योगेश कुमार गोयल
ऐसे में लोगों को कुछ भी याद नहीं रहता, उन्हें किसी को पहचानने में भी दिक्कत आती है। हालांकि ऐसी स्थितियों को अक्सर समाज में यही सोचकर काफी हल्के में लिया जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन वास्तव में यह बढ़ती उम्र की कोई स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनमें पनपने वाली अल्जाइमर नामक बीमारी है।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति के मस्तिष्क में भी कुछ बदलाव होते हैं। कभी-कभी कुछ बातों को याद करने में समस्याएं आ सकती हैं। मगर अल्जाइमर रोग तथा अन्य प्रकार के मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया में स्मृतिलोप और कुछ अन्य लक्षण उत्पन्न होते हैं, जो दैनिक जीवन में गंभीर कठिनाइयां पैदा करते हैं। हालांकि सभी प्रकार के स्मृतिलोप का कारण अल्जाइमर नहीं होता।
याददााश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा करने वाला अल्जाइमर सबसे आम प्रकार का मनोभ्रंश है। आरंभिक चरण में इसके लक्षण बहुत कम हो सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह रोग मस्तिष्क को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, लक्षण बिगड़ने लगते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में इस बीमारी के बढ़ने की दर अलग होती है।
अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार दुनिया भर में इस समय करीब 4.4 करोड़ लोग मनोभ्रंश से ग्रस्त हैं। ‘अल्जाइमर ऐंड रिलेटेड डिसआर्डर सोसाइटी आफ इंडिया’ (एआरडीएसआइ) की ‘डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट’ में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक करीब छिहत्तर लाख भारतीय अल्जाइमर और अन्य डिमेंशिया की स्थिति से पीड़ित होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अमेरिका में तो अल्जाइमर ही हर सातवीं मौत का प्रमुख कारण है।
दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ कई प्रकार की बीमारियां शरीर को जकड़नी शुरू कर देती हैं और ऐसी ही बीमारियों में से एक बुढ़ापे में भूलने की बीमारी ‘अल्जाइमर-डिमेंशिया’ है। आंकड़ों के मुताबिक चीन में अल्जाइमर रोगियों की संख्या पूरी दुनिया में सबसे अधिक है, लेकिन वहां इस रोग के उपचार की दर अपेक्षाकृत कम है। इसका सबसे बड़ा कारण वहां बुजुर्ग आबादी की लगातार बढ़ती जनसंख्या के अलावा अधिकांश लोगों के मस्तिष्क में इस बीमारी के बारे में व्याप्त गलतफहमी भी है।
दरअसल, बुजुर्गों को अपने शिकंजे में जकड़ती इस बीमारी को लोग कोई बीमारी नहीं, बल्कि बढ़ती उम्र की एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं। माना जाता है कि अल्जाइमर मस्तिष्क की कोशिकाओं में और उसके आसपास प्लाक के असामान्य निर्माण के कारण होता है। प्लाक छोटे प्रोटीन (पेप्टाइड) के समुच्चय होते हैं, जिन्हें एमिलायड-बीटा कहा जाता है।
दुनिया भर में अनुसंधानकर्ता अल्जाइमर के अधिक प्रभावी उपचारों और चिकित्सा तथा अल्जाइमर की रोकथाम और मस्तिष्क स्वास्थ्य में सुधार के तरीके खोजने में जुटे हैं। अल्जाइमर को बढ़ने से रोकने का कोई स्थायी उपचार नहीं है, लेकिन कुछ दवाओं के जरिए डिमेंशिया के लक्षणों का इलाज किया जा सकता है। ये दवाएं मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटरों में बढ़ोतरी करने के माध्यम से काम करती हैं।
अल्जाइमर का पता लगाने का कोई आसान तरीका नहीं है और निदान के लिए एक संपूर्ण चिकित्सा जांच की आवश्यकता होती है। भारतीय शोधकर्ताओं को एक ताजा अध्ययन में अल्जाइमर का पता लगाने के लिए चीरफाड़ रहित और प्रभावी फ्लोरोसेंट आणविक परीक्षण विधि विकसित करने में सफलता मिली है।
आइआइटी जोधपुर, आइआइटी खडगपुर और सीएसआइआर की कोलकाता स्थित घटक प्रयोगशाला ‘भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान’ (आइआइसीबी) के सहयोग से यह संयुक्त अध्ययन किया गया। प्रयोगशाला में जिस अणु की खोज की गई है, वह मस्तिष्क में जाकर प्रतिदीप्ति प्रकाश से अल्जाइमर और उसकी तीव्रता का मापन करेगा और भविष्य में इस अणु के जरिए अल्जाइमर का शुरुआती दौर में ही पता लग सकेगा।
अल्जाइमर एक ऐसा स्नाायविक विकार है, जिससे दिमाग के सिकुड़ने, इसके ऊतकों के मरने आदि की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। प्राय: देखा जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ कुछ लोगों में भूलने की आदत विकसित होने लगती है। ऐसे में लोगों को कुछ भी याद नहीं रहता, उन्हें किसी को पहचानने में भी दिक्कत आती है।
