प्रयागराज, 18 अक्टूबर (हि.स.)। मातृभाषा में शिक्षा की वकालत पूरी दुनिया के भाषा शास्त्री करते हैं। आज के व्यापार युग में जिंदा रहने की जिजीविषा शक्ति भी हिन्दी को अर्जित करनी होगी। हिन्दी में असाधारण योजक शक्ति विद्यमान है। यह बातें हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित “मातृभाषा में शिक्षा” विषयक संगोष्ठी में त्रिपुरा से आए मुख्य वक्ता विश्व हिन्दी सचिवालय के पूर्व महासचिव प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने कही।
मंगलवार को कार्यक्रम आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, भारतीय भाषा मंच और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो.आर.एन. त्रिपाठी ने कहा कि अंग्रेजी दासत्व मनोवृत्ति के निर्माण की प्रतीक भाषा है। मानसिक दृढ़ता बिना हिन्दी के सम्भव नहीं है। आत्मनिर्भर भारत की कल्पना बिना मातृभाषा के पूरी नहीं हो सकती।
विशिष्ट अतिथि प्रो. राजाराम यादव, पूर्व कुलपति पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने कहा कि हमें हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में करना चाहिये। हमारी नाम पट्टिकाएं भी मातृभाषा में होनी चाहिये। हिन्दी सबको जोड़ने वाली भाषा है। विशिष्ट अतिथि प्रो हरिशंकर उपाध्याय अधिष्ठाता कला संकाय इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कहा किसी देश की विरासत मातृभाषा से ही पोषण प्राप्त करती है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. शिव प्रसाद शुक्ल ने भाषा की अराजकता और लिपि की संरक्षणीयता का सवाल उठाया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र एवं संचालन डॉ. राजेश कुमार गर्ग और संयोजन डॉ. पूर्णेंदु मिश्र ने किया। स्वागत वक्तव्य डॉ. विजय कुमार रबिदास ने दिया। जबकि अतिथियों का परिचय डॉ. सुरभि त्रिपाठी ने कराया।
इस अवसर पर प्रो. हरिनारायण दुबे, प्रो. एम.पी. तिवारी, सम्मेलन के सहायक मंत्री श्याम कृष्ण पाण्डेय, पवित्र त्रिपाठी, किरणबाला पाण्डेय सहित शहर के तमाम लोग उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त
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