पंजाबी धर्मशाला में किए गए हवन में आहुति डालते श्रद्धालु। संवाद
– फोटो : Jind
ख़बर सुनें
जींद। सनातन धर्म पंजाबी धर्मशाला में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा की परिपूर्णता के उपरांत रविवार को धर्मशाला के प्रांगण में हवन यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने आहुति अर्पित की। उसके बाद भंडारे का आयोजन किया गया।
कथा व्यास धीरज बावरा ने कहा कि हिंदू धर्म में संपूर्ण सृष्टि को यज्ञ का परिणाम माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में यज्ञ चक्र गतिशील रहता है। यह हिंदू दर्शन का चिंतन पक्ष है, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। भारतीय वाद्य मंत्रों में यज्ञ की विशेषता सर्वत्र वर्णित है। वेद का तो विषय ही यज्ञ प्रधान है। वस्तुत: यज्ञ एक ऐसा विज्ञानमय विधान है जिससे मनुष्य का मौलिक आध्यात्मिक कल्याण तथा उत्कर्ष होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है और वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ कर्मों से होता है। यज्ञ में दी हुई आहुतियां सूक्ष्म रूप में परिणत हो जाती हैं। जिसका स्थूल अंश भस्म के रूप में पृथ्वी पर रह जाता है। स्थूल सूक्ष्म का एकांश धूम रूप में अंतरिक्ष में प्रसारित होता है और अततोगत्वा इसी से मेघ का निर्माण होता है। स्थूल सूक्ष्मवाद के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक अंश अबाध गति से अंशी तक पहुंचता है। इस प्रकार यज्ञ आहुति में डाले गए सभी पदार्थ की सत्ता रूप परिवर्तित करके लोक कल्याण ही करती है। परमात्मा यज्ञ रूप हैं जिसने सृष्टि की रचना यज्ञ से की जिसे देवज्ञ या सृष्टि यज्ञ कहा गया है। मूलत: यज्ञ का आशय देव पूजन, समधीकरण तथा दान से है। जीवन से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी संस्कार के मूल में यज्ञ ही रहता है। अत: हिंदू दर्शन, धर्म तथा संस्कृति में हवन यज्ञ आदि में पूर्णत: आस्था व्यक्त की जाती है। समिति ने सहयोगीजना श्रीराधे चरण पादुका सेवा समिति एवं रिद्धि सिद्धि क्लब (महिला मंडल) की अध्यक्षा संगीता छाबड़ा एवं अन्य सहयोगियों का आभार जताया।
जींद। सनातन धर्म पंजाबी धर्मशाला में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा की परिपूर्णता के उपरांत रविवार को धर्मशाला के प्रांगण में हवन यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने आहुति अर्पित की। उसके बाद भंडारे का आयोजन किया गया।
कथा व्यास धीरज बावरा ने कहा कि हिंदू धर्म में संपूर्ण सृष्टि को यज्ञ का परिणाम माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में यज्ञ चक्र गतिशील रहता है। यह हिंदू दर्शन का चिंतन पक्ष है, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। भारतीय वाद्य मंत्रों में यज्ञ की विशेषता सर्वत्र वर्णित है। वेद का तो विषय ही यज्ञ प्रधान है। वस्तुत: यज्ञ एक ऐसा विज्ञानमय विधान है जिससे मनुष्य का मौलिक आध्यात्मिक कल्याण तथा उत्कर्ष होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है और वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ कर्मों से होता है। यज्ञ में दी हुई आहुतियां सूक्ष्म रूप में परिणत हो जाती हैं। जिसका स्थूल अंश भस्म के रूप में पृथ्वी पर रह जाता है। स्थूल सूक्ष्म का एकांश धूम रूप में अंतरिक्ष में प्रसारित होता है और अततोगत्वा इसी से मेघ का निर्माण होता है। स्थूल सूक्ष्मवाद के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक अंश अबाध गति से अंशी तक पहुंचता है। इस प्रकार यज्ञ आहुति में डाले गए सभी पदार्थ की सत्ता रूप परिवर्तित करके लोक कल्याण ही करती है। परमात्मा यज्ञ रूप हैं जिसने सृष्टि की रचना यज्ञ से की जिसे देवज्ञ या सृष्टि यज्ञ कहा गया है। मूलत: यज्ञ का आशय देव पूजन, समधीकरण तथा दान से है। जीवन से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी संस्कार के मूल में यज्ञ ही रहता है। अत: हिंदू दर्शन, धर्म तथा संस्कृति में हवन यज्ञ आदि में पूर्णत: आस्था व्यक्त की जाती है। समिति ने सहयोगीजना श्रीराधे चरण पादुका सेवा समिति एवं रिद्धि सिद्धि क्लब (महिला मंडल) की अध्यक्षा संगीता छाबड़ा एवं अन्य सहयोगियों का आभार जताया।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post