संजीव ठाकुर
भारत में ही नहीं पूरे विश्व में स्त्रियां उनके नैसर्गिक सम्मान की हकदार हैंl स्त्रियों का यथोचित सम्मान ही किसी भी समाज और राष्ट्र के विकास की धुरी हैं . पुरानी मान्यताओं को देखते हुए परिवार समाज तथा देश में स्त्रियों को अग्रणी स्थान देना तय किया जाना चाहिए . भारत देश में नारी पूज्यंते हैं, नारी को नौ देवियों का स्वरूप माना जाता है . शास्त्रों में देवी के नौ स्वरूप शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महागौरी,कालरात्रि, सिद्धिदात्री, देवियों के नौ रूप जो आतताइयों, राक्षसों से नारियों तथा देवताओं की रक्षा करती हैं. पर भारत में ही नहीं पूरे विश्व में मुख्यतः व्याप्त पुरुष प्रधान समाज ने एक ऐसी सामाजिक संरचना का निर्माण किया है, जिसमें प्रत्येक निर्णय लेने संबंधित अधिकार पुरुषों के पास ही सीमित रहे हैं.
आदिम समाज से लेकर आधुनिक समाज तक विश्व की आधी दुनिया के प्रति भेदभाव पूर्ण दृष्टिकोण रखा गया है. जिसने कभी भी स्त्री को व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया है. भारतीय समाज में भी प्राचीन नीतिकारों ने स्त्रियों को पिता, भाई, पति या पुत्र के संरक्षण में ही सामाजिक जीवन जीने की शास्वत वकालत की है. हमारे धर्म धर्मशास्त्रों में भी “प्राप्ते तू दशम वर्षे,यस्तु कन्या न यछ्सी”,अर्थात कन्या को 10 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते उसका विवाह कर दिया जाना चाहिए.इस तरह की कुंठित भावनाओं से ग्रसित पुरुष समाज की मानसिकता वाली शिक्षा हर तरफ देखने मिलती है. यह सच है कि पुरुष प्रधान मानसिकता ने स्त्रियों को स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में स्वीकार ही नहीं किया था. बल्कि तथाकथित लोकतांत्रिक एवं आधुनिक मूल्यों वाले पश्चिमी समाज ने महिलाओं को 1920 तक व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया था. पश्चिम के देशों में व्यक्ति मतलब उनका तात्पर्य पुरुष और पुरुष समाज से ही था. इंग्लैंड में व्यक्ति को वोट देने का अधिकार था. लेकिन महिलाएं 1918 तक वोट देने के अधिकार से वंचित थी. अमेरिका में 1920 तक महिलाएं वोट देने का अधिकार के बिना ही जीवन यापन कर रही थी. विश्व में पहली बार भारत में व्यक्ति के अंतर्गत महिला को शामिल किया गया था इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कोरनेलिया सोराबजी नामक महिला के वकालत करने संबंधी आवेदन को एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया. इस तरह 1920 में महिला व्यक्ति के रूप में भारत में उच्च न्यायालय द्वारा आदेश देकर स्वीकारोक्ति प्रदान की गई. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1929 के आसपास ही महिला को व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया गया. भारत में सदैव नारी को अबला का दर्जा दिया जा कर एक अवैतनिक श्रमिक अथवा भोग की वस्तु के रूप में देखा है.
जहां समाज की आधी आबादी को व्यक्ति का दर्जा ही प्राप्त नहीं हो, वहां उसके साथ समानता के व्यवहार की अपेक्षा कैसे की जा सकती है.पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने नारी को पुरुष से ज्यादा सामर्थ्यवान मानते हुए उसे नर् की सह्चरी कहा है. प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपने एक लेख में कहा है वास्तव में स्त्रियां जन्म से अबला नहीं होती हैं. उन्हें पुरुष समाज अबला बनाकर रखता है. जन्म से शिशु बालिका की जीवन शक्ति शिशु बालक की तुलना में बहुत प्रबल होती है. लेकिन समाज अपनी संस्कृति, रीति रिवाज,प्रतिमान तथा जीवन के मूल्यों के लिए तथा जीवन शैली के चलते नारी को अबला बना कर रख देता है. पर आज नारी के क्रांतिकारी दर्शन जैसे नारीवाद पर्यावरण वाद मानव अधिकार वाद ने नारी यानी महिला को बराबरी का दर्जा देने का लगातार प्रयास किया है. महिला सशक्तिकरण के प्रयास में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस का आयोजन किया जाता है, जिसकी शुरुआत अमेरिका द्वारा 28 जनवरी 19 मई को की गई थी आगे चलकर रूस की महिलाओं द्वारा 1917 में महिला दिवस पर रोटी कपड़ा एवं बराबरी के लिए अधिकार की मांग रख हड़ताल भी की गई थी. भारत के परिपेक्ष में देश में नारियों का ऐसा वर्ग भी है जो सजग जागरूक शिक्षित एवं नौकरी पेशा है.उसे अपने अधिकार का तथा सामर्थ का पूर्ण ज्ञान है .भारत की महिला आज पुरुषों के साथ स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग ,थल,जल, वायु सेना, रेल, बस,प्रशासन तथा अंतरिक्ष में कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रही है.
राजनीति में वैश्विक स्तर पर श्रीलंका की श्री मांओ भंडार नायके, ब्रिटेन की मार्गरेट थैचर, भारत भ की श्रीमती इंदिरा गांधी,इजराइल की गोल्डा मायर ऐसी महिलाएं थी, जिन्होंने इतिहास बनाया है.वर्तमान में भारतीय मूल की अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन तथा मंत्री स्मृति ईरानी, किरण बेदी तथा अंतरिक्ष विज्ञानी स्वर्गीय कल्पना चावला ऐसे उदाहरण है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकेंगे. महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपना परचम फैला रही है. भारत सरकार में भी सशक्त महिलाएं कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त कर सरकार मैं अपनी सहभागिता प्रदान कर रही है. अंतरिक्ष में भारतीय मूल की कल्पना चावला ने अपना सर्वस्व त्याग कर राष्ट्र का गौरव बढ़ाया है. अमेरिका की उपराष्ट्रपति भारतीय मूल की कमला हैरिस भी भारत तथा महिलाओं का गौरव बढ़ाकर महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण बनी है.
पर दूसरी तरफ भारत की जनसंख्या की 65 महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र में केवल 45% शिक्षित है,और शहरी महिलाएं ग्रामीण महिलाओं से थोड़ी ज्यादा शिक्षित हैं पर पूरे 121 करोड़ की जनसंख्या में महिलाओं का भागीदारी का प्रतिशत अत्यंत न्यून है. अत्यंत कम प्रतिशत महिलाएं ही शिक्षा, समानता, निजता के अधिकार का उपयोग कर पा रही. ऐसे में यदि नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को माना जाए तो भारत के परिपेक्ष में नारी उत्पीड़न हर क्षेत्र हर प्रदेश तथा देश की राजधानी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा बड़े महानगरों में हो रहा है.नारी के ऊपर होते बलात्कार अत्याचार तथा शोषण की कहानियां रोज अखबारों में दिखाई देती है. भारत में नारी सशक्तिकरण की स्थिति बहुत बेहतर नहीं कहा जा सकति है. सर्वे के अनुसार प्रति मिनट भारत में 800 महिलाएं किसी न किसी तरह से प्रताड़ना का शिकार हो रही है.ऐसे में शिक्षित महिलाओं को ही नारी सशक्तिकरण को मजबूत बनाने के लिए शासन प्रशासन से कंधे से कंधा मिलाकर प्रयास करने की जरूरत होगी.
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