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29 मिनट पहले
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मुकेश माथुर, स्टेट एडिटर, दैनिक भास्कर, राजस्थान
फिल्म फॉरेस्ट गम्प। जीवन में लगभग सब कुछ गंवा देने के बाद एक दिन फॉरेस्ट दौड़ना शुरू कर देता है। वह कहता है- उस दिन मैं बिना किसी खास मकसद के दौड़ने लगा। मैं घर के सामने सड़क तक भागा। फिर सोचा कि मुझे दूसरे शहर तक जाना चाहिए। मैंने दौड़ते हुए स्टेट भी पार कर लिया। लगा कि मुझे भागते रहना है। जब मैं थक जाता तो सो जाता। भूख लगती तो कुछ खा लेता। लेकिन मैं बस भाग रहा था।
फॉरेस्ट की दूरी के साथ उसकी दाढ़ी भी बढ़ रही थी। भारत जोड़ने निकले राहुल गांधी भी यात्रा के हजार किलोमीटर बाद खिचड़ी दाढ़ी में खूब फब रहे हैं। राहुल की दाढ़ी फॉरेस्ट से मेल खा रही है लेकिन वे बेमकसद नहीं दौड़ रहे हैं। भारत जोड़ना सार्थक उद्देश्य है। देश में खाइयां बढ़ी हैं। कोई इनकार करता है तो वह खुद को धोखा दे रहा है। जो लोग कहते हैं कि देश टूटा कहां है जो जोड़ रहे हैं, वे भी गलत हैं।
भौगोलिक सीमाएं जुड़ी रहने से कहीं ज्यादा जरूरी दिलों का जुड़े रहना है। उस नीरस घर की चारदीवारी को सोचिए, जिसमें सब साथ रहते हैं मगर अबोला चल रहा हो। भारत जोड़ो यात्रा की प्रतिक्रिया स्वरूप कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा जनसंकल्प यात्रा निकालने जा रही है। 50 हजार कार्यकर्ताओं, आम लोगों को शामिल करने का दावा किया जा रहा है। ‘प्रतिक्रिया स्वरूप’- यही दो शब्द कहानी का सार हैं।
भाजपा के एजेंडे का अनुसरण करती आई, अक्सर उसके कारण अपनी रणनीति भूल जाने वाली, नैरेटिव में फंस जाने वाली कांग्रेस ने पिछले कई वर्षों में पहली बार भाजपा के लिए एजेंडा सेट किया है। शुरू में सुविधाजनक कंटेनर, महंगा टीशर्ट जैसे ओछे हमले कर रही भाजपा की मशीनरी भी यात्रा पर अब लगभग मौन है। इसके विपरीत थिंक टैंक आकलन करने में जुटा है कि क्या उत्तर भारत में भी यात्रा प्रभावी रहेगी?
आईटी सेल ने कड़ी मेहनत से राहुल की जो छवि निर्मित की थी, उसमें भी कहीं कोई कमी तो नहीं आ रही? क्या जननेता बनने की राहुल की कोशिश कुछ सफल हो जाएगी? यह चिंतन भाजपा को उस वक्त करना पड़ रहा है, जब गुजरात में वे स्कूल-अस्पताल की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का क्लासरूम में बैठे वाला फोटो याद कीजिए।
हद ताे यह कि केजरीवाल ने नोट पर भगवान की तस्वीर लगाने की बहस छेड़ दी, जिसमें भाजपा के प्रवक्ता उलझकर रह गए हैं। इधर बोलें कि उधर। अपने दो कार्यकालों में पहले कब ऐसा हुआ था कि भाजपा को विपक्ष की लाइन पर आगे बढ़ना पड़ा हो? राहुल की यात्रा उत्तर प्रदेश को बस छू कर निकल रही है। उत्तर प्रदेश की 80, बिहार की 40, पश्चिम बंगाल की 42, गुजरात की 26, झारखंड की 14, उत्तराखंड की पांच और नॉर्थ ईस्ट की 25 लोकसभा सीटों को नजरअंदाज-सा किया जा रहा है।
विधानसभा चुनाव गुजरात में हैं, आगे राजस्थान का रण है लेकिन यात्रा इन राज्यों में मानो औपचारिकता के लिए जाएगी। ठीक है कि आपने दक्षिण का सुरक्षित रास्ता चुना, लेकिन उसी ताकत और फोकस के साथ पूरा समय देते हुए उत्तर में भी यात्रा होनी चाहिए थी। वही भीड़, वही माहौल, वैसे ही दृश्य कांग्रेस के कार्यकर्ता यहां भी प्रस्तुत कर ही सकते थे।
यात्रा का उत्साह, उत्तेजना, भावना कांग्रेस की डूबी नाव को सहारा दे पाएंगे या नहीं, यह बहुत आगे की बात है लेकिन अध्यक्ष पद किसी अन्य को सौंपकर जनता के बीच निकलना, जननेता बनने की कोशिश करना अच्छा आइडिया है। खास बात यह कि कई मौकों पर रैली, अभियान यहां तक कि पीके का प्रजेंटेशन बीच में छोड़ गए राहुल यात्रा में लगातार बने हुए हैं।
उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी को महंगाई, नफरत के माहौल जैसे मुद्दों पर निशाना बनाते आए राहुल जनता को एक बार भी भरोसा नहीं दिला पाए थे कि वे खुद मोदी का विकल्प हो सकते हैं। भारत जोड़ो यात्रा इस लंबे चलने वाले प्रयास की शुरुआत हो सकती है।
इस यात्रा का उत्साह, उत्तेजना, भावना कांग्रेस को सहारा दे पाएंगे या नहीं, यह आगे की बात है लेकिन अध्यक्ष पद किसी अन्य को सौंपकर जनता के बीच निकलना, जननेता बनने की कोशिश करना अच्छा आइडिया है।
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