चीन-ताइवान के बीच चल रही खींचतान के बीच ताइवान को फिर से इंटरपोल का सदस्य बनने की ललक जागी है. इस काम में ताइवान सिर्फ और सिर्फ भारत के ही आसरे बैठा है. आखिर ऐसा क्यों?
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अमेरिका जैसी दुनिया की सुपरपावर का दोस्त होने के बाद भी ताइवान अभी तक, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन यानी इंटरपोल का सदस्य नहीं है. पहला सवाल तो यही महत्वपूर्ण है कि आखिर ऐसा क्यों? इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण दूसरा सवाल यह है कि जब चीन और ताइवान जंग के मुहाने पर आ खड़े हुए हैं, तभी ताइवान इंटरपोल का मेंबर बनने को हद से पार का व्याकुल क्यों हो उठा है? वो भी चीन के धुर-विरोधी हिंदुस्तान की मदद से. हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित, इंटरपोल की चार दिवसीय आम महासभा (18 से 22 अक्टूबर) में भी कई देशों ने ताइवान को इंटरपोल की सदस्यता दिए जाने को लेकर चर्चा की थी. आइए जानते कि इन सवालों के भीतर मौजूद जवाबों की Inside Story आखिर है क्या?
इंटरपोल के सदस्य देशों की सूची पर नजर डाली जाए तो यूं तो ताइवान के साथ और भी दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जिन्हें इंटरपोल की सदस्यता नहीं मिली है. इनमें एक नाम है दुनिया की वो परमाणु ताकत जिससे अमेरिका भी थर्राता है. मतलब, उत्तर कोरिया. इसके बावजूद इन दिनों जहां कहीं भी इंटरपोल की चर्चा होता है वहीं ताइवान का मुद्दा भी सिर उठाने लगता है. जबकि ताइवान इंटरपोल का अभी तक सदस्य भी नहीं है. उसके बाद भी इंटरपोल के भीतर ताइवान का नाम अक्सर चर्चाओं में बना रहता है. हाल ही में दिल्ली में आयोजित इंटरपोल की चार-दिवसीय आम महासभा में भी इस मुद्दे पर अनौपचारिक रूप से चर्चा हुई. तो यह विषय फिर गरमा गया.
पिछले कुछ सालों में तनाव बढ़ा
दरअसल, जबसे चीन-ताइवान के बीच बीते कुछ वर्ष से सिर-फुटव्व्ल बढ़ी है. तभी से ताइवान इंटरपोल की सदस्यता के लिए व्याकुल है क्योंकि उसका धुर-विरोधी चीन काफी पहले से इंटरपोल का सदस्य है. ताइवान अक्सर आरोप लगाता रहा है कि, उसका दुश्मन नंबर-वन चीन, इंटरपोल की आड़ लेकर, ताइवान की हदों में बेजा हरकतें करता रहा है. इसीलिए जैसे ही ताइवान को इंटरपोल की अहमियत समझ में आई, उसने खुद को इंटरपोल का सदस्य बनाने के प्रयास शुरू कर दिए. हालांकि इंटरपोल ताइवान के इन आरोपों को हमेशा से ही खारिज करता रहा है कि वो (इंटरपोल), किसी भी सदस्य देश की कोई गैर-कानूनी या बेजा मदद करता है. तो फिर इंटरपोल चीन के पक्ष में भला ताइवान के भीतर जाकर क्यों कोई बेजा मदद करेगा?
