- सलमान रावी
- बीबीसी संवाददाता, भोपाल से
- मध्य प्रदेश में मालवा के इलाक़े को ‘धर्मांतरण मुक्त क्षेत्र’ बनाने का विश्व हिंदू परिषद का एलान.
- संगठन ने यहां किया तीन दिनों का चिंतन शिविर.
- ईसाई मिशनरियों पर लग रहा है आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करवाने का आरोप.
- हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थाओं की आड़ में ऐसा किया जा रहा है.
मध्य प्रदेश के मालवा के इलाक़े में ईसाई मिशनरियों ने अपने धार्मिक स्थलों और सभी संस्थाओं में सीसीटीवी कैमरे लगाने शुरू कर दिए हैं. चर्च का कहना है कि ऐसा क्षेत्र में ईसाइयों पर और उनकी ‘संस्थाओं पर बढ़ रहे हमलों’ को देखते हुए किया जा रहा है.
क्षेत्र के झाबुआ के कैथोलिक डायोसिस के पादरी फ़ादर रॉकी शाह ने बीबीसी से कहा कि स्थानीय प्रशासन ने भी उन्हें ऐसा ही करने को कहा है.
मध्य प्रदेश के मालवा इलाक़े में काफ़ी बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं. इनमें आगर, देवास, धार, इंदौर, झाबुआ, मंदसौर, नीमच, राजगढ़, रतलाम, उज्जैन, गुना और सिहोर ज़िलों के कुछ हिस्से शामिल हैं.
इस इलाक़े में चर्च और हिंदूवादी संगठनों के बीच आदिवासियों के धर्मांतरण को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है.
चर्च ने कहा, ‘हमले बढ़ रहे हैं हमें सुरक्षा दी जाए’
हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि ईसाई मिशनरी बड़े पैमाने पर आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करा रहे हैं.
इस इलाके़ में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू युवा जनशक्ति संगठन और आदिवासी समाज सुधारक संघ सक्रिय संगठन हैं.
सोमवार से मालवा के ही झाबुआ इलाक़े में विश्व हिंदू परिषद का तीन दिनों का अधिवेशन शुरू हुआ जिसमें ‘धर्मांतरण मुक्त मालवा का संकल्प’ लिया गया. इस दौरान संगठन ने ‘हित चिंतक आभियान’ की शुरुआत की घोषणा भी की.
विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने इस शिविर का उद्घाटन किया और ‘ईसाई मिशनरियों पर लगाम’ लगाए जाने की मांग भी की.
इस दौरान झाबुआ में नवनिर्मित चर्च का विरोध किया गया और इसके निर्माण को ‘अवैध’ बताया गया. वहीं झाबुआ के पादरी रॉकी शाह का कहना है कि ये चर्च साल 1919 में ही बनी थी और अब पुराने हो चुके भवन को तोड़कर नई इमारत बनाई गई है.
उनका कहना था कि चर्च के निर्माण के कार्य का हिंदूवादी संगठन विरोध कर रहे थे जिसकी वजह से कई महीनों तक इसका काम रुका रहा. वो बताते हैं, “हमें उच्च न्यायलय से राहत मिली और इसके बाद ही निर्माण का काम पूरा किया गया.”
लेकिन विश्व हिंदू परिषद् का कहना है कि चर्च के निर्माण कार्य में ‘भवन निर्माण की अनुमति की आड़ में नियमों की अवमानना’ की गई है. संगठन ने निर्माण की ‘अनिवार्य रूप से जांच’ कराए जाने की मांग भी की है.
इसके अलावा चिंतन शिविर के दौरान क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों की ‘चंगाई सभाओं’ के आयोजन पर भी रोक लगाने की मांग की गई.
आलोक कुमार का आरोप है, “किसी भी संस्था को शिक्षण या स्वास्थ्य सेवाओं की आड़ में धार्मिक स्थानों के निर्माण की अनुमति नहीं है, हम सरकार से इसकी जांच की अपील करेंगे.”
दूसरी ओर, चर्च ने अपनी संस्थाओं और समुदाय के लोगों और धर्मगुरुओं पर बढ़ रहे हमलों पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सुरक्षा की गुहार लगाई है.
चर्च का कहना है कि सिर्फ़ मालवा ही नहीं, पूरे प्रदेश में ईसाई समुदाय के लोगों और संस्थाओं पर हमले की घटनाएं तेज़ हो गई हैं.
