2021-22 में भारत से वस्तु एवं सेवा निर्यात 67,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। जिसे 2030 तक 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए विभिन्न देशों से मुक्त व्यापार समझौते सम्पन्न किए जा रहे हैं।
ऐसा कहा जाता है कि अर्थशास्त्र एक जटिल विषय है। जिस प्रकार शरीर की विभिन्न नसें, एक दूसरे से जुड़ी होकर पूरे शरीर में फैली होती हैं और एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं, उसी प्रकार अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलू (रुपए की कीमत, ब्याज दरें, मुद्रा स्फीति, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, वित्त की व्यवस्था, विदेशी ऋण, विदेशी निवेश, वित्तीय घाटा, व्यापार घाटा, सकल घरेलू उत्पाद, विदेशी व्यापार, आदि) भी आपस में जुड़े होते हैं और पूरी अर्थव्यवस्था एवं एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। विषय की इस जटिलता के चलते अक्सर कई व्यक्ति अर्थव्यवस्था सम्बंधी अपनी राय प्रकट करने में गलती कर जाते हैं। जैसे, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आम बजट पर विपक्षी नेताओं द्वारा अक्सर यह टिप्पणी की जाती है कि इस बजट में तो आंकड़ों की जादूगरी की गई है और वित्त मंत्री तो आंकड़ों के बाजीगर हैं। दूसरे, अर्थशास्त्र की जटिलता के चलते ही देश के कई नागरिक भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को कमतर आंकते हैं। वैसे, अर्थशास्त्र के बारे में एक और बात कही जाती है कि कुछ अर्थशास्त्री, आधी अधूरी (हाफ कुकड/बेक्ड) जानकारी के आधार पर जितना बताते हैं उससे कहीं अधिक छुपाते भी हैं।
अर्थव्यवस्था के कुछ पहलू तो ऐसे भी हैं जो देश के एक वर्ग को यदि फायदा पहुंचाते हैं तो एक अन्य वर्ग को नुक्सान पहुंचाते नजर आते हैं, जैसे, ब्याज की दर। ब्याज दर में यदि वृद्धि की जाती है तो बैंकों के जमाकर्ता तो प्रसन्न होते हैं क्योंकि उनकी ब्याज की आय में वृद्धि होती है परंतु ऋण प्राप्तकर्ता नाराज होते हैं क्योंकि उन्हें ब्याज के रूप में अधिक राशि का भुगतान करना होता है। मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज की दरों को अक्सर बढ़ाया अथवा घटाया जाता है। इससे देश के नागरिकों का एक वर्ग प्रसन्न होता है तो एक दूसरा वर्ग नाराज होता है, जबकि केंद्र सरकार एवं बैंकों को तो देश और अर्थव्यवस्था के हित को ध्यान में रखकर ही इस प्रकार के निर्णय करने होते हैं। इसी प्रकार एक और उदाहरण दिया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर जब अमेरिकी डॉलर महंगा होकर रुपए की कीमत कम होती है तो ऐसे में निर्यातक तो प्रसन्न होते हैं परंतु आयातक नाराज होते हैं क्योंकि आयातक को अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपयों का भुगतान करना होता है और निर्यातक को अमेरिकी डॉलर के एवज में अधिक रुपए मिलने लगते हैं। इसके ठीक विपरीत यदि अमेरिकी डॉलर सस्ता होने लगता है एवं रुपए की कीमत बढ़ने लगती है तो आयातक प्रसन्न होने लगते हैं एवं निर्यातक नाराज होने लगते हैं। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक लगातार यह प्रयास करता है कि भारतीय रुपए की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होकर वह स्थिर बना रहे ताकि विदेशी निवेशकों का विश्वास भारतीय रुपए पर बना रहे।
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उक्त कारणों के चलते ही कई बार विपक्षी दल भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के सम्बंध में प्रशन्न खड़े करते रहते हैं। परंतु, यह देश के हित में होगा कि आर्थिक विकास के सम्बंध में सही सही स्थिति से नागरिकों को अवगत कराया जाये और इस सम्बंध में प्रस्तुत किए जाने वाले आंकड़े सदैव प्रामाणिक रहें और इन आंकड़ों का विश्लेषण भी सटीक एवं सही हो। न कि, केवल चूंकि आलोचना करनी है इसलिए इन आंकड़ों को अपने तर्कों के फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाये। भारत सरकार के वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, सीएमआईई, विश्व बैंक, आईएमएफ, एडीबी, विश्व व्यापार संगठन, आदि संस्थानों के वेब साइट्स से इस संदर्भ में सही आंकड़े लिए जा सकते हैं।
भारत में अभी हाल ही में कई क्षेत्रों में अतुलनीय विकास हुआ है। परंतु, इसकी पर्याप्त चर्चा देश में होती नहीं दिखती है, जबकि नागरिकों को भी पूर्णतः यह जानने का हक है। भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और जिस गति से भारत का आर्थिक विकास हो रहा है इसे देखते हुए वर्ष 2030 तक भारत, अमेरिका एवं चीन के बाद, विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अप्रैल-जून 2022 तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 13.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। बेरोजगारी की दर कम होकर 6.7 प्रतिशत पर नीचे आ गई है, जो अप्रैल-जून 2021 में 12.7 प्रतिशत थी। भारत में मंदी की शून्य सम्भावना है, ऐसी सम्भावना विश्व के आर्थिक संस्थान व्यक्त कर रहे हैं। भारतीय बैंकों के पास पूंजी का पर्याप्त बफर उपलब्ध है। भारतीय बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात मार्च 2022 में 16.7 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है, जो कई अमेरिकी बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। भारतीय बैंकों में तरलता की स्थिति संतोषजनक है। भारतीय बैंकों की गैर निष्पादनकारी आस्तियां लगातार कम हो रही हैं और सकल गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत मार्च 2022 में 5.9 प्रतिशत और शुद्ध गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत रहा है। भारतीय बैंकों का प्रोविजन कवरेज रेशो भी बढ़कर 70.9 प्रतिशत पर आ गया है। डिजिटल लेनदेन भारत में लगातार बढ़ रहे हैं और अब तो भारत की डिजिटल बैंकिंग व्यवस्था पूरे विश्व में सबसे अधिक विकसित मानी जा रही है।
