हाइलाइट्स
लीप सेंकड के कारण घड़ियों में बार-बार समय बदलना पड़ता है.
सकी वजह पृथ्वी के घूर्णन और आणविक घड़ियों में तालमेल बैठाने की जरूरत है.
अब इससे कई तरह की समस्याओं से छुटकारा मिल सकेगा.
जैसे जैसे इंसान तकनीकी तौर पर और ज्यादा उन्नत होता जा रहा है, उसके समय के सटीक मापन की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. अभी दिन के मापन का आधार पृथ्वी के घूर्णन (Rotation of Earth) को माना जाता है. यानि वह समय जिसमें पृथ्वी खुद का एक चक्कर लगाती है. यह समय घड़ियों के लिए तो 24 घंटे हैं, लेकिन पृथ्वी के अपने घूर्णन का यह सटीक समय (Exact time duration) नही हैं. इसीलिए इससे सामन्जस्य बैठाने के लिए लीप वर्ष का प्रावधान है, जिसके कारण हर चार साल में साल का एक दिन बढ़ाना पड़ता है. इसके अलावा एक लीप सेंकड की भी व्यवस्था (Usage of Leap Second) है, लेकिन अब फैसला किया गया है कि लीप सेकेंड 2035 तक अब उपयोग में नहीं लाया जाएगा.
13 साल तक खत्म होगी यह व्यवस्था
दुनिया में समय के मापन के लिए जिम्मेदार वैश्विक संस्था ने बताया कि फ्रांस में हुई दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने सरकारी प्रतिनिधियों की बैठक में शुक्रवार को इस बारे में विचार किया गया और उन्होंने बहुमत से लीप सेंकेंड को साल 2035 तक हटाने पर सहमति व्यक्त कर दी. इससे समय समय पर दुनिया भर में घड़ियों में सेकेंड के अनुसार बदलाव करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
आम लोगों के लिए समस्या नहीं
लीप सेंकेड पिछली आधी सदी से पृथ्वी के घूर्णन और सटीक आणविक घड़ी के बीच सामन्जस्य बैठाने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं. इसकी मुख्य वजह पृथ्वी के घूर्णन धीमा होना है जिससे बदलाव करने की जरूरत पड़ती है. अधिकांश लोगों के लिए लीप सेंकड का कोई महत्व नहीं होता है. लेकिन जिन तंत्रों को सटीक समय की जरूरत होती है उसके लिए यह एक सिरदर्द बन गया है.
कई जगह परेशानी की वजह
सैटेलाइट संचालन, सॉफ्टवेयर, दूरसंचार, व्यापार, अंतरिक्ष यात्रा जैसे कई कार्यों में सेंकेड के कुछ हिस्सों तक की सटीकता की जरूरत होती है जिससे घड़ियों का सटीक तालमेल होना जरूरी हो जाता है जिससे लीप सेकंड का बदलाव समूचे तंत्र समूहों में करना होता है जो परेशान का सबब बन जाता है.
समय प्रवाह की अनियमितता रुकेगी
इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्श (BIPM) दुनिया में कोऑर्डिनेटड यूनिवर्सल टाइम (UTC) के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है जिसे पहले से सुनिश्चित किए गए मानदंडों के अनुसार मानक समय दुनिया के लिए निर्धारित करना होता है. अभी 59 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई है. बीआईपीएम के समय विभाग प्रमुख पैट्रिजिया टावेला ने बताया कि यह ऐतिहासिक फैसला अनियमित लीप सेकेंड के कारण समय के प्रवाह में होने वाली अनियमितताओं को रोक सकेगा.
क्या है लीप सेकेंड की व्यवस्था
टवेला ने जोर देते हुए स्पष्ट किया कि यूटीसी और पृथ्वी के घूर्णन के बीचके संबंध को खत्म नहीं किया जा रहा है और लोगों के लिए कुछ भी नहीं बदलेगा. आणविक घड़ियों के आने से समय के सटीक मापन का युग आया और पृथ्वी के धीमे घूर्णन के कारण दोनों समयों में सटीक तालमेल नहीं है. इसके हटाने किलिए 1972 में लीप सेंकड की धारणा शुरु हुई 27 बार अलग-अलग समय पर सेकेंड घड़ियों में जोड़ा जा चुका है.
समयावधि को लेकर मतभेद
टवेला ने बताया कि रूस ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया था और इसकी वजह सिद्धांत नहीं था बल्कि मॉस्को चाहता था कि इसकी अंतिम तारीख 2040 तक बढ़ा दी जाए. रूस को अपने विशाल भौगोलिक स्थिति और क्षेत्र के कारण कई टाइम जोन रखनी पड़ती है. वहीं दूसरे देश 2025 या 2030 तक ही इस व्यवस्था को रखना चाहते थे. इसलिए 2035 पर सहमति बन सकी. अमेरिका और फ्रांस ने इस बदलाव के प्रमुखतौर पर पैरवी कर अगुआई की.
अब साल 2035 तक समय के अंतर को ज्यादा मान तक बढ़ने दिया जाएगा. यह कितना ज्यादा होगा यह अभी तय नहीं हुआ है. इसका फैसला बाद में होगा. इसका एक समाधान यह है कि इस अंतर को एक मिनट तक बढ़ने दिया जाए और फिर तब उसमें तालमेल बैठाया जाए. लेकिन यह 50 से 100 सालों के बीच कब तक होगा यह कहना मुश्किल है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Earth, Research, Science, World
FIRST PUBLISHED : November 22, 2022, 09:58 IST
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post