नई दिल्ली, जेएनएन। औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है। वैसे तो 1896 में ही रसायनविद स्वांते आर्हेनियस ने कोयला जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ने की बात कह दी थी, लेकिन तब किसी ने सोचा नहीं था कि यह इतने बड़े वैश्विक संकट की शुरुआत है। 1992 में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के नाम से एक संधि हुई। इसमें जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की दिशा में नियमों का खाका खींचा गया। इसी के तहत 1995 से कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी) के रूप में वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। तीन दशक में चर्चा भी खूब हुई और लक्ष्य भी तय किए गए, लेकिन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में उतना प्रयास नहीं हुआ, जितना अपेक्षित था।
नहीं छूट रहा कोयले से पीछा
कोयला और जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े कारण हैं। ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर की जलवायु परिवर्तन के मूल में है। इन गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है, जो दुनियाभर में संकट का कारण बन रहा है। यूएनईपी की इस साल आई रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक बिजली उत्पादन में कोयले का प्रयोग खत्म करना होगा। गैस की हिस्सेदारी भी 2030 तक 17 प्रतिशत पर और 2040 से 2050 के बीच शून्य पर लाने की जरूरत है। हालांकि वर्तमान स्थितियां इस बात की गवाही दे रही हैं कि यह लक्ष्य संभव नहीं है।
महंगा पड़ रहा गाड़ी का शौक
रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन और साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा देने की बात कही गई है। यातायात में छोट निजी वाहनों की हिस्सेदारी भी कम करने की जरूरत जताई गई है।
औद्योगिक उत्सर्जन भी बड़ी चुनौती
यूएन की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर ऊर्जा जरूरतों में बिजली की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। 2020 की तुलना में इसे दोगुने से भी ज्यादा करने का लक्ष्य है। सीमेंट उद्योग में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने का लक्ष्य रखा गया है। निश्चित तौर पर इसके लिए जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, वह देशों में नहीं दिख रही है।
ठंडे पड़े रहे संकट से निपटने के दुनिया के कदम
जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों का अनुमान दशकों पहले से लगने लगा था। लेकिन इनसे निपटने को कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। लिहाजा आज 20वीं सदी के औसत की तुलना में वैश्विक तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है।
Edited By: Sanjay Pokhriyal
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