शी जिनपिंग सत्ता संभालने के मामले में महत्वाकांक्षी, साहसी और आश्वस्त हैं. चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के विशेषाधिकार प्राप्त एलीट वर्ग में पैदा हुए गुणों को उन्होंने आत्मसात किया है.
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हाल ही में अफवाह उड़ी थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को घर में नजरबंद कर दिया गया है, लेकिन यह सच्चाई से अधिक महज कल्पना थी. इससे पता चलता है कि शी अब चीन के सबसे ताकतवर केन्द्रीय शख्सियत हैं, जिनकी तुलना माओ और देंग शियाओपिंग से की जा सकती है. अक्टूबर में चीन की 20वीं पार्टी कांग्रेस के बाद शी द्वारा नेतृत्व की कमान अपने हाथों में रखना एक पूर्व निश्चित निष्कर्ष लगता है. इसके बाद वह माओ और देंग के बाद लगातार दो दशक तक देश का नेतृत्व करने वाले पहले चीनी नेता बन जाएंगे. नवंबर 2012 में उनका पहला कार्यकाल शुरू करने के तुरंत बाद उनके अनुयायियों ने कहा था कि ‘शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने माओ और देंग शियाओपिंग की तरह तीसरे नए 30-वर्षीय युग की शुरुआत की है’.
शी जिनपिंग सत्ता संभालने के मामले में महत्वाकांक्षी, साहसी और आश्वस्त हैं. चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के विशेषाधिकार प्राप्त एलीट वर्ग में पैदा हुए गुणों को उन्होंने आत्मसात किया है. क्यूई शिन और जनरल शी झोंगक्सुन, माओ के भरोसेमंद लेफ्टिनेंटों में से एक, के बेटे के रूप में जब 1953 में शी का जन्म हुआ था, तब शी जिनपिंग ने सीसीपी अभिजात वर्ग के बच्चों के लिए बने विशेष स्कूल में पढ़ाई की थी.
उन्हें और उनके सहपाठियों और उनके सामाजिक हलकों के साथियों के बीच यही सोच विकसित की गई कि उन्हें चीन के ‘पुराने’ गौरव को बहाल करना है. चीन के स्कूली छात्रों को यही सिखाया जाता है कि 1840-1919 के बीच चीन का जो नक्शा था, उसी की “पुनर्प्राप्ति” उनका एक पवित्र कर्तव्य है. यह मानसिकता न केवल शी जिनपिंग बल्कि अन्य ‘राजकुमारों’ या सीसीपी कैडरों के बच्चों में पैदा की गई.
सीसीपी का प्रकोप
शी ने सीसीपी की सत्ता की राजनीति का काला पक्ष भी देखा है. उनके पिता को सीसीपी से ‘एक तरह से अलग’ कर दिया गया था और 1963 में हेनान प्रांत भेज दिया गया था. उस समय शी 10 साल के थे. मई 1966 में एक सांस्कृतिक क्रांति ने उनकी माध्यमिक शिक्षा पर ब्रेक लगा दिया था. ‘रेड गार्ड्स’ ने शी परिवार के घर में तोड़फोड़ की और शी की बड़ी बहन शी हेपिंग ने दबाव में आकर आत्महत्या कर ली थी. उनकी मां को अपमानित किया गया, क्रांति के दुश्मन के रूप में भीड़ के सामने परेड कराया गया और सार्वजनिक रूप से अपने पिता की निंदा करने के लिए मजबूर किया गया. 1968 में अपने पिता की गिरफ्तारी के बाद शी को शानक्सी के लियांगजियाहे गांव में काम करने के लिए भेजा गया.
अपने शुरुआती वर्षों में उन्होंने और उनके परिवार ने जो दुर्भाग्य और पीड़ा देखी, उसके बावजूद शी विदेश नहीं गए या सीसीपी कैडर के दूसरे बच्चों की तरह सरकारी नौकरी ज्वाइन नहीं किया. इसके बजाय उन्होंने सीसीपी में शामिल होने का जोखिम भरा निर्णय लिया, वह भी ऐसे समय में जब उनके पास 1979 में देंग शियाओपिंग के सत्ता में लौटने तक कोई ‘संरक्षक’ नहीं था. इन अनुभवों ने उन्हें मानसिक रूप से और उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को मजबूत किया. हालांकि, सीसीपी के साथ उनके पारिवारिक संबंधों ने सीसीपी में उनके उदय को सुविधाजनक बनाया. 1980 के दशक में उनकी मां क्यूई शिन द्वारा हेबेई के पार्टी सचिव को लिखे गए पत्र से यह साफ भी होता है. इस पत्र में उन्होंने अपने बेटे को प्रांतीय पार्टी की स्थायी समिति में पदोन्नत करने का आग्रह किया था. हालांकि, पार्टी सचिव ने मना कर दिया और परंपरा के खिलाफ इस अनुरोध को सार्वजनिक कर दिया.
