हजारीबाग9 घंटे पहलेलेखक: उमेश कुमार
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पूजा पंडाल के समीप गोलगप्पा बेचता दुकानदान।
दुर्गा पूजा के अवसर पर सभी पूजा पंडालों के आसपास गोलगप्पे, जिसे पानी पुरी, गुपचुप भी कहा जाता है के ठेलों को सभी ने देखा है। कोई भी पूजा पंडाल ऐसा नहीं जिसके आसपास चाट और गुपचुप का ठेला या दुकान न लगी हो। वैसे तो गोलगप्पे या चटपटी चाट का व्यवसाय वर्ष भर चलता रहता है लेकिन त्योहार के मेला में गोलगप्पे का चाव बढ़ जाता है।
एक आंकलन के मुताबिक दशहरा के मौके पर गोलगप्पे से जुड़ा व्यवसाय लगभग करोड़ रुपए के आसपास होता है। हालांकि इस करोड़ रुपए में गोलगप्पे बेचने वालों के हिस्से में कुछ हजार रुपए ही आ पाते हैं। पिछले दो वर्ष कोरोना के कारण मेला पर प्रतिबंध था जबकि इस वर्ष मेला लगने के समय रह रह कर होने वाली बारिश गोलगप्पे वालों को मायूस कर रहा है। महासप्तमी के बाद महाअष्टमी को भी बारिश होने से लोगों में निराशा है।
रात भर जाग कर बनाते हैं गोलगप्पा, दिन में ठेला लेकर निकल जाते हैं बेचने
पूजा पंडाल के समीप गुपचुप बेचते छोटू ने बताया कि वह हर दिन एक पेटी गुपचुप बनाता है। इसके लिए रात दो बजे से इस काम में लग जाते है। रात दो बजे से लगने के बाद भी यह काम पूरा होने में दिन 11 बज जाते हैं। इसके बाद रुखा सूखा खाकर ठेला लेकर निकल जाता है। बना हुआ माल जब तक बिक नहीं जाए लगा रहेगा, चाहे जितना समय लग जाए।
अगले दिन के लिए फिर दो बजे से तैयारी करना है। बताता है कि एक पेटी माल बिकने पर सौ डेढ़ सौ रुपए की कमाई होती है। पानी बरसने पर खराब हो जाता है। उसी प्रकार बिहार के ही बिनय ने बताया कि वह यहां अपने परिवार को भी रखा है, गोलगप्पे बेलने छानने में वह मदद करती है इसलिए वह एक घंटे देरी से इस काम में जुटता है।
एक पेटी माल तैयार करने में एक किलो आटा, एक किलो मैदा और एक किलो सूजी लगता है। एक-एक करके बेलने और तलने में काफी समय लग जाता है। इन्होंने बताया कि मौसम ठीक रहता, भीड़ रहती है तो एक पेटी माल देर सबेर बिक भी सकता है लेकिन कहीं भी एक दो ठेला नहीं, बहुत ठेला रहता है। उस पर बरसात होने लगता है तो सारा माल खराब हो जाता है, फेंक देना पड़ता है। इससे नुकसान भी होता है।
हजारीबाग में इस व्यवसाय से जुड़े हैं बिहार के हजारों लोग
हजारीबाग शहर और इसके आसपास के इलाकों में छोटे छोटे हाथ ठेलों पर सिर्फ गोलगप्पे बेचने वाले बहुत से लोग हैं। इनकी संख्या एक हजार से अधिक बताई जाती है। ये मूलतः बिहार के नवादा के आसपास के हैं जो सिर्फ गोलगप्पे बनाने और उसे बेचने का काम करते हैं। इसी सहारे दो पैसे कमाने की आस में हजारीबाग में रहते हैं। उनके अलावा लोकल लोग हैं जो चाट आदि के साथ गोलगप्पे भी बेचते हैं लेकिन इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है। लोकल लोगों के साथ हाथ बंटाने वाला उनका परिवार भी होता है।
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