बीते साल लखीमपुरी खीरी में हुई हिंसा को ‘गंभीर अपराध’ बताते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मामले के अभियुक्त आशीष मिश्रा को सुनवाई पूरी होने तक बेल न दी जाए.
आज प्रेस रिव्यू में सबसे पहले पढ़िए अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफ़नामे में कहा है, “अपराध की गंभीरता, याचिकाकर्ता के रसूख और क्रिमिनल हिस्ट्री को देखते हुए, उन्हें जाँच और सुनवाई पूरी होने तक बेल पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए.”
फिलहाल, इस मामले में बहस और आरोप तय करने की प्रक्रिया जारी है.
आशीष मिश्रा ने 26 जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से ख़ारिज की गई उनकी बेल याचिका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इसी याचिका पर अब यूपी सरकार ने अपना हलफ़नामा दायर किया है.
आशीष मिश्रा की बेल का विरोध मामले के गवाहों ने भी किया है. पीड़ितों के परिवार की ओर से कोर्ट में पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस साल मार्च और अप्रैल में आशीष मिश्रा के जानकारों ने गवाहों को धमकाया और मारा-पीटा. आशीष मिश्रा की बेल अर्ज़ी का विरोध करने का आधार भी यही था.
हालाँकि, यूपी सरकार ने गवाहों के आरोप ख़ारिज कर दिए, लेकिन हाईकोर्ट की ओर से आशीष मिश्रा की बेल अर्ज़ी न स्वीकारने के फ़ैसले पर यूपी सरकार ने सहमति दिखाई.
अख़बार के अनुसार यूपी सरकार ने गवाहों के आरोपों पर हलफ़नामे में कहा, “जाँच से पता चलता है कि शिकायतकर्ता और अभियुक्त के बीच उनकी मोटरसाइकलों में हुई टक्कर के कारण बहस हुई थी और इसका 3 अक्टूबर 2021 को हुए लखीमपुर हिंसा से कोई संबंध नहीं था…राज्य सरकार ने गवाहों और पीड़ितों के परिवार की रक्षा के लिए सभी संभव कोशिशें की हैं.”
यूपी सरकार ने बेल न देने के लिए क्या तर्क़ दिया
अख़बार के अनुसार, राज्य सरकार ने कहा कि बेल देते समय दो अहम पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है. पहला, अपराध की गंभीरता और दूसरा गवाहों को ख़तरे के साथ ही सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका. “चार्जशीट में स्पष्ट है कि ये एक गंभीर अपराध था और याचिकाकर्ता ने इसकी योजना बनाने और इसके क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाई थी.”
गवाहों की सुरक्षा के संबंध में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि कुल 98 लोगों को इस मामले में सुरक्षा दी गई है, जिनमें से 79 खीरी ज़िले के निवासी हैं. राज्य सरकार के अनुसार, “केस के पीड़ितों और धारा 164 के तहत बयान दर्ज करवाने वाले सभी गवाहों को विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 के तहत लगातार सुरक्षा दी जा रही है.”
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और बीवी नागरत्न ने इस मामले की सोमवार को सुनवाई की और अब 10 नवंबर को अगली सुनवाई होगी.
आशीष मिश्रा ने अपनी याचिका में कहा था कि हाई कोर्ट ने बेल अर्ज़ी ख़ारिज करते समय इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखा कि किसानों पर उन्होंने गाड़ी नहीं चलाई थी.
आशीष मिश्रा को 9 अक्टूबर, 2021 को गिरफ़्तार किया गया था. इसी साल फ़रवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें बेल दी थी. लेकिन पीड़ितों के परिवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश ख़ारिज कर दिया था और हाई कोर्ट से इस मामले पर फिर से सुनवाई शुरू करने को कहा था.
गुजरात: AAP की यात्रा के एक दिन बाद मुस्लिम बहुल इलाकों में क्या जनता का मूड
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने गुजरात के अहमदाबाद में मुस्लिम बहुल इलाकों का मूड जानने की कोशिश की. शनिवार को आम आदमी पार्टी यानी AAP ने अहमदाबाद के मुस्लिम आबादी वाले इलाको में तिरंगा यात्रा निकाली थी.
इस यात्रा की अगुवाई पार्टी के स्टार कैंपेनर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने की. फिलहाल इन सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं.
आम आदमी पार्टी अपने गुजरात चुनाव प्रचार में मुसलमानों के मुद्दे, विशेष तौर पर 2002 के दंगों पर चुप्पी साधे हुए है.
विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा ख़तरा माना जा रहा है, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, यात्रा के बाद इन इलाको में रहने वाले अधिकतर लोगों का कहना है कि वो पुरानी पार्टी के लिए उनका वफ़ादारी नहीं छोड़ेंगे.
