आगरा17 मिनट पहले
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आर मधुराज हॉस्पिटल में हुए अग्निकांड के बाद हॉस्पिटलों का सर्वे जारी है। अब तक मानक के विरुद्ध चल रहे किसी बड़े हॉस्पिटल पर कार्रवाई नहीं हुई है।
आर मधुराज हॉस्पिटल अग्निकांड के बाद शहर में हुए सर्वे में अब तक 50 प्रतिशत हॉस्पिटल मानकों के विरुद्ध संचालित पाए गए हैं। विभाग इन्हें नोटिस देकर काम चला रहा है। छोटे हॉस्पिटलों पर कार्रवाई कर विभागीय अधिकारी स्वास्थ्य महकमे में फैले भ्रष्टाचार को दबाने की कोशिश में जुटे हैं। दरअसल भ्रष्ट कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के लिए मानक विरुद्ध चल रहे हॉस्पिटल ‘ATM’बने हुए हैं। ऑफ द रिकॉर्ड आंकड़ों के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों की खुद की लैब से लेकर ब्लड बैंक हैं। कइयों की हॉस्पिटलों, सिटी स्केन सेंटरों में पार्टनरशिप भी है। विभाग के भ्रष्ट बाबुओं के संरक्षण में एक-दो नहीं, दर्जनों की संख्या में ऐसे हॉस्पिटल चल रहे हैं, जो फर्जी हैं। छापे की सूचना देकर इन्हें समय-समय पर कार्रवाई से बचा लिया जाता है।
सीएमओ डा. अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि मानक के विरुद्ध हॉस्पिटल नहीं चलने दिए जाएंगे। कमियां दूर करने को नोटिस दिए जा रहे हैं।
सीएमओ डा. अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि सर्वे में पहले देहात और शहर के बाहरी हिस्सों में उन हॉस्पिटलों पर कार्रवाई की जा रही है, जो बेसमेंटों में चल रहे हैं। जहां छोटी कमियां हैं, उन्हें नोटिस दिया जा रहा है। एक साथ सभी हॉस्पिटलों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। मानकों के विरुद्ध चल रहे हॉस्पिटलों की संख्या ज्यादा है। सभी हॉस्पिटलों में कमियों को दुरुस्त करने को कहा गया है। बड़े हॉस्पिटलों पर भी कार्रवाई होगी।
एक डिग्री पर खुले हैं कई हॉस्पिटल
रजिस्ट्रेशन डाक्टरों के नाम पर हैं लेकिन हॉस्पिटल ऐसे लोग चला रहे हैं, जो नो मेडिको हैं। हॉस्पिटलों के आगे डाक्टरों की लम्बी सूची लगी है, उनमें से बहुत डॉक्टरों को तो पता ही नहीं हैं कि उनके नाम का यहां गलत इस्तेमाल हो रहा है। हाल ही में स्वास्थ्य विभाग के सर्वे में ऐसे 19 डॉक्टर के नाम पाए गए जिनके बोर्ड 67 अस्पतालों पर लगे हुए थे। एक डाक्टर की डिग्री सात अस्पतालों में पाई गई। विभाग पूरे मामले की छानबीन में जुटा है। क्या संभव है कि ये डॉक्टरों ऑन कॉल इतने हॉस्पिटलों में विजिट कर सकते हैं। ज्यादातर इस प्रकार के हॉस्पिटल यमुना पार समेत शहर के बाहरी हिस्सों में मिले हैं। यमुना पार में कई हॉस्पिटल पहले से ही इसके लिए बदनाम हैं।
3 दिन पहले मंगलम समेत 4 हॉस्पिटल सील किए गए। इस प्रकार कमियां अन्य हॉस्पिटलों में भी हैं, वो कार्रवाई से बचे हुए हैं। उन्हें सिर्फ नोटिस देकर छोड़ दिया गया है।
3 से 4 लाख रुपए में करा लिया जाता है रजिस्ट्रेशन
स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार के चलते 3 से 4 लाख रुपए रिश्वत देकर बेसमेंटों और दूसरे डॉक्टरों की डिग्री का इस्तेमाल कर शहर में कुकुरमुत्तों की तरह हॉस्पिटल खुले हुए हैं। भौतिक सत्यापन को गई टीमें और विभागीय बाबू की मिलीभगत से इनकी संख्या बढ़ती गई। शहर में करीब 400 हॉस्पिटल ऐसे हैं जो कि वो लोग चला रहे हैं, जो एमबीबीएस ही नहीं। स्वास्थ्य विभाग में जगह के हिसाब से रेट तय होते हैं। आपको किस लोकेशन पर हॉस्पिटल चलाना है। शहर के मध्य या बाहरी हिस्से में हॉस्पिटल रजिस्ट्रेशन कराने के रेट अलग-अलग हैं। ऐसे हॉस्पिटलों से रजिस्ट्रेशन के बाद महीनेदारी भी ली जाती है।
