आधुनिक जीवन शैली की एक देन आस्टियोपोरोसिस है जो चुपके से शरीर में प्रवेश करती है। इसके लक्षण जल्दी से दिखाई नहीं देते। जब तक इसका पता चलता है, काफी देर हो चुकी होती है। जीवन शैली के बदलाव के कारण भारत में प्रतिवर्ष रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तो युवा भी इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। इस बीमारी का पता तब चलता है जब किसी हड्डी में फ्रेक्चर होता है।
जोड़ों में दर्द रहना, टेढ़ा चलना,घुटनों में गैप का होना, हड्डियों में टेढ़ापन होना इस बीमारी के आम लक्षण हैं। इस बीमारी में धीरे धीरे बोन टिश्यू खत्म होने लगते हैं जिससे जोड़ों का दर्द बढऩा शुरू हो जाता है, हड्डियां कमजोर होने पर या भुरभुरी होने पर हड्डियां टेढ़ी होने लगती हैं या टूट सकती हैं।
महिलाएं अक्सर मेनोपॉज के बाद और पुरूष 6० साल के बाद इस बीमारी का शिकार होते हैं। वैसे और भी कई कारण हैं जिनके कारण आस्टियोपोरोसिस होता है जैसे आनुवंशिक, विटामिन डी की कमी, कैल्शियम की कमी, प्रोटीन की कमी, बढ़ती आयु, धूम्रपान का अधिक सेवन, कोल्ड ड्रिंक का अधिक सेवन, डायबिटीज और थायराइड को होना आदि। कभी कभी किसी लंबी बीमारी से ग्रस्त लोग भी इसका शिकार बनते हैं क्योंकि वे लंबे समय से दवाइयों का सेवन कर रहे होते हैं।
लक्षण:-
वैसे तो प्रारंभिक अवस्था में इसके लक्षण पता नहीं चलते। कभी कभी गिर जाने पर या थोड़ी चोट लगने पर फ्रेक्चर हो जाए तो पता चलता है कि रोगी आस्टियोपोरोसिस की गिरफ्त में आ चुका है। प्रारंभ में हड्डियों और मांसपेशियों में हल्का दर्द कभी कभी होता है, फिर धीरे धीरे दर्द बढऩे लगता है। जब कभी कलाई, रीढ़, हाथ की हड्डी टूटती है तो इस रोग की पुष्टि होती है।
कमर के निचले हिस्से में दर्द, गर्दन में हल्का दर्द भी इसके लक्षण हैं। शुरूआत में पता न चलने से दर्द की मात्रा बढऩे लगती है फिर एक्सरे की सहायता से जाना जाता है पर तब तक हड्डियां काफी भुर चुकी होती हैं।
निष्क्रि य जीवनशैली और मोटापा भी इसके कारण हैं। ध्यान रखें जब कहीं, किसी जोड़ या हड्डी में लगातार हल्का दर्द ही क्यों न बना रहे तो तुरंत हड्डी विशेषज्ञ से जांच करवाएं और उनकी सलाह अनुसार व्यायाम, जीवनशैली में बदलाव, दवा आदि लेकर स्वयं को इस खामोश दुश्मन से बचा कर रखें। किसी प्रकार के दर्द को अपने पर हावी न होने दें। पैदल चलें ताकि हड्डियों में मजबूूती बनी रहे, खाने में पौष्टिक आहार लें जो प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो।
आस्टियोपोरोसिस से बचने हेतु ध्यान दें इन बातों पर:-
लें पौष्टिक आहार:-
माता-पिता को चाहिए कि बाल्यावस्था से ही बच्चों को पौष्टिक आहार लेने की आदत डालें। उन्हें नियमित रूप से दूध, पनीर, घी, दही, हरी सब्जियां व सोयाबीन खाने को दें। 1०-12 वर्ष की आयु के बाद बच्चों को नियमित व्यायाम करने को कहें। सर्दियों में 2० से 3० मिनट तक बच्चों को धूप में बिठाएं ताकि बचपन से उन्हें विटामिन डी मिल सके।
लाएं बदलाव जीवन शैली में:-
अगर हम प्रारंभ से अपना खानपान सही रखेंगे और व्यायाम नियमित करेंगे तो हड्डियां हमारा साथ लंबे समय तक देंगी। नमक की मात्र कम लें ताकि हड्डियों को गलने से बचाया जा सके। कैफीन की मात्र भी कम लें। कैफीन कैल्शियम के अवशोषण को प्रभावित करता है। कैफीन चाकलेट, चाय, काफी, सोडा आदि में अधिक होता है। इनका सेवन सीमित मात्र में करें। धूम्रपान करने वाले लोगों का अगर फ्रेक्चर हो जाए तो हड्डी जुडऩे की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, इसलिए नियमित रूप से सैर, जागिंग, स्वीमिंग करते रहें। योग नियमित करें।
इलाज समय पर करवाएं:-
अगर जोड़ों में दर्द नियमित बना रहे और धीरे धीरे दर्द की मात्र बढ़ रही हो तो डाक्टर से परामर्श करें। बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट से इस रोग के बारे में पता चलता है। 4० वर्ष की आयु के बाद 3 साल में एक बार इस टेस्ट को करवाएं। मेनोपॉज के बाद महिलाएं अक्सर इस रोग की गिरफ्त में आ जाती हैं। डाक्टर की सलाह पर अगर हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की आवश्यकता पड़े तो मेनोपॉज होने से पहले करवा लें। जो पुरूष धूम्रपान अधिक करते हैं या शराब का सेवन करते हैं उन्हें भी हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की आवश्यकता पड़ सकती है।
कैल्शियम का सेवन:-
बढ़ती उम्र के साथ साथ शरीर में कई तरह के मिनरल्स, कैल्शियम, फास्फोरस की कमी होने लगती है जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं क्योंकि हड्डियां कैल्शियम से मिलकर बनती है। इनकी कमी से हड्डियों की डेंसिटी कम होने लगती है और हड्डियां घिसने लगती हैं। डाक्टर की सलाह से ओरल कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन करें ताकि हड्डियों में मजबूती बनी रह सके और हड्डियां आपको लंबे समय तक स्वस्थ रहकर आपका साथ निभा सकें।
– नीतू गुप्ता
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post