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‘मुख्यमंत्री ने हमें अभी तक नहीं बुलाया’
भोपाल के चर्च के प्रवक्ता फ़ादर स्टीफ़न मारिया ने बीबीसी से कहा कि चर्च का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री के मिलने का लगातार प्रयास कर रहा है, मगर अभी तक उनके “पक्ष को सुनने के लिए मुख्यमंत्री ने उन्हें बुलाया नहीं है.”
ईसाई मिशनरी के पादरी फ़ादर बाबू जोसफ़ कहते हैं कि जबसे मध्य प्रदेश सरकार ने साल 2021 के जनवरी माह में नया धर्मांतरण विरोधी क़ानून लागू किया है तबसे ईसाइयों पर हमले बढ़े हैं.
वो कहते हैं, “वो हमारी प्रार्थना सभाओं पर हमले कर रहे हैं. कभी चर्च पर हमला तो कभी पादरियों पर और कभी उन लोगों पर हमले बढ़ गए हैं जिनके घरों में प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं. जो चंगाई सभाएं भी आयोजित की जा रही हैं वो हम सिर्फ़ अपने समुदाय के लोगों के बीच ही करते हैं.”
जोसफ़ कहते हैं, “मालवा के इलाक़े में ईसाइयों की पांचवीं पीढ़ी रहती है जिनके पूर्वज भी इसाई थे, लेकिन हिंदूवादी संगठन हर अनुष्ठान में व्यवधान पैदा कर रहे हैं या हमला कर रहे हैं.”
उनका ये भी कहना था कि ईसाइयों की आबादी पूरे मध्य प्रदेश में एक प्रतिशत भी नहीं है. इसके बावजूद हिंदूवादी संगठन यहां ‘सबसे कमज़ोर और सबसे अल्पसंख्यक लोगों’ के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं.
मध्य प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी क़ानून में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को अगर धर्म बदलना है तो उसे ज़िला अधिकारी के यहां तीन महीना पहले ही आवेदन देना होगा. अनुमति मिलने पर ही वो व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करा सकता है.
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हिंदुवादी संगठनों के आरोप, गुपचुप धर्मांतरण हो रहे हैं
मालवा में काम कर रहे विश्व हिंदू परिषद के हिमांशु त्रिवेदी बीबीसी से कहते हैं कि इस बारे में उनके संगठन ने ज़िला कलेक्टर से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी प्राप्त की है. वो कहते हैं कि उन्हें जानकारी मिली है कि झाबुआ ज़िले में आदिवासी से ईसाई धर्म में धर्मांतरित एक भी व्यक्ति नहीं है.
वो कहते हैं, “इससे यह साफ़ होता है कि धर्मांतरण गुपचुप तरीके से किया जा रहा है और वो अवैध है. इस क्षेत्र में ईसाइयों की आबादी लगातार बढ़ रही है और इसमें ज़्यादातर आदिवासी समुदाय के लोग हैं जो चर्च के प्रलोभन में आ रहे हैं.
ईसाई समुदाय के नए-नए संस्थान भी निरंतर बनाए जा रहे हैं और वो बोलते हैं कि यहां ईसाई लोगों की आबादी नहीं है, तो फिर ये लोग कहां से आए?”
हिंदूवादी संगठनों का ये भी आरोप है कि आदिवासियों को पैसे से लेकर मकान तक के प्रलोभन दिए जा रहे हैं.
चर्च के प्रवक्ता इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि वर्ष 2011 की जनगणना में पाया गया कि इस क्षेत्र में ईसाइयों की आबादी बढ़ने की दर 2.5 प्रतिशत से घटकर 2.3 प्रतिशत हो गई है. फ़िलहाल यहां ईसाइयों की आबादी कुल आबादी का 3.75 प्रतिशत ही है.
लेकिन हिंदूवादी संगठन मांग कर रहे हैं कि जो आदिवासी धर्मांतरण कर रहे हैं उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा और उसके तहत आरक्षण नहीं मिलना चाहिए. झाबुआ के तीन दिवसीय विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में इस पर प्रस्ताव भी पारित किया गया है.
संगठन संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहते हैं, “अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था है मगर जब वो अपने परंपरागत रीति-रिवाज छोड़कर ‘नए मसीहा और नई किताब’ के प्रति श्रद्धावान हो जाएं तो ऐसी स्थिति में वह आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते.”