बेसमेंट में चल रहे 100 से अधिक हॉस्पिटल, गिने-चुने हॉस्पिटलों पर ही हुई कार्रवाई।
चेकिंग के नाम पर धन उगाही
को दिया जाता है सिर्फ नोटिस
जिन अस्पतालों में स्थायी रूप से एमबीबीएस डॉक्टर बैठे नहीं मिलते हैं, उन्हें चेकिंग दौरान नोटिस दे दिया जाता है। बाद में भ्रष्ट बाबू और अधिकारी सेटलमेंट कर लेते हैं। ये वो हॉस्पिटल हैं, जिनके संचालकों ने डॉक्टरों की डिग्रियां किराए पर लेकर हॉस्पिटल खोले हैं। यहां चेकिंक दौरान नोटिस सिर्फ धन उगाही के लिए दिया जाता है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिन हॉस्पिटलों को नोटिस दिया गया। चढ़ावा पहुंचने के बाद उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
घटना होने पर कुछ दिन रहती है सख्ती
मानक विरुद्ध और कंपाउंडरों द्वारा संचालित हॉस्पिटलों में केस बिगड़ने या कोई अन्य घटना पर होने पर कुछ दिन शहर में इस प्रकार के हॉस्पिटलों पर सख्ती कर दी जाती है। बाद में मिलीभगत से व्यवस्था पहले की तरह बहाल कर दी जाती हैं। आगरा में कई मामले ऐसे प्रकाश में आए जहां, कम्पाउंडरों द्वारा महिलाओं की ऑपरेशन से डिलीवरी कर दी गई या फिर गलत ऑपरेशन कर केस को बिगाड़ दिया। तीमारदारों के हंगामे के बाद किसी तरह मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
‘अस्पताल चलाओ, किसी पर नहीं होगी कार्रवाई’
स्वास्थ्य विभाग ने गत शनिवार को भी करीब 90 अस्पतालों का सर्वे किया। कमियां पाए जाने पर 2 अस्पताल सील किए। यह बेसमेंट में चल रहे थे। 5 को नोटिस देकर जवाब मांगा गया। नोटिस उनके लिए एक तरह की राहत है। अग्निकांड का मामला कुछ दिनों बाद ठंडा हो जाएगा। उसके बाद बेरोक-टोक मानकों के विरुद्ध अस्पताल संचालित होता रहेगा।
शहर के 80 प्रतिशत हॉस्पिटलों
में नहीं है अग्निशमन का प्रबंध
स्वास्थ्य विभाग अब 150 अस्पतालों का सर्वे कर चुका है। इनमें 50 प्रतिशत ऐसे मिले, जिनमें मानकों की कमी पाई गई। कई अस्पतालों में अन्य जिलों के कई डाक्टरों की डिग्रियां लगी हैं। उन्हें इंचार्ज बताया गया है, जबकि वह यहां नहीं रहते हैं। अब हॉस्पिटल संचालक उनके स्थायी निवास न होने पर किरायानामा बनवार कर स्वास्थ्य विभाग को सौंप देंगे और कार्रवाई से बच निकलेंगे। अग्निशमन की कमी तो शहर के 80 प्रतिशत अस्पतालों में हैं। जिनमें आगरा के श्रेष्ठ अस्पताल भी सूचीबद्ध हैं।
हॉस्पिटलों से विभागों में धन उगाही
की मची होड़, एनओसी बड़ा संकट
कुछ हॉस्पिटल संचालक विभागों की एनओसी के सवाल पर बुरी तरह झल्ला उठते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक हॉस्पिटल संचालक ने बताया कि एनओसी अब बहुत महंगी हो गई हैं। जब कोई हॉस्पिटल संचालक करोड़ों रुपए बिल्डिंग और मशीनों पर खर्च करता है। महंगा स्टाफ रखता है तो अग्निशमन, बायोमेडिकल वेस्ट, नर्सिंग स्टाफ और अन्य मानकों की पूर्ति के लिए 25-50 लाख खर्चा करने से क्यों बचेगा।
दरअसल विभागों से एनओसी लेने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं। एक-दूसरे विभाग पर जिम्मेदारियां पटक दी जाती हैं। हॉस्पिटलों से अवैध उगाही के लिए खुद विभागों में होड़ मची हुई है। जिसे न समझो, वही नोटिस थमा देता है। विभाग नोटिस न देकर सीधी कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं।
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