देविंदर शर्मा
देविंदर शर्मा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2022 के बजट में किसान ड्रोन योजना शुरू करने की घोषणा की थी। अगले दिन अर्नस्ट एंड यंग के एक कार्यकारी का बयान हैरानकुन था, कि इस नए तकनीकी उपकरण की आमद से देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। मुझे यह अहसास करने में कुछ वक्त लगा कि उन्होंने भोगवाद-चालित अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद में संभावित वृद्धि की यह गणना शायद ड्रोन उत्पादकों द्वारा बेची जाने वाले ड्रोनों की गिनती के आधार पर की हो!
कोई हैरानी नहीं, भारतीय ड्रोन फेडरेशन ने तो यहां तक हिसाब-किताब लगा लिया है कि ड्रोन उपयोग में अगले तीन सालों में ‘एक-गांव एक-ड्रोन’ की परिकल्पना साकार हो सकती है। खैर, बजट भाषण के कुछ महीनों बाद, पहले केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड एवं पंजीकरण समिति ने दो सालों के लिए ड्रोन से 477 पंजीकृत रासायनिक कीटनाशक, फफूंदी नाशक और पौधवृद्धि स्प्रे को अंतरिम मंजूरी दे दी। फिर कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने घोषणा की कि किसान उत्पादक संघों को ड्रोन खरीदने और क्रय पूर्व आजमाइश आयोजन के लिए 75 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी। किसान की व्यक्तिगत सब्सिडी की मात्रा मूल्य का 40 फीसदी या अधिकतम 4 लाख होगी।
जुलाई माह में, मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि चोटी के कीटनाशक उत्पादक साइजेंटा इंडिया को ड्रोन से धान की फसल पर फफूंद नाशक स्प्रे करने की अनुमति दी गई है। अन्य विशालकाय रसायन कंपनियां जैसे कि बायर, बीएएसएफ, धानुका एग्रीटेक, यूपीएल और इंसेक्टीसाइड इंडिया लि. भी खरीफ की फसल के दौरान परीक्षण के तौर पर 30000 एकड़ रकबे में ड्रोन से छिड़काव की योजना बना रही हैं। माना जाता है कि इस किस्म की कवायद अवश्य ही कंपनियों को छिड़काव के परिणामों के अध्ययन, जरूरी सुधार और नई तकनीक खोज करने में सहायक होगी। मसलन, स्प्रे नोज़ल का आकार, हवा के बहाव के मुताबिक रसायन की मात्रा में बदलाव इत्यादि। इससे उन्हें कार्यस्थल पर, व्यावहारिक उपयोग से ड्रोन तकनीक के नए पहलुओं के बारे में समझने को मिलेगा। अब तक के आरंभिक अध्ययनों का नतीजा तो मालूम नहीं है किंतु परिणाम और इस्तेमाल किए गए तौर-तरीकों का मूल्यांकन करना रोचक रहेगा।
जहां ड्रोन जैसी नई तकनीकी मशीनरी अपनाने पर पैदा हुई उत्सुकता को समझ सकता हूं (जो कि ड्रोन और कीटनाशक उत्पादकों के लिए बहुत बड़ी बिक्री का मौका है) वहीं जिस जगह जरूरत नहीं है वहां भी हवा से फैलने वाले रसायन के दुष्परिणाम का आकलन-अध्ययन करना लाजिमी है। इस नए तरीके से रसायनों की अनचाही नन्ही बूंदों का दुष्प्रभाव इंसानी स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीवजगत पर काफी होगा। हालांकि ड्रोन एवं कीटनाशक कंपनियां इसको नकारेंगी, लेकिन तथ्य है कि एक वक्त ग्लाइफॉस्फेट जैसे लोकप्रिय नदीनाशक के मामले में भी यह माना जाता था कि हवा के जरिए इधर-उधर नहीं फैलता जबकि बाद में हुए अध्ययन दर्शाते हैं कि जहां कहीं इसके विषैलेपन की मात्रा मापना संभव था, तमाम जगहों पर अंश पाया गया।
इससे पहले भी, बहुत बड़े दायरे में हवाई स्प्रे करने वाली कीटनाशक प्रणाली के नतीजे बताते हैं कि इसकी नन्ही बूंदें हवा पर सवार हो कुछ सौ मीटर से लेकर 1000 किमी. दूर तक पहुंच सकती हैं। उदाहरण के लिए, केरल के कासरागौड़ जिले में काजू के पौधों पर एंडोसल्फान कीटनाशक का हवाई-स्प्रे करने का विरोध इलाका निवासियों ने किया था, क्योंकि वहां इसका इंसानी सेहत, मिट्टी और पानी पर चिंताजनक दुष्प्रभाव पड़ा था। वाशिंगटन पोस्ट की 8 फरवरी, 2011 की रिपोर्ट में बताया गया कि हवाई स्प्रे के परिणाम से 550 मौतें हुईं और 6000 से अधिक इंसानों में अपंगता सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं। आखिरकार ग्रामीणों के आंदोलन ने 2004 में केरल सरकार को हवाई-स्प्रे पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर किया।
