सागर2 घंटे पहलेलेखक: देवेंद्र नामदेव
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ज्योतिष पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
अल्प प्रवास पर सागर आए ज्योतिष पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दैनिक भास्कर से समसामयिक, सामाजिक तथा धार्मिक मुद्दों पर विशेष चर्चा की। उन्होंने दो टूक कहा कि समाज पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो गई है और अब कोई हिंदू नहीं बनना चाहता।
सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में शंकराचार्य की अहम भूमिका है। आज चर्चाएं उठती हैं कि धर्म खतरे में है। आप क्या कहेंगे?
जवाब – सच बात यह है कि अब समाज में कोई हिंदू नहीं बनना चाहता। कुछ लोग हैं, छिटपुट, सिर्फ वही जैन, हिंदू और सिख बनना चाहते हैं। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम मात्र 10 प्रतिशत है। बाकी सब अंग्रेज बनना चाहते हैं। ईसाई कहने से हो सकता है थोड़ा अटपटा लगे। लेकिन अंग्रेज कहने से उनको कोई दिक्कत नहीं है। अंग्रेजी ही पढ़ेंगे, अंग्रेजी कपड़े पहनेंगे, अंग्रेजी ढंग से खाना बनाएंगे, अंग्रेजी ढंग से ही खाएंगे, अंग्रेजी डिश खाएंगे, अंग्रेजी भाषा में अपने प्रतिष्ठान का बोर्ड लगाएंगे और अंग्रेजी में ही हस्ताक्षर करेंगे। बहुत प्रभाव पड़ चुका है। हम आत्मसात कर चुके हैं। बहुत आगे निकल चुके हैं। पीछे लौटना सरल नहीं होगा। दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना तो संभव नहीं है।
प्रतिस्पर्धा में बच्चों को आगे और संस्कारवान बनाने के लिए आपका क्या उपदेश है?
जवाब – आप सिर्फ कोरा उपदेश देंगे, जो आप कह रहे हैं, लेकिन आपके आचरण में नहीं है तो आपका बच्चा आपके ऊपर भरोसा नहीं करेगा, उसे कभी नहीं अपनाएगा। लेकिन वह आपके सामने यह प्रकट भी नहीं होने देगा। वह सोचेगा कि यह तो दोहरा चरित्र है। कहते कुछ और करते कुछ हैं। इनकी बात क्यों मानूं। क्योंकि आप उसे अंग्रेज मिशनरियों के स्कूलों में भेज रहे हैं न कि संस्कार देने वाले विद्यालयों में।
आपका उपदेश प्रभावी नहीं होगा। इसलिए पहले स्वयं आपको संस्कारों को आचरण में लाना होगा। बच्चों को अच्छा जीवन जीकर दिखाना होगा। हम हिंदू हैं। सनातन धर्म के अनुसार जीते हैं तो देखो हम स्वस्थ हैं। हमारा तन, मन प्रसन्न है। हमारा परिवेश अच्छा है। तब कुछ सुधार की गुंजाइश है।
सनातन धर्म में नदियों का बड़ा महत्व है। नदियों की पवित्रता, स्वरूप और अस्तित्व बचाने के लिए शंकराचार्य पद पर आसीन होने के बाद क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
जवाब – इस दिशा में तो पहले से काम जारी है। धर्मशास्त्र के अनुसार ये संसार विराट पुरुष का शरीर है और नदियां उसकी नाड़ियां हैं। जैसे शरीर का रक्त प्रवाह रुक जाने पर हार्ट अटैक और लकवा जैसी बीमारियां घेर लेती हैं। ऐसे ही जब-जब नदियों का प्रवाह रोका गया है विनाश ही हुआ है। अब तो लाेगों ने छोटे-छोटे बांधों के डिजाइन तक बना दिए हैं। लेकिन इन पर छोटी इकाईयां लगेंगी। खर्च ज्यादा होगा। लाभ कम और कम लोगों को मिलेगा।
इसलिए ज्यादा लोगों को तात्कालिक फायदा पहुंचाने के लिए नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। इससे प्रवाह रुक रहा है। नदियों का अस्तित्व खतरे में है। फिर इस पर नहीं सोचा जाता कि स्थापना कैसे चलेगी? बांधों में गाद भर जाती है। इन सब बातों पर आंख मूंद ली जाती है। हम चाहते हैं कि नदियों का प्रवाह बना रहे और उससे नैसर्गिक रूप जो फायदा मिल रहा है, वह लिया जाना चाहिए।
नदियों का अस्तित्व बचाने के लिए क्या सरकार से भी सहयोग लिया जाएगा?
जवाब – सरकार का तो हर काम में सहयोग रहता है। सरकार की मजबूरी हो जाती है कि वह सत्ता में बनी रहे और उनकी मजबूरी है जनता। कोई अच्छा काम करे या नहीं, यदि जनता के मन का नहीं हुआ तो पांच साल बाद बदल देती है। ऐसे में हमें जो हाजिर है उससे संपर्क करना पड़ता है। लेकिन हमारी नीति और उनकी नीति में अंतर है। हमारा अभिषेक हाे गया, अब हम जीवन पर्यंत के लिए आसीन हो गए और धर्म का काम करेंगे।
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