अभिषेक कुमार सिंह
यह दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसमें भी नकली नोटों के शामिल होने का भारी जोखिम बना हुआ है। डिजिटल मुद्रा इन समस्याओं का अंत मानी जा सकती है।
डिजिटल क्रांति रुपए-पैसे की दुनिया का चेहरा कैसे बदल रही है, इसकी एक मिसाल भारत में देखने को मिलती है। वर्ष 2016 में जब नोटबंदी की गई थी, तब अनुमान लगाया गया था कि जल्द ही लोग डिजिटल भुगतान वाले विकल्पों की ओर बढ़ेंगे। कोई शक नहीं कि बीते पांच-छह वर्षों में देश में डेबिट और क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग, यूपीआइ और क्यूआर कोड जैसे तौर-तरीकों ने सब्जी मंडी, रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों से लेकर पांच सितारा होटलों तक में भुगतान का परिदृश्य बदल दिया है।
लेकिन अब एक नई क्रांति डिजिटल मुद्रा की शक्ल में होने जा रही है। भारत सरकार ने हाल में (1 नवंबर, 2022 से) देश में पहली बार रुपए को डिजिटल कर दिया। सरकार के आदेश पर रिजर्व बैंक ने थोक में डिजिटल रुपए को लेन-देन की प्रक्रिया में शामिल करने वाली परीक्षण परियोजना शुरू कर दी है। इसके संचालन का जिम्मा नौ बैंकों को सौंपा गया है। परियोजना के संतोषजनक नतीजे आने के महीने के भीतर रिजर्व बैंक खुदरा स्तर पर भी डिजिटल रुपए की परियोजना शुरू कर देगा।
बात जब मुद्रा के डिजिटल स्वरूप की होती है, तो निश्चित रूप से बिटकाइन जैसी आभासी मुद्रा का उल्लेख प्रासंगिक हो जाता है। वर्ष 2009 से निजी तौर पर सृजित और संचालित की गई इस डिजिटल या कंप्यूटर से बनाई गई मुद्रा की ख्याति का नतीजा यह निकला कि आज दुनिया में दस हजार से ज्यादा आभासी मुद्राएं चलन में हैं। लेकिन इनकी सबसे अहम समस्या यह है कि इनका संचालन कोई सरकारी केंद्रीय बैंक नहीं कर रहा।
इसी तरह इन मुद्राओं के बदले किसी संपत्ति का समर्थन नहीं मिलता, जैसे कि आम रुपए के बदले भारतीय रिजर्व बैंक धारक को रुपए की कीमत अदा करने का वचन देता है। चूंकि आभासी मुद्राओं से किसी संस्था या केंद्रीय बैंक की देयता नहीं जुड़ी है, इसलिए एकाध देशों को छोड़ कर उन्हें दुनिया में कहीं भी कानूनी मान्यता हासिल नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल सितंबर में अफ्रीकी देश अल सल्वाडोर ने बिटकाइन को कानूनी मुद्रा का दर्जा जरूर दिया था, लेकिन ऐसे उदाहरण गिनती के ही हैं। इन्हीं कारणों से प्राय: सभी आभासी मुद्राएं भरोसेमंद नहीं हैं।
डिजिटल रुपए को लेकर भारत सरकार की ओर से आधिकारिक बयान इस वर्ष केंद्रीय बजट 2022-23 पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिया था। उन्होंने बजट प्रस्तुत करते हुए कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक भी जल्दी ही डिजिटल रुपया पेश करेगा। यह भारत की अपनी केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी- सीबीडीसी) होगी। प्रस्तावित योजना के मुताबिक सीबीडीसी एक प्रकार का डिजिटल भुगतान तरीका है, जिसे भारतीय रुपए (राष्ट्रीय मुद्रा) के रूप में अंकित किया गया है।
इस डिजिटल रुपए के धारक को भारत के केंद्रीय बैंक की तरफ से प्रत्यक्ष देयता का आश्वासन मिलेगा। इसमें भी सबसे उल्लेखनीय यह है कि मुद्रा के इस डिजिटल स्वरूप की कीमत भारतीय रिजर्व बैंक में रखे भौतिक नकद रुपए या उसके भंडार के बराबर ही होगी, जो डिजिटल रुपए के धारकों के लिए सबसे अहम आश्वासन है। इसका अर्थ यह है कि डिजिटल रुपए को भौतिक रुपए के समान संप्रभु गारंटी हासिल होगी। ऐसे में इसके मूल्य में समय-समय पर वही परिवर्तन या अंतर आएगा, जो भौतिक नकद रुपए की कीमत में आता है।
वैसे तो ई-रुपए रिजर्व बैंक द्वारा जारी मुद्रा नोटों का डिजिटल रूप ही है। यानी यह बैंक नोटों से अलग नहीं है। फर्क यदि कोई है तो यह है कि डिजिटल मुद्रा होने के कारण इसके जरिए कोई भी लेन-देन बहुत त्वरित, सस्ता और आसान होगा। साथ ही भौतिक नोटों के मुकाबले इसके मुद्रण (छपाई-ढलाई), वितरण और भंडारण की लागत बहुत कम होगी।
