PM Modi in Ujjain: भारत विज्ञान और गणित का विश्वगुरु रहा है, उज्जैन का इतिहास देखें तो इस बात के पुख्ता प्रमाण भी मिलते हैं. महाकाल नगरी के विकास के लिए खींचा गया नया खाका यहां के गौरवशाली इतिहास को सहेजने की तरफ एक बड़ा कदम है.
प्राचीनकाल में उज्जैन को अवंति नगरी के नाम से जाना जाता था और यह विज्ञान की रिसर्च का केंद्र था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को महाकाल नगरी उज्जैन पहुंचेंगे. 856 करोड़ रुपये की महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विकास योजना के पहले चरण का उद्घाटन करेंगे. भारत विज्ञान और गणित के मामले में विश्वगुरु रहा है. उज्जैन का इतिहास देखें तो इस बात के पुख्ता प्रमाण भी मिलते हैं. महाकाल नगरी के विकास के लिए खींचा गया यह खाका यहां के गौरवशाली इतिहास को सहेजने की तरफ एक बड़ा कदम है. हर साल महाकाल के दर्शन करने के लिए देशभर से 1.5 करोड़ श्रद्धालु पहुंचते हैं.
उज्जैन स्मार्ट सिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष कुमार पाठक का कहना है, उज्जैन को संवारा गया है. महाकाल लोक के उद्घाटन के बाद यहां पूरे देश की संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी. सैलानियों की संख्या दोगुना यानी करीब तीन करोड़ तक पहुंच सकती है. आइए जानते हैं, महाकाल नगरी उज्जैन कैसे विज्ञान और गणित के शोध का केंद्र रहा है…
समय की गणना का केंद्र
प्राचीनकाल में उज्जैन अवंति कहलाता था, पुराने एतिहासिक दस्तावेजों में इसका यही नाम दर्ज किया गया है. यह विज्ञान और गणित की रिसर्च का प्राचीन केंद्र हुआ करता है. भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और वाराहमिहिर जैसे गणितज्ञ और खगोलविद् ने उज्जैन को अपने शोध का केंद्र बनाया हुआ था. उज्जैन को शोध के लिए चुनने की कई वजह थीं. जैसे- यह शहर प्रधान मध्याह्न रेखा का केंद्र हुआ करता था. जिसकी मदद से भारतीय गणितज्ञ समय की गणना करते थे. दुनियाभर में मानक समय इसी रेखा से तय किया जाता है. इसे ग्रीनविच रेखा के नाम से भी जाना जाता है.
यहां मिलती हैं कर्क और मध्यान्ह रेखा
उज्जैन को चुनने की दूसरी वजह थी कर्क रेखा का मध्यान्ह रेखा का मिलना. इसलिए यह शहर ज्योतिषीय गणना के लिए उपयुक्त माना गयाा है. ज्योतिष से जुड़े गणितज्ञ उज्जैन में यह तय करते थे कि कैसे साल के सबसे बड़े दिन के बाद सूर्य दक्षिण की यात्रा शुरू करता है. अपने आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण उज्जैन को दुनिया की नाभि भी कहा गया. हिन्दुओं में आज भी चंद्र-सौर पंचांग के मुताबिक, शुभ-अशुभ देखने की परंपरा है. उस पंचांग को बनाने के लिए यहां पर लम्बे समय तक गणितज्ञों और ज्योतिषियों ने काम किया. उसके आधार पर ही भारत में व्रत और त्योहर मनाए जाते हैं.
‘गुरुत्वाकर्षण बल’ की खोज हुई
बीज गणित और लीलावती जैसे गणितीय शास्त्रों के लेखक भास्कराचार्य उज्जैन की वेधशाला के मार्गदर्शक थे. उन्होंने धरती में ‘गुरुत्वाकर्षण बल’ की खोज उज्जैन में ही की थी. 12वीं शताब्दी में उज्जैन में रहकर ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने ज्योतिष शास्त्र की अद्वितीय पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि को लिखने का कार्य किया. प्राचीन काल से उज्जैन भारतीय काल गणना का केंद्र रहा है. खगोल वैज्ञानिकों और गणितज्ञों ने इसकी इस खूबी को पहचाना. यही वजह है कि धार्मिक आयोजन सिंहस्थ के लिए जिन चार जगहों को चुना गया है उसमें उज्जैन शामिल है.
और पढ़ें-नॉलेज की खबरें
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post