माना यह काफी न हो, अरसा पहले, वर्ष 2008 में, पर्यावरण विज्ञान और तकनीक पत्रिका में छपी एक अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि सुदूर अंटार्कटिक महाद्वीप के पेंगुइनों में भी डीडीटी नामक रसायन के अंश मिले। अनुसंधानकर्ताओं का निष्कर्ष था : ‘दरअसल डीडीटी और अन्य बहुत से जैव प्रदूषक तत्व वायुमंडल में वाष्पीकरण के जरिए ध्रुवीय प्रदेशों तक जा पहुंचते हैं और ठंडी हवा में नीचे बैठकर हरेक जीव को प्रभावित करते हैं।’ इस अध्ययन ने न केवल कीटनाशकों की नन्ही बूंदों का लंबी दूरी तक पहुंचना स्थापित किया वरन् यह भी कि ये हिंद और प्रशांत महासागर जैसे विशालकाय क्षेत्र को भी लांघ जाती हैं।
वर्ष 2021 में अमेरिका में हुए अध्ययन में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक सोयाबीन की फसल वाला रकबा नजदीक के खेतों में छिड़के गए डिकाम्बा नदीन नाशक से प्रभावित पाया गया। यह देखते हुए कि वैश्विक स्तर पर व्यवसाय जनित जहरीली गैसों की मात्रा, जो कि 1990 में 2.5 करोड़ टन थी, अब 38.5 टन हो चुकी है। भारत में प्रयास यह होना चाहिए कि कीटनाशकों का प्रयोग कम किया जाए। स्प्रे चाहे ड्रोन के जरिए हो या हाथ-यंत्र से, बेहतर तरीका तो यह है कि किसानों को सुरक्षित जैविक कीटनाशक मुहैया करवाए जाते, उन्हें खतरनाक रासायनिक कीटनाशकों के दुरुपयोग से मुक्त किया जाता। आंध्र प्रदेश में समुदाय चालित प्राकृतिक खेती प्रणाली को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक समस्त खेती को रासायनिक से गैर-रासायनिक में तब्दील करना है। जिस तरह सरकारी अध्यादेश और फंडिंग कार्यक्रम के जरिए यह मिसालयोग्य काम हो रहा है, वह बाकी देश के लिए अनुकरणीय सबक है।
इसी प्रकार की रणनीति यूरोपियन आयोग की है, जिसमें ‘खेत से तश्तरी’ योजना और जैव-विधिता बनाना है। इसके तहत वर्ष 2030 तक आधी कृषि भूमि को रासायनिक कीटनाशकों से मुक्त करना है। यूरोपियन यूनियन पहले ही पर्यावरणीय सहायता हेतु ‘साझा कृषि नीति’ के तहत वर्ष 2024 तक 20 फीसदी धन इस योजना के लिए जारी करने का फैसला ले चुकी है। हैदाराबाद स्थित अध्ययनवेत्ता और कार्यकर्ता नरसिम्हा रेड्डी धोंती के मुताबिक कृषि एवं किसान भलाई मंत्रालय द्वारा जिस किस्म की आचार संहिता बनाई गई है उसमें विरोधाभास साफ झलकता है। जो समिति इसके लिए बनाई गई, उसमें अधिकांश सदस्य ड्रोन उत्पादक उद्योग और कीटनाशक कंपनियों से थे। मंत्रालय को लिखे पत्र में नरसिम्हा ने नियमन के लिए संहिता उपायों को और कड़ा करने की मांग की है।
इसमें एक नियम है कि ड्रोन ऑपरेटर छिड़काव करने से 24 घंटे पहले ग्राम पंचायत और पंचायत समिति को सूचित करेगा। उम्मीद है कि वह आसपास के किसानों को स्प्रे के वक्त यथेष्ट सुरक्षात्मक उपाय करने के लिए सूचित करेगी।
यह जानते हुए कि एशिया महाद्वीप में कीटनाशकों के उपयोग में 97 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और इसका 40 प्रतिशत अकेले भारत में खपता है, सुझाव है कि ड्रोन प्रणाली उपयोग से पहले हवा की गुणवत्ता मापने वाला तंत्र स्थापित किया जाए, जैसा कि अभी तक केवल स्वीडन ने किया है। हालांकि पहली प्राथमिकता रासायनिक कीटनाशकों से चरणबद्ध छुटकारा पाने की होनी चाहिए। जब तक यह संभव हो, तब तक किसानों को कीटनाशक खेत के सिंचाई स्रोत के पास रखने के लिए जागरूक करना आर्थिक और पर्यावरण के हिसाब से एकदम समझदारी होगी।
लेखक कृषि एवं खाद्य मामलों के विशेषज्ञ हैं।
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