जयपुरएक घंटा पहले
स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा आयोजन में दुर्गापुरा में स्वराज पर चर्चा का प्रोग्राम रखा गया।
आदिवासी जीवनशैली नैसर्गिक रूप से गांधी के स्वराज की अवधारणा का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आदिवासी समुदाय ही आज तक अपनी परम्परा, संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों को नहीं सिर्फ बचा रहा है, बल्कि इनका संरक्षण और संवर्धन भी कर रहा है। विश्व के कई कोनों में ऐसे समुदायों के कई उदाहरण है। परंतु बढ़ते उपभोक्तावाद और आधुनिकता ने इन्हें धीरे-धीरे खत्म-सा कर दिया है।
प्रकृति में सृजन का मूल है बीज। पोषण देने वाली जननी है मिटटी। जीवनदायनी जल, भोजन और रहने का स्थान देने वाली जमीन और प्रकृति में जैव विविधता और संतुलन बनाने के लिए जानवर। प्राणी मात्र के अस्तित्व के लिए ये पांचों घटक- जल, जंगल, जमीन, जानवर और बीज अति आवश्यक हैं। इनका रक्षण, संरक्षण और संवर्धन करके ही इन सभी घटकों का स्वराज हासिल किया जा सकता है।
जल स्वराज के लिए पहले की भांति घर का पानी घर में, खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में बचाना होगा। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए मेडबंदी, चक्रीय फसल और मिश्रित खेती से कृषि व पोषण का स्वराज स्थापित होता है। शिक्षा के स्वराज के लिए गांधी की के बुनियादी शिक्षा के सिद्धांत से बच्चों के अधिकारों के सुरक्षित रखते हुए। बेरोजगारी की समस्या से निजात पाई जा सकती है। हाट, सांझा चूल्हा, हालमा जैसी प्राचीन परम्पराएं निभाते हुए आपसी संवाद से हमारा सांस्कृतिक स्वराज कायम रहता है।
गांधी की स्वराज की अवधारणा बहुत व्यापक है। जिसमें ग्राम स्वराज के तहत सत्ता के विकेंद्रीकरण और गांवों को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। कृषि स्वराज प्राप्त करने के लिए खाद, बीज तथा खेती की दवाइयों के लिए स्वयं पर निर्भर तथा बाजार से मुक्त रहना है।
सरकार से आग्रह
यात्रा के माध्यम से स्वाराजियों का सरकार से आग्रह है कि ऐसी नीतियां (कृषि संबंधित, खाद्य सुरक्षा को लेकर, बच्चों के अधिकारों को लेकर) नहीं बने जो स्वाराजियों को तकलीफ दें या उनके स्वराज को नुकसान पहुंचाएं। सरकारी कार्यक्रम ऐसे हो जो आदिवासी समुदाय के बीज स्वराज, जल स्वराज, मृदा स्वराज, कृषि व खाद्य स्वराज को बचाए रखें। बीज संप्रभुता के प्रोत्साहन के लिए स्थानीय बीजों का उत्पादन तथा वितरण
जल स्वराज के लिए अधिक से अधिक जल संरक्षण कार्यक्रम क्रियान्वित कर मनरेगा के तहत जल संरक्षण मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए मनरेगा के तहत मृदा स्वस्थ्य के कार्यक्रम और पशु अपशिष्ट से कम्पोस्ट निर्माण छोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देना। पौष्टिक खाद्य पदार्थों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली का हिस्सा बनाना। पारंपरिक प्रथाओं को पुनः स्थापित करने के लिए इकोसिस्टम तैयार करना।
स्वराज पर रखा चर्चा का प्रोग्राम
इस प्रोग्राम में राजस्थान सरकार के जल संसाधन मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने कहा कि गोविन्द गुरु की भूमि से जो यह पदयात्रा शुरू हुई है। वह मिशन ग्रामीण अंचल में नई मिसाल कायम करते हुए एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगी। ग्राम स्वराज की गहराई को नापना बहुत कठिन है। आज भी ग्राम स्वराज कहीं न कहीं जीवित है। शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति आने से स्वराज की भावना भी बलवती हुई है। देश में बढ़ती आबादी और घटती जमीन चिंता का विषय है। यदि हमें अपने जीवन में खुशहाली लानी है तो अपनी परम्पराओं पर लौटना ही होगा। प्रोग्राम में समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष सवाई सिंह, गांधियन इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर बी एम शर्मा, हरिजन सेवक संघ के संजय राय, विशम्भर, किसान आयोग के सदस्य एस एम बुरडक ने भी स्वराज पर अपने विचार रखे।
