यह मानना मुश्किल है कि ईसाई-विरोधी हिंसा तात्कालिक है गुजरात में 2002 और 1984 में देश भर में हुए विभिन्न सांप्रदायिक दंगों के अध्ययन दिखाते हैं कि हिंसा किसी भी बात पर भड़क सकती है लेकिन सरकार के पास इसे खत्म कर देने की शक्ति होती है; उकसावे के बिना और सत्ता में शामिल लोगों समेत बाहरी स्रोतों के समर्थन के बिना कोई भी दंगा कुछ घंटे से अधिक नहीं चल सकता। किसी अन्य किस्म का विचार पुलिस, अर्धसैनिक बलों या सशस्त्र बलों की क्षमता को कमतर आंकना है।
यह इस आशंका को मजबूत करता है कि हिंसा लोगों को उत्तेजित और इकट्ठा करने के लक्ष्य से राजनीतिक तौर पर प्रेरित होती है। ईसाइयों को कठघरे में रखने के लिए यह निराधार दावा किया जाता है कि वे पूरी तरह धर्मांतरण समर्थक हैं जिनके हाथों हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। साक्ष्यों के आलोक में इस दावे से अधिक गलत कुछ नहीं हो सकता- जनगणना रिपोर्टों ने इसकी पुष्टि की है कि ईसाई सबसे कम विकास दरों में से एक रहे हैं। उनकी कुल आबादी 3 प्रतिशत से कम है, तब जबकि ईसा के जन्म के 52 साल बाद केरल में कोडुंगलूर में सेंट थॉमस के आगमन के बाद से वे हिन्दुओं का धर्मांतरण करते माने जाते हैं। इस बीच, देश पर ब्रिटिश शासन रहा जो उसी ईसाई धर्म का पालन करते थे। ईसाई आधुनिक चिकित्सा और आधुनिक शिक्षा देश के चारों कोनों में ले जाने, सबसे अधिक संख्या में अस्पताल और स्कूल बनाने में अग्रणी रहे। संघ के कई नेताओं ने ऐसे स्कूलों में शिक्षा पाई।
इन सबने ईसाइयों को जनसांख्यिकी तौर पर मजबूत नहीं बनाया। यह भी पहली बार नहीं है कि उनलोगों पर धर्मांतरण के आरोप लगाए जा रहे। जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे, मध्य प्रदेश और उड़ीसा दो ऐसे राज्य थे जिन्होंने ऐसे कानून बनाए जिन्हें उत्साहपूर्वक धर्म स्वतंत्रता कानून कहा जाता है। आज लगभग एक दर्जन राज्यों में इस किस्म के कानून प्रभावी हैं। फिर भी, यह तथ्य बना हुआ है कि कोई एक भी ईसाई जबरन धर्मांतरण के लिए सजायाफ्ता नहीं है। लेकिन इसने हरियाणा, उत्तराखंड और कर्नाटक-जैसे राज्यों को ईसाइयों को एक किनारे कर देने की दिशा में वर्तमान कानून को मजबूत करने से नहीं रोका है।
ईसाईयत में सामूहिक धर्मांतरण के दावे बराबर इस तरह किए जाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश तक यह कहने को बाध्य हो जाते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है। कर्नाटक में संबंधित कानून ने सामूहिक धर्मांतरण दो या दो से अधिक लोगों के धर्मांतरण को कहा। इस तरह, कोई पति और पत्नी धर्मांतरित होते हैं, तो यह कड़े दंड वाले सामूहिक धर्मांतरण के दायरे में आएगा। धर्मांतरण के लिए लालच या प्रलोभन देना अपराध है। प्रलोभन क्या है? ईसाई किसी गैरईसाई लड़के या लड़की को अच्छे स्कूल में पढ़ाता है, यह प्रलोभन है। अगर किसी बच्चे को सरकारी स्कूल में शिक्षा दी जाती है, तो वह प्रलोभन नहीं है। अधिकारी चाहते हैं कि दलितों को अच्छी शिक्षा नहीं मिले।
भारत लोकतांत्रिक देश है। यह किसी को संसदीय चुनाव में बीजेपी, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस या किसी क्षेत्रीय पार्टी और नगर निकाय चुनाव में किसी निर्दलीय या क्षेत्रीय पार्टी प्रत्याशी को वोट देने की सुविधा देता है। वह अपनी इच्छा से किसी पार्टी में शामिल हो सकता है या किसी को छोड़ सकता है। उसे किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति 33 कोटि देवी-देवताओं में आस्था रखता है और इस देवकुल में एक और ईसाईयत या इस्लाम में सम्मानित व्यक्ति को शामिल कर लेता है, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालता है। कर्नाटक और उत्तराखंड-जैसे राज्य में उसे धर्मांतरण की अपनी इच्छा को लेकर जिला न्यायाधीश के समक्ष शपथ पत्र दायर करना होगा। सिर्फ तब ही वह धर्मांतरण कर सकता है। वह धर्म स्वतंत्रता कानूनों के अंतर्गत किसी नए ईश्वर की पूजा नहीं कर सकता। यह कानून कई राज्यों में लागू है।
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