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‘पुलिस और हिंदूवादी संगठन मिलकर कर रहे ईसाइयों पर हमले’
हिंदू संगठनों और ईसाई मिशनरियों के बीच चल रही रस्साकशी की वजह से कई घटनाएं सामने आई हैं.
चर्च ने इन घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि नए धर्मांतरण क़ानून की आड़ में हमले हो रहे हैं. चर्च का कहना है कि सतना ज़िले में स्थित एक ईसाई मिशनरी के स्कूल में एक दिन हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ता जबरन दाख़िल हुए और उन्होंने वहां देवी सरस्वती की मूर्ति लगाने की मांग की.
इसके अलावा भी कुछ घटनाओं को उन्होंने सूचीबद्ध किया है जिसमें सतना के चर्च पर कथित हमले का ज़िक्र भी किया गया है. वो कहते हैं कि दतिया ज़िले में भी सैकड़ों ईसाइयों पर पुलिस ने मामले दर्ज किए हैं.
पिछले साल झाबुआ में ही अनुमंडल अधिकारी ने 50 आदिवासियों को नोटिस भेजा और उन्हें अपना धर्म बताने का निर्देश दिया. बाद में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ये नोटिस वापस ले लिया गया.
फ़ादर रॉकी शाह ने बताया, “अब तो ये हालात ऐसे हैं कि पुलिस और हिंदूवादी संगठन एक साथ मिलकर ईसाइयों के अनुष्ठानों या भवनों पर छापेमारी कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर भारत सरकार के बाल अधिकार आयोग के प्रमुख ने अचानक रायसेन ज़िले में स्नेहा सदन में छात्राओं के आश्रम पर छापेमारी की जिसमें 60 प्रतिशत ईसाई छात्राएं रहती थीं.”
उनका आरोप है, “इन छात्राओं के पास मौजूद बाइबल की उन्होंने बरामदगी दिखाकर उसका पंचनामा भी बनवा दिया. ये अल्पसंख्यक संस्था है. ये बात ज़रूर है कि यहां ग़ैर-ईसाई बच्चियां भी रहती हैं, लेकिन जब ईसाई बच्चियां अपनी प्रार्थना करती हैं तो ग़ैर-ईसाई बच्चियों के लिए अलग से उसी समय योग करने की व्यवस्था की गई है.”
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- मालवा क्षेत्र के अलावा प्रदेश के अन्य स्थानों पर ईसाई प्रार्थनाओं पर हमले की शिकायतें.
- चर्च का आरोप, नए क़ानून के बाद से ही उनके समुदाय को प्रताड़ित किया जा रहा है.
- चर्च का ये भी आरोप है कि सैकड़ों ईसाइयों को फ़र्ज़ी मामलों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है.
- वकीलों का कहना है कि मामला दर्ज करने में पुलिस तय की गई क़ानूनी प्रक्रिया की अनदेखी कर रही है.
ईसाई समुदाय हमले बढ़ने से चिंतित
मध्य प्रदेश में ईसाई समुदाय के लोग ख़ुद पर हमलों की बढ़ रही घटनाओं से चिंतित हैं. कैथोलिक चर्च के पादरी फ़ादर मारिया कहते हैं कि अब कोई अपने घर में प्रार्थना कर रहा है, उस पर भी मामला दर्ज हो रहा है. इसलिए समुदाय के लोग डर के साये में जी रहे हैं.
इन सब मामलों को नज़दीक से देखने वाले वकील राजेश जोशी ने बीबीसी से बात करते हुए स्वीकार किया कि नए क़ानून का दुरुपयोग इसलिए भी हो रहा है क्योंकि इसमें ‘प्रलोभन’ शब्द जुड़ा हुआ है.
वो कहते हैं, “अब पुलिस इसकी व्याख्या अपने हिसाब से करती है. अब कोई किसी को पानी भी पिलाएगा तो वो प्रलोभन के रूप में ही देखा जाएगा.”
राजेश जोशी ने बताया कि पिछले साल इस क़ानून के प्रभावी होने के बाद धार ज़िले के रहने वाले कैलाश दोदवे अपने यहां प्रार्थना कर रहे थे.
वो बताते हैं, “किसी ने फ़ोन पर पुलिस से कह दिया कि उनके घर में धर्म परिवर्तन का काम चल रहा है. फिर कुछ युवकों ने परिवार पर हमला कर दिया जिसमें दोदवे बुरी तरह घायल हो गए.
