अल्लामा इकबाल ने ‘बच्चे की दुआ’ उन्वान से एक नज्म लिखी, जो हमें सही रास्ते पर चलना सिखाती है. मौजूदा वक्त में हिंदुस्तान के कई स्कूलों में इस नज्म को पढ़ाया जाता है.
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,
ज़िंदगी शम्अ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी.
दूर दुनिया का मिरे दम से अँधेरा हो जाए,
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए.
हो मिरे दम से यूँही मेरे वतन की ज़ीनत,
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत.
ज़िंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब,
इल्म की शम्अ से हो मुझ को मोहब्बत या-रब.
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना.
मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को,
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को.
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