न्यूज11 भारत / आशीष शास्त्री
सिमडेगा: अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप फुटबॉल में झारखंड की 6 बेटियों का चयन हुआ है. जिसमें एक सिमडेगा की बेटी पूर्णिमा कुमारी भी शामिल है. जिसने फर्श से अर्श तक कि सफर कर आज ये मुकाम हासिल की है. इसकी कामयाबी के पीछे इसके परिवार के बहुत त्याग, संघर्ष, पलायन और सरकारी उदासिनता का दर्द भी छिपा है. पढ़ें खास रिपोर्ट
सिमडेगा जिला के ठेठाईटांगर प्रखंड के जामबहार गांव के टेढे-मेढे कच्ची पगडंडी जैसे रास्ते और बरसात की बारिश से संघर्ष करता मिट्टी का कच्चा घर. इस घर के भीतर कच्ची धुंए युक्त रसोई जिसके ऊपर चकोड़ की साग बन रही है. ये घर ये गलियां वही है. जहां की माटी से खेल कर पूर्णिमा आज फीका वर्ल्ड कप के लिए जा रही है. ये तस्वीर है उस संघर्ष की, ये तस्वीर है उस त्याग की जो पूर्णिमा को इस मुकाम तक पंहुचाने के लिए उसके परिवार ने किया. मूलभूत सुविधाओं से दूर गरीबी का दंश झेलते हुए भी यह परिवार आज खुश है कि बेटी पूर्णिमा सफलता की सीढ़ी पर चढ़ते हुए उस मुकाम पर जा रही है. जहां तक पंहुचना हर खिलाड़ी का सपना होता है. पूर्णिमा को यहां तक पंहुचाने के लिए पूर्णिमा का यह परिवार पलायन के साथ-साथ बहुत से दर्दों को झेला है. पूर्णिमा की बड़ी बहन ने बताया कि पूर्णिमा दूध पीती बच्ची थी जब उसकी मां का देहांत हो गया था. तब यही बड़ी बहन सन्मत कुमारी ने अपने छोटे भाई-बहनों को प्यार दुलार कर बड़ा किया. भाई-बहनों के पालन-पोषण के कारण बड़ी बहन ने शादी तक नहीं की. लेकिन उसे इस बात का कोई गम नहीं, पूर्णिमा की कामयाबी पर उसने अपने त्याग के गम को भुला दिया. उसे अफसोस है तो बस यही कि आज तक उसके परिवार को कोई सरकारी सहयोग नहीं मिल सका है. उसके घर तक पंहुचने के लिए सड़क तक नहीं है. पगडंडीनुमा कच्चे रास्तों से वे अवागमन करते हैं. मिट्टी का कच्चा मकान है, जो बरसात में हर तरफ से परेशानी खड़ी करती है. पीने का पानी भी दूर से लाना पड़ता है. इन तकलीफों के बीच भी उसने पूर्णिमा को फुटबॉल की मुकाम तक पंहुचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
पूर्णिमा के कामयाबी के लिए परिवार का संघर्ष यहीं खत्म नहीं होता है. परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी इसलिए पूर्णिमा का भाई रंजीत केरल जाकर काम करने लगा. पलायन के इस दर्द को बर्षों तक इस परिवार ने झेला. लेकिन फिर पिता कमजोर हुए तो भाई रंजीत वापस गांव लौटकर अब बाजार-बाजार ठेला लगाकर चौमिन बेचने लगा. उनके परिवार को आज तक कोई भी सरकारी सहयोग नहीं मिल सका है. फिर भी पूर्णिमा की कामयाबी पर भाई पलायन के दर्द और तकलीफ को भूल खुश है. वह कहता है कि परिवार का संघर्ष पूर्णिमा की कामयाबी के आगे छोटा है.
कहते हैं कि हौसले भी किसी हकीम से कम नहीं होते हर तकलीफ में दर्द की दवा बन जाते हैं. यही हौसला और बेटी की कामयाबी आज तकलीफ झेलते इस परिवार के लिए खुशियों की दवा बन गई है. आज पूर्णिमा के पिता जीतु मांझी बेटी की कामयाबी पर खुश तो हैं. लेकिन सरकार की बेरूखी से उदास भी हैं. बेटी को देश के लिए समर्पित कर देने वाले पिता के मन में तकलीफ है कि सरकार उनके परिवार की सुध आज तक नहीं ली. ना ही प्रशासनिक अधिकारी अभी तक उनके पास आए.
खैर, आज बेटी पूर्णिमा वर्ल्ड कप के लिए चयनित हो गई है. यह इस परिवार के साथ-साथ खेल की नगरी सिमडेगा के लिए भी गौरव की बात है. सिमडेगा फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कुमार शर्मा शुक्रवार को पूर्णिमा के घर पंहुचे और परिवार को बधाई दी. वे भी इस परिवार की तकलीफ देख बहुत मर्माहत हुए. उन्होंने कहा है कि फुटबॉल एसोसिएशन जिला प्रशासन से पूर्णिमा के घर तक सुविधा देने की मांग करेगी.
सिमडेगा की बेटी पूर्णिमा का चयन फीका वर्ल्ड कप में होने से सभी खुश हैं. लेकिन आज तक इस कामयाबी के पीछे छिपे दर्द को किसी ने नहीं देखा. सरकार और सरकारी तंत्र की अगर इस परिवार पर नजरें इनायत हो जाए तो इस परिवार की तकलीफें कम होकर बेटी की कामयाबी की खुशियां भी दोगुनी हो जाएगी.
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