राजीव सक्सेना
ओटीटी की अधिकतर शृंखलाओं में तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों की पृष्ठभूमि में इस प्रदेश को रखा जाना संयोग मात्र भी नहीं है।ओटीटी के तमाम मंचों पर हालांकि इन दिनों बदलाव की बहती बयार में पारिवारिक विडंबनाओं से जुड़े कथानक को प्राथमिकता देना सुखद है, बावजूद इसके अपराध से संबंधित कहानियां नए रंग में पेश किए जाने का सिलसिला भी कम नहीं हो रहा है।
माई : बेटी की खातिर मां का जोखिम
तहजीब के शहर लखनऊ की पारंपरिक तंग गालियों और प्रगति के चौड़े रास्तों पर दिन दूने पनपते अपराध के कसैले सच को सामने लाने वाली वेब शृंखलाओं में नेटफ्लिक्स ने एक नया आयाम जोड़ा है माई के प्रदर्शन के साथ। अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के अपने बैनर तले बड़े बजट के तकरीबन बेजा इस्तेमाल की मिसाल बनी है ये शृंखला। नकली दवाओं के रैकेट से जुड़ी कहानियों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के साथ उत्तर प्रदेश का नाम शायद कम ही जुड़ा देखा गया होगा। लेकिन कर्नेश शर्मा के बैनर पर अतुल मोंगिया और अंशाई लाल द्वारा निर्मित वेब शृंखला माई की कहानी लखनऊ के एक मध्यवर्गीय परिवार की कामकाजी महिला शील के, अपनी बेटी की हत्या के ज़िम्मेदार लोगों को शिद्दत से खोजने और अंतत: बदला लेकर रहने तक की घटनाओं को बयां करती है।
भरे-पूरे परिवार की बोलने में असमर्थ प्रशिक्षु डाक्टर बेटी को,अपने अस्पताल में दवाओं को लेकर हो रही हेरा-फेरी का विरोध करना तब महंगा पड़ता है, जब इसके आरोपी, उसकी जान के पीछे पड़ जाते हैं। मां की आंखों के सामने ट्रक की टक्कर से जवान बेटी का मारा जाना वाकई कम खौफनाक मंजर नहीं था। एक बेटे को पहले ही अपने निसंतान जेठ- जेठानी की गोद में सौंप देने वाली मां-बेटी की यूं असमय विदाई का झटका बर्दाश्त नहीं कर पाती और इसके ज़िम्मेदार को खोजकर खुद सज़ा देने की ठान लेती है। तमाम नाटकीय लेकिन रोमांचक घटनाक्रम के बाद एक मां, अपनी बेटी की हत्या की अपराधी को मौत की सजा दिलवाने में सफल होती है।
तमल सेन, अमिता व्यास और अतुल मोंगिया की संयुक्त रूप से लिखी कथा-पटकथा में, एक नहीं कई सारी जगहों पर दर्शक स्वयं को उलझता सा महसूस करता है। नेटफ्लिक्स की बनाई हुई अपनी गरिमा के विरुद्ध यह कहानी, सशक्त कलाकारों के होते हुए बेहतर प्रस्तुति साबित नहीं हो पाई। एक विदेशी सीरीज को हिंदी में, भारतीय परिवेश में पेश किए जाने की कोशिश कामयाब होते होते रह गई। माई संबोधन उत्तर प्रदेश के किस क्षेत्र विशेष में मां के लिए उपयोग में लाया जाता है, इसकी खोज मुश्किल लगती है। लखनऊ की लोकेशन को खूबसूरती से इस्तेमाल करने में सफल निर्देशक, इस शहर की तासीर, यहां की तहजीब और सांस्कृतिक परंपराओं को बिसरा गए और मुंबई के गैंगवार की तर्ज़ पर गोलियों की बरसात में कहानी को बेवजह भटकाने में व्यस्त रहे।
मुख्य किरदार की तमाम चुनौती स्वीकार कर रही अभिनेत्री साक्षी तंवर के लिए ये वेबसीरीज ना ना करते भी मील का पत्थर और ओटीटी पर सुखद शुरुआत सिद्ध हो ही गई। बड़ी बड़ी आंखों से परिस्थितियों के मुताबिक विविध अभिव्यक्ति के अलावा लगभग हर एक दृश्य को जीवंत करने में साक्षी ने कसर नहीं छोड़ी। संदेह नहीं कि सारा का सारा दारोमदार इस एक कलाकार पर देकर, निर्देशक मानो अन्य किरदारों और कलाकारों को तवज्जो देना ही भूल गए। सिनेमा से नदारद अभिनेत्री राइमा सेन, अभिनेता विवेक मुश्रान के अलावा नवोदित वैभवराज गुप्ता, वामीका गब्बी, प्रशांत नारायण, सीमा पाहवा, अनंत विधात और अंकुर रतन ने अपनी-अपनी भूमिकाओं को उम्दा निभाया। कहानी घर घर की, बड़े अच्छे लगते हैं, कोड रेड सरीखे टीवी शो और मोहल्ला अस्सी, दंगल जैसी फिल्मों के बाद साक्षी तंवर के लिए ओटीटी पर ये शृंखला वाकई नया जीवन देने वाली रही है।
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