बेंगलुरू: कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि मेल न खाने वाले डीएनए नमूने अपराध के आरोपी को दोषमुक्त नहीं करेंगे क्योंकि यह केवल सहयोगी साक्ष्य है. अदालत ने 43 वर्षीय बस कंडक्टर की याचिका खारिज कर दी, जिस पर 12 वर्षीय एक रिश्तेदार के साथ बलात्कार और गर्भवती करने का आरोप है.Also Read – इस राज्य में ओला-उबर बैन, रोड पर दिखते ही वाहन जब्त करने के आदेश; जानिए पूरा मामला
डीएनए परीक्षण से पता चला कि उसके रक्त का नमूना और भ्रूण का मिलान नहीं हुआ है. इसके बाद आरोपी मामले को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट पहुंचा था. आरोपी मैसूर का रहने वाला है. उन पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आरोप लगाए गए हैं. Also Read – झांसी में पुलिस ने तीन युवतियों के शव बरमाद किए, हड़कंप
पीड़िता की मां ने 19 फरवरी 2021 को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके मुताबिक, बस कंडक्टर पर आरोप है कि उसने लड़की का यौन शोषण किया, जिससे वह गर्भवती हो गई. पुलिस ने मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी, जबकि डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट अभी बाकी थी. जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि आरोपी और भ्रूण के ब्लड सैंपल का मिलान नहीं हो रहा था. Also Read – गाजियाबाद की 12 साल की रेप पीड़िता ने मेरठ के मेडिकल कॉलेज में बेटे को जन्म दिया, ये है दर्दभरी दास्तां
आरोपी ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि पीड़िता के गर्भवती होने के लिए वह जिम्मेदार नहीं है. सरकारी वकील ने तर्क दिया कि लड़की ने बयान दिया था कि आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था और इसलिए, नकारात्मक डीएनए रिपोर्ट के बावजूद, मुकदमे को जारी रखना पड़ा.
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने 15 सितंबर को फैसला सुनाया था, जिन्होंने कहा था कि डीएनए विश्लेषण के बावजूद यह दर्शाता है कि आरोपी भ्रूण का जैविक पिता नहीं था, “यह याचिकाकर्ता को इस तरह के कथित अपराधों के लिए पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं करेगा.”
अदालत ने कहा, “कथित कृत्य बिल्कुल नहीं हुआ है, यह अनुमान नहीं हो सकता है कि याचिकाकर्ता के पक्ष में डीएनए नमूना आने के कारण निकाला जा सकता है. इस अदालत के समक्ष केवल डीएनए नमूना रिपोर्ट पेश करने का मतलब यह नहीं है कि इसे उस डॉक्टर की जांच या जिरह के बिना सुसमाचार सत्य के रूप में लिया जाना चाहिए जिसने इस तरह की राय दी है. कोर्ट को दिए पीड़िता-लड़की के बयान का हवाला देने के बाद, उच्च न्यायालय ने कहा, “वे सभी याचिकाकर्ता की ओर से अक्षम्य कार्य हैं जब तक कि अन्यथा साबित न हो. डीएनए टेस्ट पीड़िता ने अपने बयान में जो कहा है, उसे खारिज नहीं किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने जबरन उसके साथ यौन संबंध बनाए थे.
कोर्ट ने डीएनए टेस्ट को पुष्ट सबूत बताते हुए आरोपी की याचिका खारिज कर दी. याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के संबंध में डीएनए परीक्षण को निर्णायक सबूत नहीं कहा जा सकता है. डीएनए परीक्षण को एक पुष्ट सबूत के रूप में सबसे अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है.
सुनील बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा, यदि आरोपी के खिलाफ डीएनए का सकारात्मक परिणाम आता है, तो यह आगे की कार्यवाही के लिए उसके खिलाफ पुख्ता सबूत होगा. यदि परिणाम नकारात्मक है, अभियुक्त के पक्ष में है, तो अन्य सामग्रियों के वजन और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर अभी भी पुष्टि के लिए विचार करना होगा. (input:bhasha)
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post