स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा 21 दिन बाद हुई पूरी
वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने कहा- गांधी की स्वराज संकलपना के अनुरूप स्वालंबन की ओर बढ़ने वाली नीतियों में किए गए। बदलावों के कारण विभिन्न वर्गों के बीच संवादहीनता पैदा हो गई है। आधुनिकता की दौड़ में परिवार के सदस्यों के बीच का संवाद कम हो गया है और दूरियां बढ़ गई है। इसी संवादहीनता को मिटने और पीढ़ियों का पीढ़ियों के साथ, सरकारों का समुदाय के साथ और इंसान का प्रकृति के साथ संवाद पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा का आयोजन किया गया था। जो आज 21 दिन बाद पूरी होकर अपने अंजाम तक पहुंची है।
मिट्टी के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट
हरित क्रांति के माध्यम से बढ़ती जनसंख्या की भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के चलते खेती में कई परिवर्तन किए गए। जिनके चलते आज कृषि पद्धतियों बिलकुल बदल गई है। आज देसी बीज की जगह वहां की क्षेत्र अनुरूप उपयुक्त बीज नहीं मिलते। जैविक खाद की बजाय कीटनाशक और खरपतवार नाशी का यूज बड़ी मात्रा में होने लगा है। जिसमें मौजूद रसायनों के यूज से मिट्टी के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। मिश्रित फसलों के स्थान पर अब केवल व्यावसायिक फसलें उगाई जाती हैं। जिससे मिट्टी को पूरा पोषण नहीं मिलता। मेडबंदी नहीं होने से मिट्टी का कटाव खेतों को और नुकसान पहुंचता है। मृदा स्वास्थय के तीनों अंग- खनिज, नमी और आवश्यक शूक्ष्म जीवाणु धीरे-धीरे क्षीण होते जा रहे हैं। इनकी कमी के कारण मृदा स्वास्थय बिगड़ता जा रहा है।
कृषि प्रधान देश में गांव हो गए पशु विहीन
पूर्व में किसान अपने खेत का बीज बचाता था और उसी का प्रयोग अगली बुवाई के लिए करता था। परन्तु आज सरकारी एजेंसियों की ओर से देसी बीज की स्थान पर हाइब्रिड बीज का उत्पादन और वितरण किया जाने लगा है। जिसके चलते देसी बीज पर अस्तित्व का संकट छा गया है। कई किस्मों के बीज आज समुदाय की ओर से सहेजे जाते हैं। जिनसे वे अपनी दैनिक भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। बदलते परिवेश में आज स्वराज सिद्धांतों की ओर मुड़ना अत्यंत आवश्यक है।
यदि हमें स्वस्थ व प्रसन्न रहना है तो समरसता संपन्न जीवनशैली को पुनः अपनाना होगा। ग्राम स्वराज की अवधारणा में आज इस बात की आवश्यकता कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें, सत्ता से सवाल करें, आपसी संवाद को पुनः स्थापित करें। अपनी बात कहने के लिए युवा आगे आए। यदि आज हम ऐसा नहीं करेंगे तो आने वाली पीढियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। आज इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा और अपने आप से सवाल भी करना होगा कि पहले हमारी जीवनशैली में कौन से तत्व शामिल थे।
गांधी का स्वराज राष्ट्र निर्माण में परस्पर सहयोग और मेल-मिलाप पर बल देता है। बदली हुई जीवनशैली में प्रसन्नता और समरसता के जीवन का उपाय स्वराज की जीवनशैली है और इसे पुनः स्थापित कर दुनिया को एक संदेश देना होगा।
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