नवंबर 2012 में कार्यभार संभालने के कुछ दिनों के भीतर, आत्म-संदेह के बिना, शी ने पार्टी, सेना और सरकारी नौकरशाही को एक साथ ‘सुधारने’ का काम किया. और प्राथमिक स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक को अपने वैचारिक दायरे में समेटने का काम किया. उन्होंने पूरी तरह से पार्टी का ‘सुधार’ शुरू किया, एक भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया जिसका उद्देश्य विपक्ष को भी खत्म करना था और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पुनर्गठन का काम किया. उनके पूर्ववर्ती हू जिंताओ के समय से यह काम लंबित था, क्योंकि जिंताओं पर्याप्त समर्थन जुटाने में सक्षम नहीं थे. सीसीपी की विचारधारा के प्रति शी की उत्कट प्रतिबद्धता स्पष्ट रही.
किसी भी नेता के लिए राज्य के सभी अंगों में एक साथ बदलाव लाना बहुत ही असामान्य बात है, लेकिन शी ने यह काम किया. दो साल के भीतर पीएलए के 40,000 से अधिक अधिकारियों, जिनमें मेजर जनरल के रैंक से 150 से ज्यादा अधिकारी थे और केंद्रीय उपमंत्रियों के समकक्ष और उससे ऊपर के 175 कैडर को भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों में बर्खास्त कर दिया गया और जेल में डाल दिया गया. पार्टी और पीएलए में शी के लगातार राजनीतिक बदलाव किए. इन बदलावों के जरिए उन्होंने अपनी विचारधारा को मजबूत किया. अपने प्रति वफादार कर्मियों की नियुक्ति सुनिश्चित की. और यह सुनिश्चित किया कि पीएलए, सीसीपी और उनके लिए “बिल्कुल आज्ञाकारी” बन जाए. इस प्रक्रिया में उन्होंने चीन को और भी अधिक अधिनायकवादी राज्य बना दिया.
पार्टी का समर्थन
अक्टूबर 2012 में 18वीं पार्टी कांग्रेस में चीन के तीन शीर्ष पदों पर शी की नियुक्ति ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि उन्हें पार्टी का समर्थन प्राप्त था. पार्टी ने उन्हें पार्टी की विचारधारा का प्रसार करने और उसका वर्चस्व बढ़ाने और पार्टी की पूर्व-प्रतिष्ठित स्थिति सुनिश्चित करने के लिए पूरा समर्थन दिया. पार्टी के मौजूदा और रिटायर सदस्य और उनके परिवार, जिनमें से लगभग सभी को कई तरह के लाभ और विशेषाधिकार दिए गए हैं, सीसीपी के लिए एक भरोसेमंद वफादार तैयार करते हैं. वे सीसीपी के मौजूदा नेतृत्व को बनाए रखना चाहते हैं. वे शी का समर्थन करेंगे और शी भी उन पर निर्भर होंगे, लेकिन अगर उन्हें लगता है कि पार्टी या उसके नेतृत्व को खतरा है, तो वे पार्टी को बचाने के लिए उन्हें नेतृत्व से बाहर भी कर सकते हैं. साथ ही 20वीं पार्टी कांग्रेस द्वारा शी के तीसरे कार्यकाल पर मंजूरी लगाने का मतलब होगा कि सीसीपी ने उनकी घरेलू और विदेशी नीतियों का समर्थन किया है.
जैसे ही शी अक्टूबर 2022 में अपना तीसरा 5 साल का कार्यकाल शुरू करेंगे, उन्हें अपने द्वारा घोषित कुछ वादों और महत्वाकांक्षाओं पर भी खरा उतरना होगा. यह निश्चित है कि वह कड़े घरेलू सुरक्षा कानूनों का विस्तार करना और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को जारी रखेंगे. उन्होंने वैश्विक विकास पहल (GDI) और वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI) के माध्यम से राष्ट्रीय विकास को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा है. लेकिन धीमी अर्थव्यवस्था, जिसकी वजह से कुछ महीने पहले सरकारी कर्मचारियों के वेतन में 30 फीसदी की कमी करनी पड़ी, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती जीवन लागत, ‘जीरो कोविड’ नीति और विश्व स्तर पर चीन विरोधी भावना में उछाल से लोग नाराज हैं. ये कारण उनके तीसरे कार्यकाल के लिए खतरा बन सकते हैं.
