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- If The House Is Auspicious And Pure, Then The Filthiness Of The Inauspicious House Will Be Removed.
झाबुआ3 घंटे पहले
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परमात्मा के वचनों ने जिन शासन पर अनंत उपकार किए है। उन्होंने जीव को चार प्रकार के धर्म करने का संदेश दिया। जिसमें दान, शील, तप और भाव है। इन चारो धर्म का जीवन में उपयोग यदि करे, तो मन निर्मल हो जाएगा और फिर अधिक आराधना करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सिर्फ आराधना निर्मलता को बनाए रखने के लिए ही करना पड़ेगी।
उपरोक्त प्रेरक उद्बोधन आचार्य नित्यसेन सूरीश्वरजी की निश्रा में चल रहे चातुर्मास में मंगलवार को पुण्य सम्राट पूज्य आचार्य जयंतसेन सूरीश्वरजी के सुशिष्य मुनि निपुणरत्न विजयजी ने योगसार ग्रंथ की गाथाओं को समझाते हुए। बावन जिनालय के पौषध भवन में आयोजित धर्म सभा में व्यक्त किए। उन्होंने चारों प्रकार के धर्म करने के लाभ की विस्तृत व्याख्या की। प्रथम धर्म दान धर्म को अपनाने से ममत्व पर अंकुश लगेगा। जिससे आत्मा के परिग्रह के संस्कार को निष्क्रियता प्राप्त हो सकती है।
परिग्रह जीव को बांध कर रखने का कार्य करता है। जीव को नवग्रह जितना परेशान नहीं करते हैं। उतना दसवां ग्रह परिग्रह परेशान कर रहा है। क्योंकि जीव को परिग्रह का नशा चढ़ चुका है, जो उतर नहीं पा रहा है। जिसको कम लगता है तो पूर्ति की जा सकती है लेकिन बस केवल आने दो सोचने वाले की पूर्ति नहीं कर सकते हैं। दान धर्म को अपनाने से परिग्रह यानी एकत्र करने के संस्कार कम हो जाएंगे और देने के संस्कार विकसित होंगे। दान यानी बीज बोना जिसका फल कई गुना हो सकता है।
धर्म शील की भी व्याख्या करते हुए कहा कि जीव को पांच इंद्रियों के विषयों को भोगने में शील और सदाचार होना चाहिए। शील यानी स्वभाव जो की आत्मा का स्वभाव ही हे। जीव का भला सदाचारी होने में ही है, अन्यथा सद्भाव कभी भी नहीं आ पाएगा। तप धर्म का महत्व बताते हुए कहा तप से आहार संज्ञा को रोकने में सहायता मिलती है। इसका अनुसरण करना ही चाहिए। अंतिम चौथा भाव धर्म कहां जाता है। जीव को कषायों के कारण भय लगता है भय का नाश करने के लिए भाव धर्म को अपनाना चाहिए।
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