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बाड़मेरएक घंटा पहले
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रस्में, रीति-रिवाज और परंपराओं का छूट रहा नाता
देवउठनी एकादशी को अबूझ मुहूर्त में शादी ब्याह होने के बाद अब 25 नवंबर को शुक्र उदय होने के बाद शुभ और मांगलिक कार्य की शुरुआत होगी। शास्त्रों में विवाह के लिए शुक्र का उदय होना अनिवार्य माना है। उधर, शादियों का तौर तरीका पूरी तरह से अब बदल गया है।
रस्में, रीति-रिवाज ढाई घंटे में निपट रही हैं। बीते कई सालों में बढ़ती तकनीक से हजारों काम सरल हुए हैं। हजारों नई चीजें हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई हैं। व्हाट्सऐप, सेल्फी जैसे नए शब्द अब हमारे लिए आम हो गए हैं। इस बीच रोजमर्रा की जिंदगी की तरह ही हमारे खास मौके, जश्न मनाने के तरीके भी बदल गए। चाहे त्योहार हों या जिंदगी का सबसे बड़ा जश्न शादी। अब आपके घर में भी शादियां वैसी नहीं होती, जैसी 10-15 साल पहले हुआ करती थीं। परंपराओं में भले ही ज्यादा फर्क न आया हो, लेकिन उन्हें पूरा करने के ढंग में जरूर आया है।
देहरी पूजन, गीत-गाने से हुई दूरी, प्रेम विवाह में अलग-अलग रीति-रिवाज
सिर्फ उच्च वर्ग ही नहीं, मध्यम वर्ग में भी होने वाले प्रेम विवाह में अब कई रीति-रिवाजों से शादियां हो रही हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। खासतौर पर लड़के वालों के धर्म के अनुसार शादी होती थी। पहले के समय में 11, 7, 5 या कम से कम 3 दिन की लग्न रखी जाती थी। शादियों में एक महीने पहले से देहरी पूजन, गीत-गाने के साथ अनाज साफ करने की प्रक्रिया चलती थी, जो कि सुविधानुसार अब एक दिन नहीं बल्कि 4 घंटे में ही सगाई, शादी और विदाई करके रस्में निपटा रहे हैं। उधर, मंदिरों में सिर्फ ढाई घंटे में शादी पूरी हो जाती है। अब महिलाओं के हाथ से रीति-रिवाज वेडिंग प्लानर्स के हाथों में पहुंच गए हैं।
छूटती जा रही लाल जोड़े की बंदिश, नई-नई डिजाइन पसंद
चाहे कोई बड़े घर की दुल्हन हो या आम घर की, पुराने जमाने में लहंगे लाल रंग के ही पहने जाते थे। उस पर मोटा जरी या पैच का काम। ब्लाउज तो दुल्हन के वजन से भी भारी और उस पर माथे तक आती चुनरी। लेकिन अब गौर करें तो लड़कियां नए-नए डिजाइन आजमा रही हैं। लाल रंग की कोई बंदिश नहीं रह गई है। अब दुल्हन-दूल्हा पहले से ही मैचिंग कपड़े तय कर लेते हैं ताकि साथ में खड़े होने पर परफेक्ट कपल लगें। लड़के भी सिर्फ शेरवानी नहीं बल्कि पठानी सूट, डिजाइनर धोती कुर्ता भी पहनते हैं।
सोशल मीडिया से पहुंच रही है कुंकुम पत्री, मेहमान भी राजी
शादी विवाह इंडस्ट्री से जुड़े लोग कहते हैं कि 40-50 साल पहले शादी के कार्ड छपवाने का चलन नहीं था। सिर्फ पीले चावल देते थे। लड़के की बारात का न्योता के लिए सुपारी और लड़की की शादी के लिए पीले चावल भेजे जाते थे। धीरे-धीरे निमंत्रण पत्र आए। फिर 10 रुपए की कीमत से लेकर 1000 रुपए तक के कार्ड छपवाए जाने लगे। अब डिजिटल कार्ड बन रहे हैं। एक कार्ड व्हाट्सएप के माध्यम से सबको फॉरवर्ड कर दिया जाता है। अब इसके लिए कम संख्या में कार्ड छपवाते हैं।
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