Anant Kumar
Bermo : संथाल समाज के प्रसिद्ध धर्म स्थल लुगू बुरू में सोमवार से दो दिवसीय राजकीय महोत्सव शुरू हो गया. यह स्थल बोकारो जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित गोमिया प्रखंड के ललपनिया के लुगू पहाड़ पर स्थित है. यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दो दिवसीय राजकीय महोत्सव (Santal Sarna Dharma Mahasammelan at Lugu Pahar) मनाया जाता है. जिसमें देश-विदेश से सरना और संथाली समाज के लोग शामिल होते हैं. सोमवार को सरना धर्म महासम्मेलन में हजारों श्रद्धालु पहुंचे. कोरोना के कारण पिछले दो साल से महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका था. दो वर्ष बाद आयोजन होने से श्रद्धालुओं में उत्साह है. 8 नवंंबर मंगलवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन धर्म महासम्मेलन में शामिल होंगे. इसकी भी तैयारी पूरी कर ली गई है.
बता दें कि सन 2000 में छोटे स्तर पर लुगू बाबा की पूजा-अर्चना शुरू हुई थी. 2012 के बाद लुगू बाबा की चर्चा देश स्तर पर होने लगी. यहां देश के विभिन्न इलाकों से संथाल समाज के लोग पहुंचने लगे. विदेशोंं से भी लोग यहां पहुंचे. जिसके बाद झारखंंड सरकार 2018 में इसे राजकीय महोत्सव घोषित कर दिया. इसके बाद से राज्य सरकार इस आयोजन को पूरा करती है. वहीं समिति के लोग पूजा और धर्म सम्मेलन का कार्य अपने रीति रिवाज से करते हैं.
प्रकृति पूजक हैं आदिवासी
आदिवासी समाज प्रकृति पूजक रहा है. लुगू बाबा आदिवासियों के ईष्ट देवता में से एक हैं. लुगू अर्थात आदिवासी समाज के देवता, बुरू का मतलब पहाड़ होता है. ऐसी मान्यता है कि लुगू बाबा की अध्यक्षता में आदिवासी समाज की बैठक धिरी चट्टान पर हुई थी. इस बैठक में मानव के जीवन से लेकर मरण तक की व्याख्या की गई और लुगू बाबा के बताये हुए रास्ते पर आज भी ज्यादातर आदिवासी समाज चलते हैं, ऐसा उनका मानना है. इसी स्थल पर धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया है.
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आदिवासी पंरपरा के अनुसार पूरी मानव सभ्यता के लिए यह समाज अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है, मगर मानव समाज ने इनकी अनदेखी की. नतीजतन पर्यावरण की समस्या सहित ज्वलंत संकट पूरी दुनिया झेलने को विवश है. इस स्थल का दर्शन करने देश के विभिन्न राज्यों एवं पड़ोसी देश से लोग आते हैं. वे अपने पूर्वज की धरती को नमन कर गौरवान्वित महसूस करते हैं. आदिवासी समाज के अमूमन पर्व-त्योहारों के गीत में लुगू बुरू की चर्चा है. आदिवासियों के कई गीत है, जहां संकट के समय भी लुगू बाबा समाधान का रास्त दिखाते हैं.
संथाल समाज सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध रहा है. संताल समाज की पारंपरिक त्योहार का पालन कृषि तथा विवादों को निबटारा सामूहिक तौर पर व आम सहमति से किया जाता है. लिंग भेद नहीं है. महिलाओं की भागीदारी बराबर है. इसी परिपेक्ष्य में कई गीत है जिनके माध्यम से संथाल समाज अपनी खुशी एवं पीड़ा को एक दूसरे से बांटते हैं, और संकट पर चर्चा भी करते हैं.
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लुगू पहाड़ संथाल समाज को संकट में देती है रोजगार के साधन
दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा होती है. लुगू बाबा, संथाल समाज को संकट के समय में भी रोजगार के साधन उपलब्ध कराते हैं. वनों से अच्छादित लुगू पहाड़ संथाल पंरपरा को आगे बढ़ाने में आदिकाल से सहमना की भूमिका में रही है और अकाल में जीने का साधन भी देती है. यदि सरकार इस रमणिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर देती तो यहां सालों भर पर्यटकों का आगमन होता और ऐतिहासिक धरोहर के साथ आदिवासी समाज जो पूरी दुनिया को प्रकृति को बचाये रखने का संदेश देती है, वह भी जीवंत रहता.
कैसे पहुंचे लुगूधाम
लुगू बुरू घंटाबाडी बोकारो जिला से करीब 80 और रांची से सौ किलोमीटर की दूरी पर ललपनिया में स्थित है. रांची से रामगढ होकर पेटरवार और वहां से गोमिया के रास्ते साड़म, होसिर, तुलबुल होकर सीधे लुगू बुरू ललपनिया पहुंच सकते हैं. हवाई मार्ग से आने के लिए रांची हवाई अड्डे से उतरकर उक्त सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं.
इसके अलावा रांची से हजारीबाग फोरलेन सड़क मार्ग होकर रामगढ़ नयामोड से ललपनिया थर्मल पावर स्टेशन जाने वाली पक्की सड़क से यहां पहुंचा जा सकता है. जो श्रद्धालु हजारीबाग या गिरिडीह के रास्ते यहां पहुंचना चाहते हैं, वे विष्णुगढ़ से गोमिया जाने वाली सड़क मार्ग से ललपनिया लुगूधाम पहुंच सकते हैं. जो लोग ट्रेन से यहां पहुंचना चाहते हैं, वे गोमो या बरकाकाना रेलवे स्टेशन के रास्ते गोमिया स्टेशन पर पहुंचें. यहां जिला प्रशासन बस की सुविधा उपलब्ध कराई है, जो सीधे सम्मेलन में पहुंचा देगी.
राज्य का दूसरा सबसे ऊंचा पहाड़
लुगू पहाड़ राज्य का दूसरा सबसे ऊंचा पहाड़ है. करीब 35 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित लुगू पहाड़ अब धार्मिक रूप से भी प्रसिद्ध है. इसी पहाड़ पर लुगू बाबा की गुफा है, जहां श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि लुगू बाबा इसी गुफा में रहते थे और ध्यान साधना करते थे. कई अंधविश्वासी लोग भी यहां पहुंचते हैं और बाद में गांव जाकर ओझा और सोखाइन का काम करते हैं. वैसे गुफा के अंदर ऑक्सीजन की कमी है, इसलिए ज्यादा दूर तक जाना संभव नहीं है, श्रद्धाल वहीं पूजा करते हैं.
आकर्षित करती है लुगू पहाड़ की वादियां
लुगू पहाड़ की वादियां सैलानियों को आकर्षिक करती है. जो लोग लुगू बुरू सरना धर्म सम्मेलन में भाग लेने पहुंचते हैं, उन्हें यहां का मनोरम दृश्य लुभाती है. यहां छरछरिया झरना है, जो प्रकृति का अनुपम उपहार है. यहां सालों भर लोग पहुंचते हैं. यह झरना आस्था के पहाड लुगू बाबा के उद्गम स्थल से असंख्य जड़ी-बूटी के औषधीय गुणों को समेटते हुए यहां गिरती है. श्रद्धालु सहित अन्य लोग यहां स्नान करते हैं और पानी सेवन के लिए भी ले जाते हैं.
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