जैसा कि हम सभी ये जानते हैं कि इस डिजिटल युग में हर काम मिनटों में हो रहा है। दुकानों में या मार्केट में जाकर भीड़ लगाने से बेटर लोग ये सोंच रहे हैं कि क्यों ना हम ऑनलाइन प्रोडक्ट को ऑर्डर कर घर मंगा लें। अब तो खाना भी घर बैठे ऑर्डर कर मिनटों में मंगाया जा सकता है जिसके लिए कई वेबसाइट मौजूद हैं। फूड डिलीवरी कम्पनियों की अगर हम बात करें तो इसमें जोमैटो (Zomato) का नाम सबके जुबां पर रहता है।
लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जोमैटो (Zomato) ने ये उपलब्धि कैसे हासिल की और उससे ये हासिल करने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
ऐसे हुई शुरुआत
जोमैटो का नाम विश्व की सबसे बड़ी फूड डिलीवरी कम्पनी में होता है। आज इस ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से 24 देशों के 10 हज़ार के करीब शहरों में लोगों के पास फूड डिलीवर किया जा रहा है। इसके फाउंडर का नाम दीपेंदर गोयल है जो एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं। उनकी रुचि पढ़ाई में बहुत कम थी जिस कारण उन्हें 6वीं तथा 11वीं कक्षा में फेल हुए। परन्तु आगे उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह मेहनत करेंगे और इस मेहनत की बदौलत IIT में चयनित भी हुए। आगे उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया।
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पत्नी ने दिया साथ
एक दिन जब वह अपने कैंटीन में बैठकर कुछ देख रहे थे उनकी नजर मेन्यू कार्ड पर गई। जिससे उन्हें एक तरकीब सूझी और मेन्यू कार्ड को स्कैन कर ऑनलाइन डाल दिया। जिसका अच्छा रिस्पॉन्स मिला। जिससे उनका मनोबल पड़ा और उन्होंने फूडलेट नामक वेबसाइट का निर्माण किया। परंतु वह इसमें उतने सफल नहीं हो पाए। अब वह और उनकी पत्नी दोनों दिल्ली के सभी रेस्तरां में जाने लगे और यहां उन लोगों की साइट पर अपने मेन्यू को अपलोड करना प्रारंभ कर दिया।
दोस्त के सहयोग से मिली सफलता
इतनी मेहनत के बावजूद भी उन्हें अपने इस कार्य में सफलता नहीं मिली तब उन्होंने अपनी कंपनी को ये नाम में परिवर्तन किया और इस फूडीबे रखा। परंतु वह इससे भी सफल नहीं हुए जिससे थोड़े हताश हुए। इस दौरान उनकी मुलाकात पंकज चड्डा से हुई जो कि उनके साथ किए आईटीआई थे। पंकज ने उनकी खूब मदद की और कुछ टेक्निकल मामलों में सुधार लाया जिस कारण स्थिति में 3 गुना बढ़ा। इससे वे दोनों काफी खुश हुए अब दीपेंद्र ने कंपनी का को-फाउंडर पंकज को बनाने का निश्चय किया और उन्हें यह ऑफर दिया। वर्ष 2008 के जुलाई महीने में दीपेंदर को पंकज का साथ मिला और उनकी कंपनी काफी विकसित होने लग गई।
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ऐसा पड़ा जोमैटो नाम
ये बात वर्ष 2010 की है जब इंफोजस के फाउंडर संजीव बिखचन्दानी ने जोमैटो में 1 मिलियन डॉलर इन्वेस्टमेंट किया जिससे कई कम्पनियों द्वारा फंड मिला। सब कुछ बेहतर था और सफलता के शिखर पर चढ़ाई जारी थी तब तक इसके नाम को लेकर ईबे ने लीगल नोटिस भेजा जिसके कुछ दिनों बाद इसे जोमैटो (Zomato) नाम मिला। ये नाम मानो तो लकी नाम निकला जो सफलता की उस शिखर पर जा पंहुचा जहां जाना हर किसी की चाहत होती है।
करोड़ो का किया करोबार
वर्ष 2012 में यह कंपनी इंडिया ही नहीं बल्कि ब्राजील तथा टर्की पहुंच गई। आज यह कंपनी लगभग 24 देशों में अपनी पहचान बना चुकी है जिसमें इंडोनेशिया, श्रीलंका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कतर तथा फिलीपींस आदि शहरों में मौजूद है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017-18 में इसका रेंव्यू लगभग 487 करोड़ रुपए और वहीं वर्ष 2020-21 में 2743 करोड़ रुपए को पार कर चुकी है।
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