यहां यह भी बताना जरूरी है कि ताइवान अक्सर चीन पर आरोप लगाता रहा है कि वो, इंटरपोल का सदस्य होने के नाते इंटरपोल से हासिल उसके ‘रेड कॉर्नर नोटिस’ जैसी सख्त सुविधा का नाजायज लाभ लेने की कोशिशें पहले भी करता रहा है. और यह काम चीन मौजूदा वक्त में तो हदों से पार जाकर कर रहा है. ताकि इंटरपोल की बैसाखियों के सहारे चीन, ताइवान का बे-वजह ही उत्पीड़न कर सके. क्या चीन या कोई भी सदस्य देश इस तरह से इंटरपोल का दुरुपयोग कर सकता है? टीवी9 भारतवर्ष ने इस बारे में भारतीय पुलिस सेवा के अनुभवी अधिकारी और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह से बात की. 1974 बैच के पूर्व आईपीएस विक्रम सिंह ने कहा, “होने को तो कहीं भी कुछ भी संभव है. जहां तक मैं 40 साल के पुलिस सेवा के अनुभव से कहूं तो, इंटरपोल जैसी प्रतिष्ठित इकलौती इंटरनेशनल स्तर की पुलिस संस्था पर आरोप लगाना गलता है.”
चीन-ताइवान टेंशन के बीच फंसा इंटरपोल
यूपी के पूर्व डीजीपी ने आगे कहा, “चीन और ताइवान के बीच तनातनी में इंटरपोल सिर्फ पिस रहा है. इंटरपोल को बदनामी मिल रही है. मेरे निजी अनुभव के मुताबिक दुनिया के 195 सदस्य देशों वाला इंटरपोल सा संगठन चीन या ताइवान की लड़ाई में पड़कर अपनी बदनामी कतई नहीं कराएगा. जबकि ताइवान जिस पर चीन की हमेशा गिद्ध दृष्टि लगी रहती है, वो ताइवान चीन को लेकर अक्सर तमाम बड़े-बड़े बयान देता रहता है, तो ऐसे में चीन को लेकर ताइवान अगर इंटरपोल की कार्य-प्रणाली पर उंगली उठा रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि किसी एक गैर-सदस्य देश के आरोप से इंटरपोल की छवि कमजोर पड़ जाएगी. ताइवान अगर इंटरपोल पर चीन की मदद का आरोप लगा रहा है तो उसे, इन आरोपों की पुष्टि में सबूत भी तो देने चाहिए.”
“सन् 2016 से तो मैं ही देख-पढ़ रहा हूं कि अब तक बीते करीब 5-6 साल में ताइवान, इंटरपोल के ऊपर सिर्फ आरोप ही मढ़ रहा है. चीन ने ताइवान में घुसपैठ के लिए किस तरह से और कब इंटरपोल का नाजायज फायदा उठाया? यह अब तक कभी ताइवान साबित नहीं कर सका?” इस बारे में टीवी9 भारतवर्ष ने बात की दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव से. क्योंकि एलएन राव का पुलिसिया नौकरी के दौरान अक्सर इंटेलीजेंस एजेंसीज व इंटरपोल से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ही सही मगर, पाला पड़ता रहा है. बकौल राव, “इंटरपोल की अपनी एक गरिमा है. उसके ऊपर आरोप लगाना ही मेरी नजर में तो गलत है. यह मुद्दा तो ताइवान और चीन के बीच का है. और फिर जब ताइवान इंटरपोल का मेंबर तक नहीं है तो फिर वो इंटरपोल के ऊपर चीन की मदद करने जैसे बे-सिर-पैर के आरोप कैसे मढ़ सकता है? घर में बैठे-बिठाए. इंटरपोल एक अंतरराष्ट्रीय साझा पुलिस संगठन है.”
“न कि किसी देश की कोई खुफिया अथवा जांच एजेंसी. जो अपने गुप्तचरों के जरिए ताइवान की सूचनाएं चोरी-छिपे ले जाकर ताइवान के दुश्मन देश चीन को दे आएगा. मेरे 40 साल पुलिस नौकरी के अनुभव से तो यह ताइवान का चीन पर दवाब बनाने का हथकंडा भी हो सकता है. मैंने अब तक दिल्ली पुलिस की इतनी लंबी नौकरी में इंटरपोल के ऊपर ताइवान सा लगाया जा रहा आरोप पहली बार देखा-सुना है.”