पर ई-रुपए के ज्यादा लाभ सुविधा, पारदर्शिता और सुरक्षा के संबंध में है। जैसे एक सहूलियत यह होगी कि डिजिटल मुद्रा में लेनदेन होने से कारपोरेट दुनिया में मुद्रा संबंधी लेनदेन के निपटान, उनकी जानकारी और उन पर नियंत्रण आसान हो जाएगा। भारत सरकार को यह पता लगाने में सहूलियत हो जाएगी कि देश के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में धन का प्रवाह कहां से कहां तक हुआ। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। आज बाजार में लगभग तीस लाख करोड़ रुपए की बड़ी राशि मौजूद है।
लेकिन रिजर्व बैंक से लेकर सरकार और नीति-निर्धारकों तक को इसकी जानकारी नहीं है कि यह राशि लोगों के पास कब से मौजूद है और क्यों रखी हुई है। दावा है कि इससे आयकर विभाग को छिपाए जाने वाले लेनदेन का पता चल सकेगा और कर संग्रह में बढ़ोतरी होगी। बड़ी कंपनियों और कारपोरेट जगत की निगाह में ई-रुपए लेनदेन और आर्थिक निपटारे की तत्काल व्यवस्था बनाने में मदद साबित हो सकता है।
कोरोना महामारी के दौर में लोगों ने एहतियात के तौर पर नकदी रखना ज्यादा बेहतर समझा, जिससे चलन में बैंक नोटों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में डेबिट/ क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में देश में क्रेडिट-डेबिट कार्ड, चेक-ड्राफ्ट और मोबाइल वालेट आदि सभी तरीके मिला कर सिर्फ बाईस फीसद भुगतान बिना नगदी वाले हो रहे थे।
लेकिन बाद के पांच वर्षों में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। डिजिटल भुगतान प्रणालियों पर नजर रखने वाले संगठन- एसीआइ वर्ल्डवाइड की मार्च 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना 2550 करोड़ लेनदेन डिजिटल तरीकों से किए गए थे। इस मामले में भारत दुनिया के शीर्ष पर है और हमारे बाद चीन (1570 करोड़) और दक्षिण कोरिया (600 करोड़) का नंबर आता है। अमेरिका तो भारत से इस मामले में काफी पीछे यानी नौवें स्थान पर है, जहां वित्त वर्ष 2021 में ऐसे सिर्फ 120 करोड़ लेनदेन हुए थे।
डिजिटल मुद्रा की कई उपयोगिताएं हैं, पर खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने ई-रुपी को अपनाने के पीछे जो तर्क गिनाए हैं, वे इसे कई मामलों में लाभप्रद ठहराते हैं। रिजर्व बैंक ने ई-रुपी को अपनाने की अहम जरूरत भौतिक मुद्रा यानी कागज के नोट व सिक्कों की छपाई, ढलाई पर प्रबंधन पर आने वाले भारी-भरकम खर्च कम करने के संदर्भ में बताई है। असल में नोटों की छपाई और उन्हें देश के कोने-कोने में पहुंचाने यानी वितरित करने की लागत काफी ज्यादा बैठती है और यह दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसमें भी नकली नोटों के शामिल होने का भारी जोखिम बना हुआ है। डिजिटल मुद्रा इन समस्याओं का अंत मानी जा सकती है।
डिजिटल मुद्रा को ऐसे विकसित करने की योजना है, ताकि उसका आफलाइन इस्तेमाल भी हो सके। यानी देश के जिन इलाकों में इंटरनेट-मोबाइल नेटवर्क और बिजली नहीं है, वहां भी यह मुद्रा काम कर सके। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के मुताबिक दुनिया में करीब सौ देशों में सरकारी नियंत्रण वाली डिजिटल मुद्रा लाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। चीन ने अगले साल 2023 में ऐसा करने की घोषणा कर रखी है। यूरोपीय महासंघ अपने नियंत्रण वाले सत्ताईस देशों में डिजिटल मुद्रा लाने की योजना पर काम कर रहा है। उल्लेखनीय तो यह है कि नाइजीरिया और जमैका जैसे दस देश इस मामले में आगे निकल चुके हैं और उन्होंने अपने यहां डिजिटल मुद्रा लोगों को मुहैया करा दी है।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post