हालांकि यार्कर करते समय छोटी सी ग़लती की भी गुंजाइश होने पर महंगे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। जब भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों ने लेंथ में ग़लती की और फ़ुलटॉस डाली तो उन्होंने 13.84 के इकॉनमी से रन लुटाए।
बुमराह के यॉर्कर को क्रिकेट के सबसे बेहतरीन यार्कर में से माना जाता है और उनके साथ अन्य तेज़ गेंदबाज़ों की तुलना में ग़लती की गुंजाइश कम ही होती है। 2021 की शुरुआत के बाद से टी20 में बुमराह का फ़ुलटॉस गेंदबाज़ी करते हुए भी इकॉनमी रेट केवल 7.94 का है। इस अवधि में कम से कम 30 फ़ुलटॉस फेंकने वाले तेज़ गेंदबाज़ो में से किसी की भी इकॉनमी बुमराह के आस पास भी नहीं है। केवल दो तेज़ गेंदबाज़ अनरिख़ नॉर्खिये और ड्वेन ब्रावो के ख़िलाफ़ 10 से कम रन प्रति ओवर बने हैं।
भारत के लिए बुमराह की क़ीमत यॉर्कर या डेथ में गेंदबाज़ी करने से कहीं ज़्यादा है। वह टी20 क्रिकेट में किसी भी परिस्थिति में, किसी भी फेज़ में गेंदबाज़ी करने वाले विशुद्ध गेंदबाज़ हैं। 2020 की शुरुआत से टी20 अंतर्राष्ट्रीय में उनका हर फेज़ में भारत के सभी तेज़ गेंदबाज़ों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ इकॉनमी है।
बुमराह की सभी फेज़ में शानदार गेंदबाज़ी भारत को काफ़ी लचीलापन देती है। जब बुमराह खेलते हैं, तो भारत उनके चार ओवरों को इस तरह से विभाजित कर सकता है जिससे उसके गेंदबाज़ी आक्रमण के अन्य सदस्य अपने सर्वश्रेष्ठ फेज़ में गेंदबाज़ी कर सकें। उदाहरण के लिए अगर बुमराह, भुवनेश्वर कुमार और दीपक चाहर के साथ खेलते हैं, तो वह पावरप्ले के बाद अपने सभी ओवर फेंक सकते हैं। जिससे दो स्विंग गेंदबाज़ों को नई गेंद से ज़्यादा गेंदबाज़ी करने का मैक़ा मिलता है। यदि बुमराह एक ऐसे आक्रमण का हिस्सा हैं जिसमें भुवनेश्वर, हार्दिक पंड्या और हर्षल पटेल शामिल हैं, तो वह भुवनेश्वर के साथ पावरप्ले में दो ओवर डाल सकते हैं और डेथ में अपने अन्य दो ओवर निपटा सकते हैं, जिससे हार्दिक और हर्षल मिडिल ओवरों में ही ज़्यादा गेंदबाजी करने के लिए फ़्री हो जाएंगे।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बुमराह की मौजूदगी से भारत के हर गेंदबाज़ को फ़ायदा हुआ है। नीचे दिए गए चार्ट में सभी गेंदबाजों ने बुमराह के डेब्यू के बाद से उनके साथ कम से कम 10 टी20 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले हैं और कम से कम 10 उनके बिना।
ऐसा क्यों होता है आप देख सकते हैं। बल्लेबाज़ अक्सर बुमराह को सुरक्षित खेलने की कोशिश करते हैं और इसके परिणाम स्वरूप उन्हें अन्य गेंदबाजों पर करारा प्रहार करना पड़ता है, जिससे अक्सर इस प्रक्रिया में वे अपना विकेट गंवा बैठते हैं। इस अतिरिक्त आक्रामकता का गेंदबाज़ों की इकॉनमी पर जो भी प्रभाव पड़ता है, उसकी क्षतिपूर्ति इस तथ्य से होती है कि वे आमतौर पर उन फेज़ में गेंदबाजी कर रहे होते हैं जिसमें वे सबसे उपयुक्त हैं।
अगर ऐसी स्थिति आती है कि भारत, बुमराह की अनुपस्थिति में संघर्ष करता दिख रहा है, तो यह लक्ष्य का बचाव करते समय आख़िरी के ओवर होंगे। सितंबर में दो सप्ताह के अंतराल में भारत ने पाकिस्तान, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया से ऐसे तीन मुक़ाबले गंवाए, जब विपक्षी टीम को आख़िरी के चार ओवर शुरू होने पर क्रमश: 43, 42 और 55 रन चाहिए थे।
कई फ़ैक्टर्स ने लक्ष्य का बचाव करते हुए महंगे डेथ ओवरों के अचानक बढ़ने में योगदान दिया है और बुमराह की अनुपस्थिति उनमें से केवल एक है। लेकिन यह एक महत्वपूर्ण फ़ैक्टर है। टी20 विश्व कप में अपने सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ के बिना भारत के लिए विशेष रूप से ऐसे समय में कठिन होगा जब उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी के दृष्टिकोण को बदल दिया है और पहले की तुलना में कहीं अधिक दफ़ा बड़े स्कोर बना रहे हैं। बुमराह के बिना बड़े स्कोर की भारत की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।
यह कुछ ऐसा है जिस पर भारत विचार करेगा क्योंकि वे बुमराह के रिप्लेसमेंट की तलाश में विमर्श कर रहे हैं। भारत की तो बात ही छोड़िए दुनिया में कहीं भी समान रिप्लेसमेंट नहीं मिलता। भारत की टी20 विश्व कप दल में रिज़र्व में शामिल दो तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद शमी और दीपक चाहर दो अलग-अलग विकल्प देते हैं।
क्या भारत शमी को लाकर अपनी डेथ गेंदबाज़ी की समस्याओं को हल करने की कोशिश करेगा, जिनका डेथ ओवरों में अच्छा रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन उनके पास गति और कौशल है जो ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में संभावित रूप से सभी फेज़ में अच्छा कर सकते हैं? या क्या भारत अपनी डेथ गेंदबाज़ी की समस्या के साथ जाने का फ़ैसला करेगा और कोशिश करेगा कि अन्य तरीक़ों से इसकी भरपाई की जाए? चाहर एक स्विंग गेंदबाज़ हैं जो पावरप्ले में सबसे अच्छा करेंगे। वह निचले क्रम में बल्लेबाज़ी करते हुए छक्के भी लगा सकते हैं और बल्लेबाज़ी में गहराई प्रदान कर सकते हैं, जिससे भारत के शीर्ष क्रम को और भी अधिक फ़्री होकर आक्रमण करने का मौक़ा मिल सकता है।
दो संभावित समाधान हैं लेकिन दोनों परफ़ेक्ट से कोसों दूर हैं।
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