ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) में तेज गिरावट के संकेत हैं। इसकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इनमें से कुछ मुश्किलें पॉलिसी (Monetary Policy) की वजह से आई से पैदा हुई हैं। इससे दुनिया में मंदी की आशंका बढ़ गई है। इससे फाइनेंशियल सिस्टम (Global Financial System) को भी खतरा पैदा हो सकता है।
अमेरिका के पूर्व वित्त मंत्री लॉरेंस समर्स ने ब्लूमबर्ग टेलीविजन को बताया है, “हमारे लिए रिस्क बहुत बढ़ गया है। लोग उसी तरह से चिंतित नजर आ रहे हैं, जैसा वे अगस्त 2007 में आ रहे थे। मेरा मानना है कि यह ऐसा वक्त है, जिसके लिए हमें चिंता करने की जरूरत है।”
ग्लोबल इकोनॉमी पर दबाव की सबसे बड़ी वजह इंटरेस्ट रेट्स में हो रही वृद्धि है। 1980 के दशक के बाद पहली बार इंटरेस्ट रेट में इतना इजाफा हुआ है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक यह अनुमान लगाने में नाकाम रहे कि इनफ्लेशन कई दशकों की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। अब वे कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए इंटरेस्ट रेट बढ़ा रहे हैं। दरअसल, उनकी अपनी साख भी दांव पर लगी है।
तेजी से बढ़ती महंगाई का असर लोगों के पर्चेंजिंग पावर पर पड़ा है। कई कंपनियों ने इस बारे में बताया है। पिछले कुछ दिनों से Nike की इनवेंट्री लगातार बढ़ी है। FedEx Corp डिलीवरी वॉल्यूम में आई गिरावट से हैरान है। कोरिया की एक बड़ी चिपमेकर कंपनी के सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में चार साल में पहली बार गिरावट आई है। Apple अपने नए आईफोन का उत्पादन बढ़ाने के प्लान पर फिर से विचार कर रही है।
ऐसी स्थिति तब है, जब इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी का अभी पूरा असर दिखना बाकी है। फेडरल रिजर्व सहित दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों ने आगे भी इंटरेस्ट रेट बढ़ाने का सिलसिला जारी रखने के संकेत दिए हैं। केंद्रीय बैंक लिक्विडिटी में कमी लाने के भी उपाय कर रहे हैं।
यूक्रेन पर रूस के हमले ने भी हालात को बिगाड़ने का काम किया है। इससे फाइनेंशियल मार्केट्स में भी डर का माहौल है। फेडरल रिजर्व के इंटरेस्ट रेट बढ़ाने से डॉलर तेजी से मजबूत हुआ। इससे अमेरिका में इनफ्लेशन को बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन इस वजह से दूसरे देशों की करेंसी में बड़ी गिरावट आई है।
RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 30 सितंबर को इंटरेस्ट रेट बढ़ाने के दौरान कहा कि ग्लोबल इकोनॉमी में नए तूफान की स्थिति बनती दिख रही है। 2020 में ग्लोबल इकोनॉमी में कोरोना की महामारी के बाद आई गिरावट के तुरंत बाद दूसरी मंदी का अनुमान एक साल पहले तक लगाना मुश्किल था। लेकिन, रूस की वजह से यूरोप में एनर्जी क्राइसिस, चीन में प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट और कोविड-जीरो अप्रोच का अंदाजा तब किसी को नहीं था।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post