रेडियो का था अतिरिक्त खर्च
हालांकि, रेडियो को खरीद लेना ही काफी नहीं होता था। इसे घर पर रखने के लिए अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता था। उन दिनों मान्य लाइसेंस के बिना रेडियो रखना अपराध होता था। अगर कोई समय से पुराने लाइसेंस को रिन्यू नहीं करा पाता था तो उसे पेनाल्टी देनी पड़ती थी। यह पेनाल्टी सरचार्ज के तौर पर वसूली जाती थी। भारतीय डाक एवं तार विभाग रेडियो का नया लाइसेंस जारी करता था। इसे रिन्यू भी यहीं कराया जाता था।
साल में इतनी लगती थी फीस
टीवी से पहले तक रेडियो ही मनोरंजन की दुनिया थी। लोग खबरों, क्रिकेट कॉमेंट्री और म्यूजिक सुनने के लिए रेडियो लिया करते थे। इसने ऑल इंडिया रेडियो की लोकप्रियता को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। एंटरटेनमेंट के दीवानों के लिए रेडियो सबकुछ होता था। रेडियो पर लाइसेंस फीस वसूलने का दौर कई दशक तक चला। 1960 के दशक में लोगों को ब्रॉडकास्ट रिसीवर्स लाइसेंस (BRL) लेने के लिए हर साल 10 रुपये फीस देनी पड़ती थी। 1970 के दशक में इस फीस को बढ़ाकर 15 रुपये कर दिया गया था। 1991 में भारत में रेडियो लाइसेंस को खत्म कर दिया गया था।
पुराना है रेडियो का इतिहास
भारत में 1967 में विविध भारती के साथ कमर्शियल रेडियो की शुरुआत हुई थी। विविध भारती का मुख्यालय मुंबई में था। 1977 में मद्रास (अब चेन्नई) से एफएम ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत हुई थी। 1990 के दशक तक एआईआर ही एफएम की दुनिया में छाया हुआ था। लेकिन, बाद में निजी ब्रॉडकास्टर भी एफएम स्लॉट लेने लगे।
1994 में रेडियो डिजिटल हो गया। तब इंटरनेट के जरिये रेडियो स्ट्रीमिंग होने लगी। इसके साथ ही पहले इंटरनेट-ओनली 24 आवर्स रेडियो स्टेशन की शुरुआत हुई थी। भारत में रेडियो ने आपदा प्रबंधन के साथ शिक्षा और सूचनाओं के प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई है। देश में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग का इतिहास आजादी से पहले का है। अगस्त 1920 में पहला रेडियो ब्रॉडकास्ट हुआ था। यह छत की बिल्डिंग से हुआ था। इसके तीन साल बाद पहला रेडियो प्रोग्राम रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे से प्रसारित हुआ था। 1923 से 1924 के बीच तीन रेडियो क्लब स्थापित हो गए थे। ये बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास में थे। देश में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट वेंचर के तौर पर शुरू हुई थी।
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