हाइलाइट्स
भगवान विष्णु के आदेश पर देवताओं और दानवों ने किया समुद्र मंथन.
समुद्र मंथन से अमृत कलश समेत प्राप्त हुई 14 बहुमूल्य व दुर्लभ चीजें.
समुद्र मंथन से ही भगवान विष्णु को पुन: प्राप्त हुईं माता लक्ष्मी.
विष्णुपुराण में समुद्र मंथन की कहानी को विस्तारपूर्वक बताया गया है. भगवान विष्णु के आदेश पर देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया गया. समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश के बारे में कई लोग जानते होंगे. इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए दानवों और देवताओं के बीच विवाद छिड़ गया था. लेकिन केवल अमृत ही नहीं बल्कि समुद्र मंथन में अमृत, उच्चै:श्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मीजी और धन्वन्तरि समेत 14 बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं समुद्र मंथन से जुड़ी कथा और समुद्र मंथन से प्राप्त हुई 14 बहुमूल्य वस्तुओं के बारे में.
क्यों हुआ समुद्र मंथन
विष्णुपुराण के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण एक बार स्वर्ग श्रीहीन यानी ऐश्वर्य, धन और वैभव आदि से विहीन हो गया. तब सभी देवगण समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे. विष्णुजी ने उन्हें दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया. विष्णुजी ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर आप सभी अमर हो जाएंगे. अमृत कलश की बात देवताओं ने दानवों के राजा बलि को भी बताई. वे समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए. वासुकी नाग की नेती (रस्सी) तैयार की गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया. समुद्र मंथन से अमृत निकला लेकिन अन्य 13 वस्तुएं भी प्राप्त हुईं, जो इस प्रकार से हैं…
हलाहल विष– समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला. इसकी तीव्र ज्वाला से सभी देवता तथा दानव जलने लगे. सभी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की. देवता,दानव तथा समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए शिवजी इसे पी गये. विष के कारण शिवजी का कण्ठ नीला पड़ गया. इसीलिए शिवजी को नीलकण्ठ भी कहा जाता है. जब शिवजी विष को पी रहे थे तब इसकी कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई, जिसे साँप, बिच्छू जैसे विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया.
कामधेनु गाय- समुद्र मंथन से हलाहल विष के बाद कामधेनु गाय निकली. इसे ऋषि-मुनियों को दे दिया गया. जैसे देवताओं में श्री हरि विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद और तीर्थों में केदार नाथ श्रेष्ठ हैं. वैसे ही कामधेनु को गायों की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है.
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उच्चै:श्रवा घोड़ा- कामधेनू के बाद समुद्र मंथन से उच्चै:श्रवा घोड़ा निकला, जो कि उच्च श्रेणी का घोड़ा था. सफेद रंग के इस घोड़े में आकाश में उड़ने की भी अद्भुत शक्ति थी. यह घोड़ा असुरों के राजा बलि को प्राप्त हुआ. बलि की मृत्यु के बाद यह घोड़ा देवराज इंद्र को प्राप्त हुआ.
ऐरावत हाथी- समुद्र मंथन से सफेद रंग का अद्भुत हाथी निकला. इस हाथी में आकाश में उड़ने की क्षमता थी. देवराज इंद्र ने इसे अपने वाहन के रूप में ग्रहण किया.
कौस्तुभ मणि- सभी आभूषणों और मणि में बहुमूल्य कौस्तुभ मणि भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुई. इस मणि में ऐसा दिव्य तेज था कि चारो और प्रकाश की ज्योति छा गयी. भगवान विष्णु ने इसे स्वयं धारण कर लिया.
कल्पवृक्ष– कल्पवृक्ष एक दिव्य औषधि वाला वृक्ष है. इसमें कई बीमारियों का उपचार करने की शक्ति है. यह वृक्ष देवराज इंद्र को प्राप्त हुआ. देवराज इंद्र ने कल्पवृक्ष को हिमालय पर्वत के उत्तर दिशा में सुरकानन स्थल पर लगाया.
अप्सरा रंभा- समुद्र मंथन से सुंदर अप्सरा निकली, जिसका नाम रंभा दिया गया. रंभा देवताओं को प्राप्त हुई. यह देवराज इंद्र की राज्यसभा की मुख्य नृत्यांगना बन गयी.
माता लक्ष्मी– भगवान विष्णु के आदेश पर ही समुद्र मंथन किया गया था. समुद्र मंथन कराने का भगवान विष्णु का मुख्य उद्देश्य देवी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करना था. क्योंकि जब विष्णुजी सृष्टि संचालन में व्यस्त थे तब देवी लक्ष्मी समुद्र की गहराइयों में समा गयी थीं. समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी पुनः बाहर आईं और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु का चयन किया.
वारुणी- समुद्र मंथन से मदिरा की भी उत्पत्ति हुई इसे वारुणी कहा गया. विष्णुजी के आदेश पर वारुणी दानवों को प्राप्त हुई.
चंद्रमा- चंद्रमा की उत्पत्ति भी समुद मंथन से ही हुई. जल से उत्पन्न होने के कारण ही चंद्रमा को जल का कारक कहा जाता है. चंद्रमा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में धारण कर लिया.
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पांचजन्य शंख – समुंद्र मंथन से दुर्लभ शंख निकला, जिसे पांचजन्य शंख कहा जाता है. हिंदू धर्म में इस शंख का विशेष महत्व होता है. यह शंख भगवान विष्णु को प्राप्त हुआ. इसलिए कहा जाता है कि जहां यह शंख होता है वहां भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी वास करते हैं.
पारिजात- समुंद्र मंथन के समय एक वृक्ष निकला जिसे पारिजात वृक्ष कहा गया. इस वृक्ष को छूने मात्र से ही शरीर की थकान दूर हो जाती थी. पूजा में इस वृक्ष के फूल चढ़ाना शुभ होता है.
शारंग धनुष- समुद्र मंथन से निकला यह धनुष एक चमत्कारिक धनुष था. यह भगवान विष्णु को प्राप्त हुआ.
अमृत– जिस अमृत को प्राप्त करने के उद्देश्य से समुद्र मंथन कराया गया था वह अंत में निकला. भगवान धन्वंतरि स्वयं अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. अमृत को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों के बीच विवाद हुआ. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर पहले देवताओं को अमृतपान करा दिया
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Tags: Dharma Aastha, Dharma Culture, Hinduism
FIRST PUBLISHED : November 19, 2022, 02:36 IST
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