विदिशाएक घंटा पहले
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दुनिया गोल है वह जहां से शुरू होती है वहीं पर खत्म हो जाती है। जो लोग यह कहते हैं कि जीवन और मृत्यु अलग-अलग हैं तो जीवन से मरण तक का मार्ग सभी जीवों का एक ही है, लेकिन अनुभूति सभी की अलग-अलग है। सभी के गुण स्थान अलग-अलग है। जिसने अपने जीवन के लिए अर्थात हेतु कौन है को समझ लिया उसका जीवन परिवर्तित हो जाता है। उपरोक्त उद्गार मुनि सुप्रभ सागर महाराज ने श्री समवसरण विधान के मध्य प्रातः कालीन प्रवचन सभा में कहे।
मुनि श्री ने कहा कि जीवन और मृत्यु का मार्ग सभी जीवों का भले ही एक हो, लेकिन अनुभूति सभी जीवों की अलग अलग है। उन्होंने कहा कि सभी जीवों को एक समान जीवन मिला, लेकिन सभी की अनुभूति अलग-अलग थी। उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे श्री सम्मेद शिखर जी कि यात्रा पर आप जाते हैं। वहां क्षेत्र वंदना करते हैं। डोली वाले भी क्षेत्र पर जाते हैं, लेकिन राह पथ एक होने पर भी दोनों की अनुभूति भिन्न है। उन्होंने कहा कि दीक्षा लेना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन आपका हेतू क्या है? यदि हमें श्रद्धा और समर्पण की अनुभूति नहीं हुई तो मात्र हम भेष को ही ढो रहे हैं।
धन्य हैं वे माताएं जिन्होंने जिनवाणी के ऐसे शूरवीरों को जन्म दिया
उन्होंने 11 अक्टूबर के महत्व को बताते हुए कहा कि आज के दिवस भिंड जिले के रूर गांव के शूर ने इतिहास बदल दिया था। जिन गांवों में कभी बंदूकों की आवाज गूंजा करती थी। उन गांवों से अहिंसा की गूंज शुरू हुई थी। वर्तमान के चर्या शिरोमणि हम सभी के गुरुदेव आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने क्षुल्लक यशोधर सागर के रूप में दीक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने कहा कि आज की तिथि में चार उपकरण अर्थात पिच्छि, कमंडल, जिनवाणी तथा गुरु के प्रति विनय जिसके पास है वह वर्तमान के भाव लिंगी मुनिराज हैं। उन्होंने कहा कि धन्य हैं वे माताएं जिन्होंने जिनवाणी के ऐसे शूरवीरों को जन्म दिया। जो कि इस पंचमकाल में जहां चारों और व्यसनों की चकाचौंध हैं वहीं अपने कर्म क्षय करने के लिए ये 24-25 वर्ष के युवा जैनेश्वरी दीक्षा का भाव लिए आगे बड़े हैं। उन्होंने कहा कि जिसने अपने आपको बदला है वो अपने स्थान से ऊपर उठते चले गए।
शोभायात्रा निकाली गई
प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया कि 25 मंडलीय समवसरण महा मंडल विधान के मध्य चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के आशीर्वाद से 6 नवंबर को रायपुर छत्तीसगढ़ में होने जा रही चार जैनेश्वरी दीक्षार्थी भैया का धर्म नगरी विदिशा में आगमन हुआ। उन्होंने मुनि सुप्रभ सागर महाराज, मुनि प्रणत सागर महाराज तथा मुनि सौम्य सागर महाराज से आशीर्वाद प्राप्त कर तीनों ब्रह्मचारी भाइयों ने अपना वैराग्य मय उद्बोधन दिया। साथ ही सायं काल 6.30 बजे श्री आदिनाथ जिनालय खरी फाटक रोड से विनौली शोभायात्रा के रूप में निकाई गई। महाआरती का सौभाग्य निरंजन पाटनी परिवार को मिला शोभायात्रा मुख्य मार्ग से होती हुई। परिणय गार्डन में आई यहां गोद भराई की रस्म की गई तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम की विशेष प्रस्तुति मनोज शर्मा टीम दिल्ली द्वारा की गई।
महिलाओं से टिका है धर्म, संतान की प्रथम गुरु मां होती है
उन्होंने कहा कि धर्म महिलाओं से टिका है। संतान की प्रथम गुरु मां होती है। यदि भारत की महिलाएं बदल जाएं तो भारत का भविष्य बदल जाएगा। उन्होंने कहा कि सब कुछ आपके भावों पर निर्भर करता है। धन छोड़ना इतना आसान नहीं होता। सड़क पर यदि एक पांच रुपए का सिक्का पड़ा दिख जाए तो भले ही आप लोक संकोच से न उठाओ लेकिन नजर तो बार बार उस पर जाती है। धन्य है वह वीतरागी संत जो एक ही क्षण में उस धन उस वैभव से नाता तोड़कर पिच्छी कमंडल ले विहार कर जाते हैं।
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