नयी दिल्ली, पांच नवंबर (भाषा) यूएनएफसीसीसी के लिए कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) का 27वां संस्करण रविवार से शुरू होगा और इसमें भारत जलवायु वित्त की परिभाषा पर स्पष्टता की मांग करेगा तथा विकसित देशों को प्रौद्योगिकी एवं वित्त की आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा।
मिस्र के शर्म अल-शेख में छह से आठ नवंबर तक आयोजित होने वाले सम्मेलन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 198 पक्ष वर्ष में एक बार इस बात पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा होते हैं कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से संयुक्त रूप से किस तरह निपटा जाए।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और 100 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होंगे या नहीं।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, भारत जलवायु वित्त से संबंधित चर्चाओं और इसकी परिभाषा पर स्पष्टता को लेकर पर्याप्त प्रगति की आशा करता है। मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त की परिभाषा पर अधिक स्पष्टता की जरूरत है ताकि जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त प्रवाह की सीमा का सटीक आकलन हो सके।
यादव ने बृहस्पतिवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘भारत इस बारे में स्पष्टता की मांग करेगा कि जलवायु वित्त क्या है। इसमें अनुदान, ऋण या सब्सिडी जैसी चीजों पर स्पष्टता की मांग की जाएगी।’’
वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में सीओपी-15 में विकसित देशों ने विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता जताई लेकिन वे ऐसा करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। अन्य विकासशील देशों के साथ भारत इस वादे को पूरा करने के लिए अमीर देशों पर दबाव बढ़ाएगा।
यूएनएफसीसीसी की वित्त पर स्थायी समिति के चौथे द्विवार्षिक मूल्यांकन के अनुसार, अक्टूबर 2020 में विकसित देशों द्वारा रिपोर्ट की गई कुल सार्वजनिक वित्तीय सहायता 2017 में 45.4 अरब डॉलर और 2018 में 51.8 अरब डॉलर थी।
भारत सहित विकासशील देश अमीर देशों को एक नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य को लेकर सहमत होने के लिए प्रेरित करेंगे। इसे जलवायु वित्त पर नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) के रूप में भी जाना जाता है।
टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट) के डिस्टिंगग्विश्ड फैलो और यूएनएफसीसीसी के तहत पूर्व जलवायु वार्ताकार आर आर रश्मी ने कहा, ‘‘वित्तीय गतिशीलता के बढ़े हुए पैमाने पर कोई भी सहमति सीओपी-27 से स्वागत योग्य कदम हो सकता है।’’
रश्मि ने कहा, ‘‘पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर होने से बहुत पहले विकासशील देशों के लिए 100 अरब डॉलर के आंकड़े पर सहमति हुई थी। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के आधार पर 2030 तक विकासशील दुनिया की कुल संचयी वित्तपोषण आवश्यकताएं 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर तक हैं।’’
मंत्रालय ने कहा कि गरीब और विकासशील देश भी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ‘‘नुकसान और क्षति’’ के लिए एक नयी वित्त सुविधा देखना चाहते हैं। उदाहरण के लिए बाढ़ से विस्थापित लोगों को स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक धन।
पेरिस समझौते के तहत, सभी पक्षों ने अनुकूलन पर एक वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) रखने का निर्णय लिया था जिसका उद्देश्य अनुकूलन कार्यों पर देशों की प्रगति पर नज़र रखने और मूल्यांकन करने और अनुकूलन निधि को उत्प्रेरित करने के लिए एक प्रणाली प्रदान करना है। भारत का कहना है कि जीजीए के संबंध में महत्वपूर्ण प्रगति की आवश्यकता है।
भारत का कहना है कि सबसे पहले ‘‘प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचना चाहिए और विकसित देशों को इसके लिए खाका दिखाने को कहा जाना चाहिए।’’
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भारत फिर से सभी देशों को ‘लाइफ’ मुहिम- ‘‘पर्यावरण के लिए जीवन शैली’’ में शामिल होने के अपने आमंत्रण पर जोर देगा। मिशन ‘लाइफ’ का उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा देना है।
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