सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पतियों के द्वारा किया गया महिला पर यौन हमला बलात्कार का रूप ले सकता है. बलात्कार की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार शामिल होना चाहिए.
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महिलाओं के सम्मान के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को Marital Rape पर बड़ा फैसला सुनाया है. महिलाओं को उनकी मर्जी के खिलाफ छूना अपराध की श्रेणी में ही आएगा, चाहे वह पति ही क्यों ना हो. शीर्ष अदालत ने कहा है कि ‘वैवाहिक रेप’ (Marital Rape) को भी रेप की श्रेणी में आना चाहिए. जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने गर्भपात पर फैसला सुनाते हुए ये बातें रखी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (MTP) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए यह बातें कहीं.
शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर बिना मर्जी के कोई विवाहित महिला भी गर्भवती होती है तो इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप ही माना जाना चाहिए. इस लिहाज से उसे गर्भपात कराने का अधिकार होगा. अदालत ने साफ कहा कि रेप की परिभाषा में ‘वैवाहिक रेप’ भी शामिल होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पतियों के द्वारा किया गया महिला पर यौन हमला बलात्कार का रूप ले सकता है. बलात्कार की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार शामिल होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति, उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है.
हाईकोर्ट में आया था ये फैसला
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में भी मैरिटल रेप को लेकर सुनवाई हुई थी. मगर दो जजों की राय अलग-अलग थी. इसके बाद यह मामला 3 जजों की पीठ को सौंपने का फैसला किया गया था. एक जज का कहना था कि मर्जी के बिना शारीरिक संबंध बनाना अपराध है. जबकि दूसरे जज की राय इस मामले में अलग थी. केंद्र सरकार ने साल 2017 में इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि इसे अपराध घोषित नहीं किया जा सकता. इससे शादी जैसी पवित्र संस्था डगमगा सकती है. सरकार का यह भी मानना था कि इसे पतियों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.
कानून में ‘मैरिटल रेप’
IPC की धारा 375 में ब्लात्कार को लेकर परिभाषा है, लेकिन इसमें एक अपवाद है. इसी वजह से शादी के बाद पति द्वारा रेप को ‘मैरिटल रेप’ नहीं माना जाता है. धारा 375 में जो अपवाद है, उसके मुताबिक नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाने को भी अपराध नहीं माना जाएगा. चाहे वह जबरन हो या सहमति से. वहीं धारा 376 में एक प्रावधान है, इसके तहत पत्नी के साथ रेप के मामले में पति को सजा देने का कानून है. मगर इसके लिए एक शर्त है, जिसके तहत पत्नी की उम्र 15 साल से कम होनी चाहिए. अगर 15 से ज्यादा उम्र है तो जुर्माना या दो साल की कैद का ही नियम है.
देश में मैरिटल रेप की स्थिति
देश में यह एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है, जिस पर लंबे समय से बहस चल रही है. मगर कोई सही समाधान नहीं निकल पाया है. अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से एक नई राह दिखी है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक 82 फीसदी महिलाएं वैवाहिक रेप की शिकार बनी हैं. इसी सर्वे में बताया गया है कि 45 प्रतिशत महिलाओं के शरीर पर यौन हिंसा का कोई ना कोई जख्म मौजूद है.
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