नई दिल्ली, जागरण। क्या इस सच से आप वाकिफ हैं कि देश में हर वर्ष डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जिंदगी गंवा देते हैं? क्या इस सच से भी आप वाकिफ हैं, भारत में हर तरह की आपदा से वर्ष भर में जितनी मौतें होती हैं, उससे कई सौ गुणा ज्यादा मौतें सड़कों पर होती हैं? संभव है आप सब इस सच्चाई को जान भी रहे हों लेकिन क्या कभी सोचा, इन्हें कैसे रोका जा सकता है? असमय काल के गाल में समा रहे युवाओं, किसी परिवार की रीढ़ के सड़क पर कुचलने से पीछे छूटे परिवार के जीवन में छाया अंधियारा आप को भी झकझोरता तो होगा ही। कभी-कभी तंत्र पर क्रोध आता होगा, तो कभी-कभार खुद को बेबस महसूस करते होंगे। तो फिर सवाल उठता है कि क्या सड़कों पर बहुमूल्य जिंदगियों के साथ यह दुर्घटना रूपी खूनी सिलसिला यूं ही अनवरत चलता रहेगा अथवा तंत्र से लेकर गण तक को सचेत होकर इस पर रोकथाम के लिए कोई सामूहिक प्रयास शुरू करने चाहिए?
एक प्रयास जीवन सुरक्षित करने का
बस ‘इन भागती दौड़ती सड़कों पर’ महाअभियान के जरिए हम एक इमानदार प्रयास करेंगे मार्ग दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए। जन सरोकारीय पत्रकारिता जागरण की थाती है और यह महाअभियान उसी का एक हिस्सा है। हमारे साढ़े सात सौ से ज्यादा रिपोर्टर, पांच सौ सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ ग्यारह राज्यों की पचहत्तर हजार किलोमीटर सड़कों का आडिट करने निकल चुके हैं। दिसंबर से पूरा उत्तर भारत घने कोहरे और धुंध की चादर से लिपट जाता है।
दृश्यता लगभग शून्य रहती है। ऐसे में सड़क पर निकलना और जोखिम भरा हो जाता है। सभी की यात्रा सुगम और सुरक्षित रहे इसीलिए उत्तर-प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के ढाई सौ से ज्यादा जिलों में एक साथ सड़कों पर सुरक्षा के इंतजाम व नियम-कायदों की समीक्षा कर रहे हैं।
यह है उद्देश्य
देश में किसी मीडिया हाउस द्वारा यह पहला वृहद रोड आडिट अभियान विशेषज्ञों की निगरानी में किया जा रहा है ताकि प्राप्त जानकारी वैज्ञानिक और प्रामाणिक रहे। हर जिले में सड़कों पर घूमकर हम डाटा एकत्र करेंगे। कहां ट्रैफिक साइन बोर्ड नहीं हैं, कहां ओवरलोडेड वाहन खड़े होते हैं, सड़कों पर आधे-अधूरे निर्माण कार्य, खराब ट्रैफिक सिग्नल, गलत पार्किंग, सड़क पर खडे़ खराब वाहन, डायवर्जन के लिए व्यवस्था, रांग साइड ड्राइविंग, अवैध कट आदि देखेंगे और इनके वीडियो भी बनाएंगे।
हमारी टीमें एक्सप्रेसवे, नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे और शहरी व ग्रामीण सड़कों से एकत्रित डाटा सड़क परिवहन से संबंधित एजेंसियों को पहुंचाएंगी ताकि ठोस कार्ययोजना बनाकर लोगों की जान सुरक्षित की जा सके। सुरक्षित यात्रा के मामले में भारत की स्थिति अत्यंत गंभीर है।
अत्यंत गंभीर है हमारी स्थिति
विश्व में सड़क दुर्घटनाओं में सर्वाधिक मौतें हमारे ही देश में होती हैं, विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, लगभग हर चार मिनट में एक मौत होती है। वर्ष 2021 में आतंकवाद, उग्रवाद के मामलों में 91 नागरिकों की मौत हुई जबकि सैन्य बल के 88 जवान शहीद हुए। इसी अवधि में सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख से अधिक लोगों ने जान गंवाई। भारत में अब तक हुए युद्धों में जितने जवान बलिदान हुए हैं, उससे अधिक लोग हर वर्ष देश की सड़कों पर दुर्घटना में मारे जाते हैं।
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था ‘देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमलों में नहीं मरते जितने सड़कों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं।’ सेव लाइफ फाउंडेशन की एक रिपोर्ट कहती है कि बीते एक दशक में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 14 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 60 लाख से अधिक लोग घायल हुए। लगभग 70 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं में युवाओं की मृत्यु होती है।
वर्ष दर वर्ष लाखों प्रतिभासंपन्न मानव संसाधन खोना एक भारी नुकसान है। एक रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के कारण देश की जीडीपी को करीब तीन से चार प्रतिशत का नुकसान होता है। विश्व बैंक कहता है कि बीते तीन दशक में विश्व में मौत के कारणों में सड़क दुर्घटनाएं तीसरे स्थान पर पहुंच गई हैं। जबकि वर्ष 1990 में ये नौवें स्थान पर थीं।
Edited By: Geetarjun
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