किरेन रिजिजू ने महाराजा हरि सिंह की पेशकश को ठुकराने, जम्मू कश्मीर मुद्दे पर युनाइटेड नेशन जाने और सरदार पटेल की जगह खुद ही मामले में हस्तक्षेप करना का आरोप लगाया है.
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भारत के कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जम्मू कश्मीर और उसपर शुरू विवाद को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर बड़े आरोप लगाए हैं. उन्होंने एक लेख लिखा है जिसमें जम्मू-कश्मीर को लेकर नेहरू की पांच बड़ी गलतियों का जिक्र किया है और आरोप लगाया है कि नेहरू की गलतियों की वजह से ही आज 75 साल बाद भी जम्मू कश्मीर पर विवाद चल रहा है. उन्होंने नेहरू पर महाराजा हरि सिंह की पेशकश को ठुकराने, जम्मू कश्मीर मुद्दे पर युनाइटेड नेशन जाने और सरदार पटेल की जगह खुद ही मामले में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू ने ही पाकिस्तान को कश्मीर में घुसपैठ का मौका दिया. यहां पढ़ें रिजिजू के नेहरू पर पांच बड़े आरोप…
1. किरेन रिजिजू ने अपने लेख में लिखा कि नेहरू की पहली गलती महाराजा की पेशकश को ठुकराना था. उन्होंने लिखा कि इसका ही नतीजा था, कि पाकिस्तान को सेना भेजने का मौका मिला. रिजिजू का मानना है कि अगर नेहरू महाराजा की पेशकश नहीं ठुकराते तो पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में घुसपैठ नहीं करता. उन्होंने कहा कि नेहरू ने ही पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर में 20 अक्टूबर 1947 को घुसपैठ करने का मौका दिया. रिजिजू ने आरोप लगाया कि नेहरू यहीं नहीं रुके और उन्होंने भारत में शामिल होने के महाराजा के एक और पेशकश को ठुकराया.
किरेन रिजिजू ने लिखा, “महाराजा हरि सिंह ने फिर नेहरू से भारत में शामिल होने का अनुरोध किया, लेकिन नेहरू अभी भी अपने निजी एजेंडे को पूरा करने के लिए बातचीत कर रहे थे. 21 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी आक्रमण शुरू होने के एक दिन बाद, नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री, एमसी महाजन को एक चिट्ठी के माध्यम से सलाह दी कि “इस स्तर पर भारत के साथ विलय को मंजूरी नहीं दी जा सकती.
रिजिजू ने आरोप लगाया कि नेहरू के लिए अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर काबिज करना ज्यादा जरूरी था. उन्होंने लिखा, “अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को सत्ता में स्थापित करना नेहरू के लिए कश्मीर को भारत के साथ शामिल करने से ज्यादा जरूरी था.
2. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आगे लिखा है कि कश्मीर पर नेहरू की दूसरी सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने विलय को प्रोविजनल घोषित कर दिया. उन्होंने लिखा, “महाराजा हरि सिंह ने अन्य सभी रियासतों की तरह ही विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी रियासतों को स्पष्ट रूप से भारत में मिला लिया गया था. क्यों? क्योंकि खुद नेहरू थे, महाराजा नहीं, जिन्होंने विलय को प्रोविजनल घोषित किया था.”
रिजिजू ने अपने लेख में लिखा है, “26 अक्टूबर को, नेहरू ने एमसी महाजन को एक और चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने कहा: “भारत सरकार इस घोषणा को अस्थायी रूप से स्वीकार करेगी. नेहरू ने का कहना था कि इस मामले को लोगों की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम रूप दिया जाना चाहिए.” उन्होंने कहा, “अगर जुलाई 1947 में नहीं, तो 27 अक्टूबर, 1947 को नेहरू को कश्मीर के विलय के सवाल को स्थायी रूप से बंद करने का एक और मौका दिया गया, लेकिन नेहरू की भूलों ने एक ऐसा रास्ता खोल दिया जिसने सात दशकों के संदेह, अलगाववादी मानसिकता और रक्तपात को जन्म दिया.”
3. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि नेहरू की तीसरी सबसे बड़ी गलती ये थी कि उन्होंने 1 जनवरी 1948 को युनाइटेड नेशन को आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 के तहत संपर्क किया. रिजिजू कहते हैं कि अगर नेहरू आर्टिकल 51 के तहत युनाइटेड नेशन जाते तो वो जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे को उजागर करता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. रिजिजू कहते हैं कि महाराजा ने सिर्फ एक विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया और वो भी भारत के साथ, लेकिन वह नेहरू ही थे जिन्होंने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के रूप में स्वीकार करके पाकिस्तान को ठिकाना दिया. इसके बाद से युनाइटेड नेशन के प्रस्तावों ने भारत को परेशान करके रखा है.
4. किरेन रिजिजू कहते हैं कि कश्मीर पर नेहरू की चौथी भूल यह थी कि उन्होंने यह मिथक पनपने दी कि भारत कश्मीर में युनाइटेड नेशन के अनिवार्य जनमत संग्रह को रोका रहा है. उन्होंने कहा कि 13 अगस्त, 1948 को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) के प्रस्ताव में तीन शर्तें थीं. पहला, युद्धविराम. दूसरा, पाकिस्तान द्वारा सैनिकों की वापसी. तीसरा, जनमत संग्रह. इनमें पार्टी-3, पार्ट-1 और पार्ट-2 के पूरा होने के बाद ही किया जा सकता था. युद्धविराम 1 जनवरी 1949 को लागू हुआ, लेकिन पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले क्षेत्रों से अपने सैनिकों को वापस लेने से इनकार कर दिया. इसके बाद के प्रस्तावों में युनाइटेड नेशन ने पाकिस्तान की गलती भी मानी लेकिन फिर भी भारत पर जनमत संग्रह की तलवार लटकती रही. क्यों? क्योंकि नेहरू ने ही उस दरवाजे को खोला था!
5. किरेन रिजिजू ने नेहरू की पांचवीं गलती के रूप में आर्टिकल 370 का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा, “अनुच्छेद 370 (संविधान के अंतरिम मसौदे में अनुच्छेद 306A) को शामिल करना एक स्थायी था. पहले उदाहरण में, इस तरह के एक आर्टिकल के लिए कोई औचित्य नहीं था क्योंकि विलय का साधन वही था जैसा कि हर दूसरी रियासत ने हस्ताक्षर किया था. एकमात्र ‘विशेष’ मामला जो अस्तित्व में था वह नेहरू के दिमाग में था.
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