हाल ही के समय में भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हुई है। यह 2011-12 में 21.9 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 10.2 प्रतिशत पर आ गई है। ग्रामीण इलाकों में तो यह बहुत तेजी से घटी है, जो 2011-12 में 26.3 प्रतिशत थी वह 2020-21 में घटकर 11.6 प्रतिशत हो गई है। भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय भी तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2001-02 में प्रति व्यक्ति औसत आय 18,118 रुपए थी और यह वर्ष 2021-22 में बढ़कर 174,024 प्रति व्यक्ति हो गई है। गरीबों की औसत आय तेजी से बढ़ रही है, जिससे आय की असमानता भी कम हो रही है।
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हाल ही के समय में भारत वैश्विक स्तर पर कई क्षेत्रों में विश्व गुरु के तौर पर उभर कर सामने आया है, जैसे- फार्मा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, ऑटो उद्योग, मोबाइल उत्पादन क्षेत्र, नवीकरण ऊर्जा क्षेत्र, डिजिटल व्यवस्था, स्टार्ट अप, ड्रोन, अंतरिक्ष, हरित ऊर्जा, सुरक्षा उपकरण निर्माण उद्योग, खिलौना उद्योग, आदि। कई उदयोगों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के लागू किए जाने के बाद से इन उद्योगों में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में तेजी से बढ़ रही है। दुग्ध उत्पादन में आज भारत आत्म निर्भर होकर पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। चाय उत्पादन एवं मछली उत्पादन के मामले में भी भारत विश्व में दूसरे पायदान पर पहुंच गया है। भारत में वर्ष 2021-22 में मुख्य कृषि फसलों का उत्पादन 31.45 करोड़ टन रहा जबकि बागवानी का उत्पादन 34.2 करोड़ टन का रहा। बागवानी के अधिक उत्पादन का सीधा मतलब है कि किसानों की आय में अधिक वृद्धि हुई है। कृषि के क्षेत्र में भी भारत अब एक निर्यातक देश बन गया है।
वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तु एवं सेवा निर्यात 67,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। जिसे 2030 तक 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए विभिन्न देशों से मुक्त व्यापार समझौते सम्पन्न किए जा रहे हैं। फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया आदि देशों को ब्रह्मोस मिसाईल का निर्यात किए जाने की तैयारियां की जा रही हैं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य देशों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। आज 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात भारत से किया जा रहा है। भारतीय विमान तेजस को खरीदने में मलेशिया ने रुचि दिखाई हैं। आकाश मिसाइल को भी भारत सरकार द्वारा निर्यात की मंजूरी दी जा चुकी है।
जब विश्व के कई विकसित देश भी महंगाई के चलते अब मंदी की ओर बढ़ते दिख रहे हैं ऐसी स्थिति में भारत महंगाई पर अंकुश लगाने में सफल रहा है और अब तो वैश्विक स्तर पर कई आर्थिक संगठन भी लगातार यह कह रहे हैं कि भारत में मंदी की सम्भावना लगभग शून्य है। आज भारत पड़ोसी देशों सहित कई अन्य देशों की आर्थिक मदद करने में सक्षम हो गया है। श्रीलंका को 350 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता भारत द्वारा उपलब्ध कराई गई है, साथ ही खाद्य सामग्री, पेट्रोल, डीजल एवं दवाइयां आदि सामान भी उपलब्ध कराया गया है। अफगानिस्तान को भी खाद्य सामग्री एवं दवाइयों की कई खेप मानवता के नाते सहायता के रूप में भारत द्वारा भेजी जा चुकीं हैं। श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव, लाओस, दक्षिण अफ़्रीकी देशों आदि को चीन ने आर्थिक सहायता के नाम लगभग बर्बाद कर दिया है। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान आदि देश भी इसी राह पर जाते दिख रहे हैं। परंतु, भारत ने इन देशों की भी आर्थिक मदद करते हुए आर्थिक समस्याओं से इन्हें बाहर निकालने का प्रयास किया है।
इस प्रकार आज आवश्यकता इस बात की है कि नागरिकों को आर्थिक विकास के सम्बंध में सही सही जानकारी उपलब्ध करायी जाये, उनमें स्व का भाव जागृत किया जाये, जैसा कि जापान, इजराइल, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देश कर सके, ताकि देश के विकास को और भी तेज गति देकर भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया जा सके।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
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