आबादी के बड़े हिस्से में, विशेष रूप से चीन के “राजकुमारों”, बुद्धिजीवियों और छात्रों के शक्तिशाली वर्ग और देश के रोजगार में 80 फीसदी का योगदान देने वाले निजी उद्यमियों के बीच असंतोष बना हुआ है. ये शी के प्रयासों को गंभीर रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. अगर ये अनियंत्रित हुए तो वे उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पटरी से उतार सकते हैं और यहां तक कि सीसीपी की वैधता को खत्म करने का खतरा पैदा कर सकते हैं. इससे शी पर अपनी नीतियां बदलने या या पद छोड़ने का दबाव बनेगा.
‘शताब्दी के दो लक्ष्य’
जैसे-जैसे शी अपनी विदेश नीति के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे वे भारत, जापान, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के विरोध के साथ भारत-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी बाधाओं का सामना करेंगे. ये देश चीन को क्षेत्रीय अधिपति बनने देना आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे. ताइवान, दक्षिण चीन सागर और यूक्रेन के कारण अमेरिका और चीन के बीच तनाव पहले से ही बहुत अधिक है. सीसीपी के सदस्य इस बात से आशंकित हैं कि तनाव के बढ़ने से चीन के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते हैं, जो चीन की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह लगभग 40 मिलियन सीनियर सीसीपी कैडर और उनके परिवारों को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करेगा.
“महान चीनी राष्ट्र के कायाकल्प” और “चीन को वैश्विक प्रभाव के साथ एक प्रमुख शक्ति” बनाने के साथ-साथ “एक जैसे भाग्य का समुदाय” बनाने के लिए दुनिया को प्रभावित करना, शी की सोच है. इन्हें संविधान में भी शामिल किया गया है. ‘शताब्दी के दो’ लक्ष्यों के रूप में, पहले लक्ष्य में चीन की सीमाओं को फिर से परिभाषित करना शामिल है, इसमें उन क्षेत्रों को “पुनर्प्राप्ति” की इच्छा है जिन्हें दावे के मुताबिक “शत्रुतापूर्ण विदेशी शक्तियों द्वारा असमान संधि” लागू करके ले लिया गया था.
भारत के लिए इसका मतलब है कि चीन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश और उनके बीच की सीमा के अन्य हिस्सों पर अपने दावों पर कायम रहेगा. आने वाले वर्षों में दोनों सेनाओं के बीच सीमा तनाव और संघर्ष की संभावना है. जापान, वियतनाम और ताइवान के साथ भी ऐसे ही हालात होंगे. दूसरा लक्ष्य, एक नई वैश्विक विश्व व्यवस्था बनाने और अमेरिका से आगे निकलने का है. इससे निकट भविष्य में इन दोनों के बीच टकराव की वास्तविक संभावना है. यदि शी सफल होते हैं तो वह चीन को विश्व की प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित कर लेंगे.
शी के लिए इन उद्देश्यों को हासिल करना आसान नहीं होगा, खास तौर उनके द्वारा तय की गई समय सीमा के भीतर. सेहत के मामलों को छोड़ दिया जाए तो शी के चरित्र, व्यक्तित्व और मानसिक मजबूती से पता चलता है कि वह इस दिशा में काम करेंगे. अपनी नीतियों के लिए पार्टी का समर्थन हासिल करने के बाद, शी किसी भी नीति से आसानी से पीछे नहीं हटेंगे, चाहे वह मामला आर्थिक हो या फिर सुरक्षा या चीन की आक्रामक मुद्रा का हो.
धीमी होती अर्थव्यवस्था और चीन के उद्यमियों की आशंकाओं को नजरअंदाज करते हुए शी ने चीन के फिनटेक और रियल एस्टेट क्षेत्रों के लिए नियमों को कड़ा करना जारी रखा और “साझा समृद्धि” की बात कही. उन्होंने असंतोष और विरोध को सामाजिक व्यवस्था व स्थिरता के लिए खतरा के रूप में दिखाया है. इन्हें “रंग क्रांति” के माध्यम से सीसीपी को गिराने के अमेरिकी प्रयासों के संकेत के रूप में चित्रित किया है. उनकी विदेश नीति की आक्रामकता में कोई कमी नहीं आएगी क्योंकि इससे चीन की ‘मजबूत’ राष्ट्र की आत्म-धारणा कमजोर होगी. शी के नेतृत्व में, अगले पांच वर्ष कठिन और तनावपूर्ण होंगे और इस क्षेत्र व दुनिया के लिए इसके परिणाम महत्वपूर्ण होंगे.
(लेखक जयदेव रानडे भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव हैं और वर्तमान में सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी के प्रेसिडेंट हैं.)
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. इस लेख में दी गई राय और तथ्य TV9 के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते.)
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