ताइवान को इंटरपोल से खासी उम्मीद
भारत की अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी में लंबे समय तक इजराइल, रूस, नेपाल में काम कर चुके एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “इंटरपोल अपने 195 देशों के बीच सिर्फ और सिर्फ संबंध बनाने-बनवाने का पुल है. न कि कोई इंटेलीजेंस एजेंसी है इंटरपोल. इंटरपोल का काम अपने सदस्य देश की जरूरत या मांग के मुताबिक उसकी मदद करना है. न कि इधर से उधर वो भी ताइवान से किसी अपने गैर-सदस्य देश के खिलाफ, अपने चीन से किसी सदस्य देश के लिए जासूसी करना या कराने जैसा काम है इंटरपोल का.”
उन्होंने कहा, “मैंने इंटरपोल को 32 साल से ज्यादा समय तक करीब से देखा परखा है. इंटरपोल अपने हर सदस्य देश की मदद तो किसी भी हद को पार करके करने के लिए तैयार रहता है. जिस तरह के आरोप ताइवान उसके ऊपर मढ़ रहा है कि वो (इंटरपोल), चीन के इशारे पर उसे (ताइवान) को कमजोर या परेशान करने-कराने का काम करता है. यह मुझे तो ना-मुमकिन लगता है. और फिर दुनिया के आज के बदले हुए हालातों में कुछ ठोस कहना भी मैं मुनासिब नहीं समझता हूं. कहीं भी कुछ भी संभव है. अब तो मुझे नौकरी से रिटायर हुए ही 15 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है.” यही वे तमाम वजहें है जिनके चलते किसी भी कीमत पर अब ताइवान खुद इंटरपोल का सदस्य बनने की जिद पर अड़ा है, ताइवान को उम्मीद है कि जब वो खुद इंटरपोल का सदस्य बन जाएगा, तो खुलेआम अपने दुश्मन देश चीन से मोर्चा तो ले सकेगा.”
भारत-चीन के बीच भी जारी विवाद
जब-जब चीन की ओर से कोई खुफिया कदम उठाया जाएगा तब-तब ताइवान इंटरपोल पर चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए कदम उठाएगा. हालांकि, भारतीय खुफिया एजेंसी के एक अधिकारी ताइवान की इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखते है. इनके मुताबिक, “जैसा ताइवान सोचता है इंटरपोल वैसे काम ही नहीं करता है. इंटरपोल सिर्फ वही काम करता है जो उसे सही लगता है. और उसके हर सदस्य देश के जो काम हित में होता है. चीन या ताइवान मतलब दो देशों के बीच मच घमासान में इंटरपोल अपनी टांग न कभी फंसाएगा न अड़ाएगा. क्योंकि इटंरपोल ने खुद ही अपनी हदें तय की हैं. जिन्हें वो बखूबी जानता-पहचानता है.”
इन तमाम बातों के बीच ताइवान इसीलिए इंटरपोल की सदस्यता के लिए व्याकुल है. इंटरपोल की सदस्यता दिलाने में दुनिया में भारत ही ताइवान की मदद कर सकता है. क्योंकि चतुर ताइवान चीन और भारत के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को भली भांति जानता-समझता है. ताइवान दरअसल चीन और भारत के बीच मौजूद मतभेदों की खाई में कूदकर, भारत की मदद से खुद को किसी भी तरह से इंटरपोल का सदस्य बनाने पर उतारू है. ताइवान को उम्मीद है कि क्योंकि चीन भारत का दुश्मन नंबर-1 और इंटरपोल का मजबूत सदस्य देश है. ऐसे में भारत हर हाल में चीन को नीचा दिखाने के लिए ताइवान की मदद इंटरपोल का सदस्य बनवाने में कर सकता है. जबकि इंटरपोल का कोई भी वो सदस्य देश जिसका चीन से कोई लेना-देना नहीं है, भला ताइवान को इंटरपोल का सदस्य बनवाने में क्यों रुचि दिखाएगा?
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