दिल्ली उच्च न्यायालय
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पीड़िता के यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत जमानत पर बहस के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने और अभियुक्त का सामना करने के मामले में दिशानिर्देश जारी किए हैं, ताकि ऐसे अपराधों के पीड़ित के आघात को कम किया जा सके।
जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा, यौन उत्पीड़न मामले में बहस के दौरान कोर्ट में नाबालिग पीड़िता की उपस्थिति से उसके मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बार-बार घटना को दोहराकर उसे आघात नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।
जस्टिस सिंह ने 11 जनवरी के आदेश में कहा, दलीलों के दौरान अदालत में मौजूद रहने से पीड़िता पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है, क्योंकि इस दौरान ऐसे आरोप भी लगाए जाते हैं जो पीड़िता और उसके परिवार की ईमानदारी तथा चरित्र पर संदेह करते हैं।
उनके अनुसार हर मामले की जांच परिस्थितियों के हिसाब से होनी चाहिए, क्योंकि पॉक्सो कानून से संबंधित कई ऐसे मामले हो सकते हैं, जिसमें यौन अपराध का शिकार दबाव या प्रताड़ना के कारण समझौता करने के लिए मजबूर हो सकता है।
उन्होंने कहा कि यह पीड़िता के हित में होगा कि अदालती कार्यवाही के दौरान पीड़ित की मौजूदगी में उक्त घटना को फिर से दोहराकर उसे बार-बार आघात न पहुंचाया जाए। पॉक्सो मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली अपील की सुनवाई के दौरान अदालत ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया। जस्टिस सिंह ने अपील को यथासमय सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
पीड़ित को पूछताछ के दौरान असहज महसूस न कराया जाए
कोर्ट ने निर्देश दिया कि पूछताछ करते समय पीड़ित को असहज महसूस न कराया जाए या किसी अपराध के सहअपराधी की तरह पूछताछ न की जाए। जस्टिस सिंह ने कहा कि यदि जमानत याचिका की सुनवाई की एक तारीख पर पीड़िता अदालत में पेश हुई तो बाद की तारीखों में उसकी उपस्थिति से छुटकारा दिया जा सकता है और रेप क्राइसिस सेल (आरसीसी) के वकील या वकील या माता-पिता या अभिभावक या एक सहायक व्यक्ति प्रतिनिधित्व कर सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि कुछ असाधारण मामलों में पीड़िता के साथ कमरे में बातचीत की जा सकती है और जमानत अर्जी के रूप में उसकी दलीलें उस दिन पारित आदेश पत्र में दर्ज की जा सकती हैं, जिससे बाद में उस पर विचार किया जा सके।
ये भी दिशानिर्देश
यदि पीड़िता लिखित रूप में यह देती है कि उसके वकील/माता-पिता/अभिभावक/समर्थक व्यक्ति उसकी ओर से पेश होंगे और जमानत याचिका पर दलील पेश करेंगे तो पीड़िता की शारीरिक या वर्चुअल मौजूदगी पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए।
जमानत अर्जी के निपटारे के बाद आदेश की प्रति पीड़िता को अनिवार्य रूप से भेजी जाए। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि आरोपी के जमानत पर रिहा होने की स्थिति में पीड़िता की मुख्य चिंता उसकी सुरक्षा है। उसे जमानत आदेश की प्रति प्रदान कर पीड़िता को आरोपी की स्थिति और जमानत की शर्तों तथा जमानत की शर्तों के उल्लंघन के मामले में जमानत रद्द करने के लिए अदालत जाने के अधिकार के बारे में जागरूक किया जाए।
यह भी उचित होगा कि न्यायिक अधिकारियों को अदालत में आरोपी के साथ पीड़िता के संपर्क को कम से कम संभव बनाने की आवश्यकता के बारे में संवेदनशील बनाया जाए।
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