श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने
यूनिवर्सिटी पार्क, 22 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) यदि कोई एलियन धरती की तरफ देखे तो कई इंसानी तकनीक (मोबाइल टॉवर से लेकर चमकीले बल्ब तक) जीवन की मौजूदगी के बारे में संकेत देने के लिहाज से पथ प्रदर्शक साबित हो सकती हैं। इस संकेत को ‘तकनीकी संकेत’ कहते हैं।
हमारे पास दो खगोलविद हैं जो दूसरे ग्रह पर बुद्धिमत्ता की खोज (सर्च फॉर एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस-एसईटीआई) पर काम कर रहे हैं।
अपने अनुसंधान में हम धरती से परे दूसरे ग्रह पर इस्तेमाल होने वाली तकनीक के संकेतों का पता लगाने और उन्हें चिह्नित करने का प्रयास करते हैं।
रेडियो और लेजर:
दूसरे ग्रह पर जीवन को लेकर आधुनिक वैज्ञानिक खोज वर्ष 1959 में शुरू हुई जब खगोलविद गियूसेप कोकोनी और फिलिप मॉरिसन ने दिखाया कि धरती से किया गया रेडियो ट्रांसमिशन का पता सुदूर अंतरिक्ष में भी रेडियो दूरबीन के जरिये लगाया जा सकता है।
इसी साल फ्रैंक ड्राके ने पहली एसईटीआई खोज शुरू की और ‘ओज्मा परियोजना’ के तहत दो नजदीकी सूर्य जैसे तारों को लक्ष्य करके एक बड़ी रेडियो दूरबीन लगाई गई ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह उनसे आने वाले रेडियो संकेतों का पता लगा पाती है या नहीं।
वर्ष 1960 में लेजर की खोज होने के बाद खगोलविदों ने दिखाया कि दृश्य किरण का भी पता सूदूर स्थित ग्रहों पर लगाया जा सकता है।
दूसरी सभ्यता से आने वाले रेडियो या लेजर संकेत का पता लगाने के लिए ये पहले संस्थागत प्रयास थे, जिसके तहत इस बात की तालाश की जा रही थी कि सौर तंत्र में जानबूझकर भेजा गया कोई केंद्रित तथा ताकतवर संकेत मौजूद है या नहीं।
इस तरह के जानबूझकर भेजे गए रेडियो और लेजर संकेत की खोज आज भी लोकप्रिय एसईटीआई रणनीति है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ यह भी तर्क देते हैं कि बुद्धिमान प्रजाति जानबूझकर अपने स्थान से प्रसारण करने से बचती है।
रेडियो तरंग :
हालांकि, इंसान बहुत से संकेत जानबूझकर अंतरिक्ष में नहीं भेजता, लेकिन आजकल लोग बहुत सी ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जिससे बहुत अधिक रेडियो तरंगों का प्रसारण होता है, जो लीक होकर अंतरिक्ष में पहुंच जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसी तरह के संकेत नजदीकी तारों से आते हैं, तो उनका पता लगाया जा सकता है।
आने वाला ‘स्क्वायर किलोमीटर अरे रेडियो टेलीस्कोप’ बेहद कमजोर रेडियो तरंग के संकेत का भी पता लगा लेगा, क्योंकि यह मौजूदा रेडियो टेलीस्कोप के मुकाबले 50 गुना अधिक संवेदनशील है।
मेगास्ट्रक्चर की खोज :
एक वास्तविक एलियन विमान का पता लगाने के अलावा रेडियो तरंगें सबसे सामान्य तकनीकी संकेत हैं, जिनका इस्तेमाल साई-फाई फिल्मों और पुस्तकों में इस्तेमाल किया गया है। लेकिन ये वहां से आने वाले इकलौते संकेत नहीं हैं।
वर्ष 1960 में खगोलविद फ्रीमैन डाइसन ने सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसके मुताबिक तारे दूर स्थित सर्वाधिक ताकतवर ऊर्जा के स्रोत हैं, इसलिए तकनीकी रूप से उन्नत सभ्यता ऊर्जा के रूप में तारों के प्रकाश का पर्याप्त भाग एकत्र कर सकती है जो कि निश्चित रूप से एक विशाल सौर पैनल होगा।
कई खगोलविद इसे मेगास्ट्रक्चर करार देते हैं, जिनका पता लगाने के कुछ उपाय हैं। ऊर्जा के रूप में प्रकाश का इस्तेमाल करने वाली उन्नत सभ्यता कुछ ऊर्जा का पुन:उत्सर्जन गर्मी के रूप में करेगी। इस गर्मी का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि अतरिक्त इन्फ्रारेड रेडियेशन तारा प्रणाली से आते हैं।
मेगास्ट्रक्चर का पता लगाने का एक और संभावित तरीका यह होगा कि किसी तारे पर इसके मंद प्रभाव की गणना की जाए। किसी तारे का चक्कर लगाने वाले बड़े कृत्रिम उपग्रह समय-समय पर उसके कुछ प्रकाश को अवरुद्ध कर देते हैं।
संपूर्ण प्रदूषण:
खगोलविद जिस अन्य तकनीकी संकेत के बारे में सोचते हैं वह प्रदूषण से संबंधित है। रासायनिक प्रदूषण जैसे कि धरती पर नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरो कार्बन मुख्य रूप मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है। बाहरी ग्रहों पर भी इनके अणुओं का पता लगाना समान विधि से संभव है।
जैविक संकेत का पता लगाकर सुदूर स्थित ग्रहों की खेज के लिए जैम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमामाल किया जा रहा है।
यदि खगोलविद पाते हैं कि किसी ग्रह का वायुमंडल ऐसे रसायन से भरा है जिसे केवल तकनीक से उत्पन्न किया जा सकता है, तो यह जीवन का संकेत हो सकता है।
इस तरह कृत्रिम रोशनी या ऊर्जा और उद्योगों का भी पता बड़े ऑप्टिकल और इन्फ्रारेड टेलीस्कोप के इस्तेमाल से लगाया जा सकता है।
कौन सा संकेत बेहतर?
किसी भी खगोलविद को अभी तक कोई स्पष्ट तकनीकी संकेत नहीं मिला है। इसलिए यह कहना कठिन है कि एलियन सभ्यता का पहला संकेत क्या होगा। फिलहाल खोज जारी है।
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signs of alien technology may be basis for first detection of life on another planetr
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