वो तीन महीने अस्पताल में थे. जब वो ठीक हुए तो पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया जबकि हमला करने वालों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई.”
जोशी ख़ुद कई मामलों की पैरवी कर रहे हैं और बताते हैं कि ऐसे मामलों में सज़ा का अनुपात शून्य ही है.
उनका कहना है “कई मामलों में तीसरे पक्ष के कहने पर भी प्राथमिकियां दर्ज हो रही हैं जिसकी वजह से मामला अदालत में नहीं टिक पा रहा है. मुश्किल ये है कि नए क़ानून में इसे ग़ैर-ज़मानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है और ज़िला अधिकारी को इन मामलों के अभियोजन की अनुमति देने का प्रावधान रखा गया है.”
जोशी के अनुसार, ज़्यादातर मामलों में ज़िला अधिकारी, अभियोजन की अनुमति ही नहीं दे रहे हैं जिसकी वजह से जिन पर आरोप लगाए जा रहे हैं वो जेलों में ही रहने को मजबूर हो रहे हैं. वो कहते हैं कि दूसरे अपराधों में सात साल की क़ैद का प्रावधान है, मगर इस क़ानून के तहत 10 साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है और इसमें आजीवन कारावास का भी प्रावधान किया गया है.
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हमलों के बारे में विहिप का क्या कहना है?
हमलों के बारे में पूछे जाने पर विश्व हिंदू परिषद के हिमांशु त्रिवेदी कहते हैं कि जब प्रशासन के लोग उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं देते हैं तो वो ख़ुद ही धर्मांतरण के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं. वो बताते हैं कि उनके संगठन से जुड़े लोग स्वयं जाकर जांच करते हैं और पुलिस को सूचना देते हैं.
फ़ादर बाबू जोसफ़ पूछते हैं, “आख़िर प्रशासन के अलावा क्या कोई भी संगठन या समूह क़ानून को अपने हाथों में इस तरह से लेने की आज़ादी रखता है?”
वो कहते हैं कि भारत में अपनी इच्छा से धर्म का पालन करने का अधिकार सबको दिया गया है. लेकिन जिस तरह ईसाई समुदाय के लोग मध्य प्रदेश जैसे राज्य में डर-डर कर जी रहे हैं, उस पर किसी की नज़र नहीं है. चाहे वो ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष दल होने का दावा क्यों ना करते हों. ज़ाहिर है, उनका इशारा प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ़ ही था.
इस पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अब्बास हफीज़ ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस ने हमेशा इस नए धर्मांतरण विरोधी क़ानून का विरोध विधानसभा में भी किया है और सड़कों पर भी.
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का हवाला देते हुए कहा कि जब क़ानून पारित किया जा रहा था तो कमलनाथ ने विधानसभा में दूसरे कांग्रेस विधायकों के साथ इसका पुरज़ोर विरोध किया था.
वो कहते हैं, “हम लगातार इन हमलों का विरोध करते आ रहे हैं क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां अपना धर्म मानने की सबको आज़ादी है. नया क़ानून लोगों को भयभीत करने और समाज में विभाजन पैदा करने के उद्देश्य से लाया गया है. भारतीय जनता पार्टी इस क़ानून के ज़रिए सिर्फ़ और सिर्फ़ चुनावी लाभ लेना चाहती हैं.”
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गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने क्या कहा?
मध्य प्रदेश में धर्मांतरण के ख़िलाफ़ नए क़ानून और उसके दुरुपयोग को लेकर उठे विवाद के बीच राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी सरकार ने ‘इस विधेयक को काफ़ी कठोर’ बनाने की कोशिश की है.
हाल ही में भोपाल में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने ये भी कहा कि इस क़ानून का ‘सख़्ती से पालन’ भी होगा.
पत्रकारों द्वारा ये पूछे जाने पर कि क़ानून की आड़ में लोगों को फ़र्ज़ी मामलों में फंसाने का चलन बढ़ रहा है तो उनका कहना था कि “नए क़ानून का दुरुपयोग ना हो, यह भी उनकी सरकार की प्राथमिकता’ हमेशा रहेगी.
मिश्रा का मानना है कि प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने जैसा अपराध जो लोग करते हैं, उनमें इस नए क़ानून के आने से डर पैदा हुआ है.
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