हालांकि ऐसी स्थितियों को अक्सर समाज में यही सोचकर काफी हल्के में लिया जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन वास्तव में यह बढ़ती उम्र की कोई स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनमें पनपने वाली अल्जाइमर नामक बीमारी है। अगर कोई व्यक्ति सब कुछ भूल जाए, तो आसानी से समझा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति की जिंदगी कितनी कठिनाइयों से भर जाएगी।
आजकल इस बीमारी की चपेट में युवा भी आने लगे हैं और पिछले कुछ वर्षों से इस बीमारी के मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। भारत में इस समय करीब तिरपन लाख लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया से पीड़ित हैं। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक केवल साठ वर्ष से अधिक आयु के करीब चौंसठ लाख व्यक्ति डिमेंशिया से पीड़ित होंगे।
दिमाग से जुड़ी भूलने की यह बीमारी मस्तिष्क की नसों को नुकसान पहुंचने के कारण होती है। मस्तिष्क में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने के कारण इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इस बीमारी को लेकर जागरूकता और इसका उचित इलाज बेहद आवश्यक है। जरूरी सावधानियां और व्यायाम इस बीमारी में सहायक सिद्ध होते हैं। जीवनशैली में बदलाव करके कुछ हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। ध्यान और योग से भी इस बीमारी से काफी हद तक राहत मिल सकती है।
मस्तिष्क में होने वाली कुछ जटिल परेशानियां ही इस रोग का कारण हैं, लेकिन इस बीमारी के सही कारण अब तक ज्ञात नहीं हैं। डिमेंशिया अल्जाइमर रोग का सबसे सामान्य रूप है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे याददाश्त में कमी, अनियमित व्यवहार तथा शरीर की प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचता है। रोग का प्रभावी ढंग से उपचार करने के लिए इस बीमारी का शीघ्र पता लगने से ही लाभ होता है।
इसके सबसे सामान्य शुरुआती लक्षणों में हालिया घटनाओं को याद रखने में कठिनाई आती है। अल्जाइमर के प्रमुख लक्षणों में व्यक्ति के स्वभाव में बदलाव, रात में नींद कम आना, हालिया जानकारी भूलना, पढ़ने, दूरी का आकलन करने और रंगों को पहचानने में कठिनाई, तारीख और समय की जानकारी रखने में परेशानी, समय या स्थान में भटकाव, रखी हुई चीजों को बहुत जल्दी भूल जाना, आंखों की रोशनी कम होने लगना, छोटे-छोटे कार्यों में भी परेशानी होना, अपने ही परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाना आदि प्रमुख हैं। बीमारी के शुरुआती दौर में व्यक्ति में चिड़चिड़ापन और गुस्सा आना, मित्रों को ही भूलने लगना, नई बातों को भूलना आदि अल्जाइमर के लक्षण हैं।
अल्जाइमर के उपचार के तौर-तरीकों में औषधीय, मनोवैज्ञानिक और देखभाल संबंधी कई पहलू शामिल हैं। बढ़ती उम्र में मस्तिष्क की कोशिकाएं सिकुड़ने के कारण न्यूरानों के अंदर कुछ रसायन कम होने लगते हैं। दिमाग की कोशिकाओं में इन रसायनों की मात्रा संतुलित करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है, लेकिन ये दवाएं जितनी जल्दी शुरू की जाएं, उतना ही फायदेमंद होता है। रोग के उपचार में पारिवारिक और सामाजिक सहयोग सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अल्जाइमर को बढ़ने से रोकने के लिए ऐसे व्यक्तियों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और मनोरंजनात्मक गतिविधियों में शामिल होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा नियमित योग और ध्यान करना, पैदल चलना, कुछ पढ़ना-लिखना, घर में या बाहर किसी भी प्रकार के सामूहिक खेलों में भागीदारी करना, स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान देना, याददाश्त बढ़ाने के लिए वर्ग पहेली, सूडोकू, शतरंज जैसे दिमागी खेल खेलने जैसी गतिविधियां भी इस बीमारी को बढ़ने से रोकती हैं। स्वस्थ जीवनशैली और नशे से दूरी जैसी सावधानियां बरत कर भी अल्जाइमर और डिमेंशिया से बचा जा सकता है।
बुजुर्गों को अल्जाइमर से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उनके प्रति अपनापन रखें, उनकी मनपसंद चीजों का खयाल रखें, उन्हें अकेलापन महसूस न होने दें, समय निकाल कर उनसे बातें करें और उनकी बातों को नजरअंदाज न करें।
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