कांग्रेस के मुताबिक ये स्ट्रेटजी एमपी में खास कमाल दिखाने वाली नहीं है। लेकिन कांग्रेस ये भूल रही है कि इसी तरह माइक्रो लेवल की प्लानिंग बीजेपी ने यूपी के लिए भी की थी। इसका नतीजा एक जोरदार और प्रचंड जीत थी जो बीजेपी के नाम हो गई। यूपी में बीजेपी का विजन क्लीयर था। पीएम मोदी पूरे प्रदेश के लिए पॉपुलर फेस थे। लेकिन जिन इलाकों में किसान आंदोलन को लेकर नाराजगी थी, वहां उनकी सभाओं की गिनती कम थी। जिन इलाकों में योगी के नाम से ब्राह्मण वोटर बिदका हुआ था। वहां की जिम्मेदारी अमित शाह और जेपी नड्डा ने संभाली। इस तरह इलाके के अनुसार रणनीति बनाकर बीजेपी ने यूपी फतह किया। अब इस तरह की डिटेल प्लानिंग एमपी में थोड़ी और गहराई से की जा रही है। यहां प्लानिंग का हिस्सा अंचल नहीं बल्कि सबसे छोटी इकाई बूथ है। इसके आधार पर बीजेपी रणनीति बनाएगी। सरल एप के जरिए बीजेपी के हर कार्यकर्ता की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध होगी। जिनसे सीधे बात कर बीजेपी रणनीति बना सकती है उसमें रद्दो बदल भी कर सकती है। देखना ये है कि तकनीक के नजरिए से फुलप्रूफ ये प्लानिंग की क्या कार्यकर्ताओं की सुस्ती और नाराजगी दूर कर बीजेपी को जीत के कितना करीब ले जाती है।
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