आम आदमी पार्टी ने जिन इलाकों से यात्रा निकाली उसी पर आने वाले सेठ रेस्तरां के मालिक ने अख़बार से बातचीत से कहा कि दानी लिम्दा सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस ही जीतेगी. पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस के शैलेष परमार विधायक हैं.
वो कहते हैं, “आम आदमी पार्टी अभी नई है, उसने गुजरात में कहीं काम नहीं किया. हमें नहीं पता वो कैसे काम करती है. वो (अरविंद केजरीवाल) लगातार मुफ्त बिजली, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, रोज़गार और ऐसे ही कई वादों को दोहराते रहते हैं लेकिन वो बीजेपी की ही ‘बी’ टीम लग रहे हैं.”
शाह-ए-आलम में बैटरी की दुकान चलाने वाले 45 वर्षीय केसर ख़ान कहते हैं कि बीजेपी दोबारा राज्य में सरकार बनाएगी, इसमें तो कोई शक़ नहीं. उन्होंने अख़बार से कहा, “लोग जिसे वोट करना चाहते हैं, कर सकते हैं लेकिन बीजेपी कैसे भी सरकार बनाने जा रही है. इसलिए हम सुनिश्चित करेंगे कि हमारी क्षेत्र में कांग्रेस जीते. राज्य में हमेशा बीजेपी की सरकार रही है लेकिन दानी लिम्दा में कांग्रेस जीतती आई है.”
आम आदमी पार्टी की रैली में शामिल न होने वाले 41 साल के अनवर ख़ान ने अख़बार से कहा, “कोई भी रैली कर सकता है…आप नई पार्टी है. हो सकता है वो दिल्ली और पंजाब में अच्छा कर रही हो लेकिन उनके वादे हमारी सोच से मेल नहीं खाते. हो सकता है कि उन राज्यों में उनके वादे मेल खाते हों. यहाँ, ये सारी गारंटियां काम नहीं करेंगी.” ख़ान ने दोहराया कि वो कांग्रेस को ही वोट देंगे.
केरल के राज्यपाल ने दो मीडिया समूहों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से किया बाहर
केरल में राजभवन और वाम सरकार के बीच जारी खींचतान के बीच राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने सोमवार को अपनी एक प्रेस वार्ता से दो मीडिया समूहों को बाहर कर दिया. इनमें केरली और मीडिया वन चैनल के पत्रकार शामिल थे.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान एरनाकुलम में सरकारी गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे.
इस दौरान उन्होंने दोनों मीडिया समूह के पत्रकारों से कहा, “मैं आपसे बात नहीं करूंगा. गेट आउट (बाहर निकलो). आप यहाँ से चले जाइए. आप लोग मुझसे शाह बानो केस का बदला पूरा कर रहे हैं. आप मेरे ख़िलाफ़ गलत जानकारियों के आधार पर अभियान चलाए जा रहे हैं.”
अख़बार के अनुसार, वहाँ मौजूद बाकी पत्रकारों ने ख़ान को ये भी कहा कि ये दोनों मीडिया समूह राज्यपाल कार्यालय से न्योता मिलने पर ही यहाँ आए हैं. लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल ख़ान ने दोनों से बात नहीं की.
आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को कांग्रेस पर इतना ग़ुस्सा क्यों आता है?
ख़ान से जब पूछा गया कि क्या राज्यपाल आलोचनाओं से ऊपर होते हैं तो उन्होंने कहा, “आलोचना करने में कोई समस्या नहीं है. कोई भी आम इंसान मेरी आलोचना कर सकता है. लेकिन वो नहीं, जिन्हें मैंने नियुक्त किया हो. मैं प्रधानमंत्री (राजीव गांधी) की आलोचना करना चाहता था. इसलिए मैंने (1986 में) केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया.”
राज्यपाल ख़ान ने कहा कि वह इन दो चैनल के मीडियाकर्मियों से बात नहीं करेंगे और आरोप लगाया कि वे मीडिया के रूप में (केरल सरकार के) कार्यकर्ता हैं.
उन्होंने कहा, “मैं उन लोगों से बात करने के लिए खुद को अब और समझाने में सक्षम नहीं हूं जो मीडिया के रूप में वास्तव में पार्टी कैडर हैं. मैं केरली से कोई बात नहीं करूंगा. अगर केराली यहां होगा तो मैं चला जाऊंगा.”
सन् 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो केस में मुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक़ के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का प्रावधान किया था. उस समय आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इस फ़ैसले का समर्थन किया था. उन्होंने सरकार और राजीव गाँधी के रुख से नाराज़ होकर मंत्री पद छोड़ दिया था.
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